सदा प्रसन्न रहिए, ईश्वर को याद रखिए‼️

आप संसार के कर्मनिष्ठ महापुरुषों से शिक्षा ग्रहण कीजिए, अपने को धैर्यवान बनाइए, काम को खेल की तरह करिए, कठिनाइयों को मनोरंजन का एक साधन बना लीजिए । अपने मन के स्वामी आप रहिए, अपने घर पर किसी दूसरे को मालिकी मत गाँठने दीजिए। चिंता, शोक आदि शत्रु आपके घर पर कब्जा जमाकर, मस्तिष्क पर अपना काबू करके आपको दीन-दरिद्र की भाँति दुःखी करना चाहते हैं और शांति तथा स्वास्थ्य का हरण करके व्यथा – वेदनाओं की चक्की में पीसना चाहते हैं, इनसे सावधान रहिए ।

यदि शत्रुओं को आपके मस्तिष्क पर कब्जा कर लेने में सफलता मिल गई तो आप कहीं के न रहेंगे । भ्रम और अज्ञान के बंदीगृह में पड़े बुरी तरह सड़ते रहेंगे और स्वनिर्मित नरक में अपने आप सुलगाई हुई अग्नि से स्वयमेव जलते रहेंगे, यह बहुत ही भद्दी और दुखदायी स्थिति होगी ।

जबकि संसार में अनेक लोग आपसे हज़ारों गुनी कठिनाइयों का सामना करते हैं, अनेक गुना अधिक परिश्रम करते हैं, अनेक गुने घात-प्रतिघातों को सहते हैं, फिर भी हँसते रहते हैं और स्वास्थ्य बढ़ाते रहते हैं तो क्या कारण है कि आप जरा सी घर-गृहस्थी की समस्या के कारण, थोड़े से नुकसान के कारण, साधारण से कष्ट के कारण इतने घबराते हैं ? आप अकेले ही इस दुनिया में कष्ट ग्रसित नहीं हैं, लाखों करोड़ों मनुष्य ऐसी ही या इससे भी बड़ी कठिनाइयों का मुकाबला कर रहे हैं, फिर क्यों नहीं आप उनसे शिक्षा ग्रहण करते ? क्यों नहीं अपने ऊपर काबू रखते ? क्यों नहीं विवेक बुद्धि को जाग्रत करके हानिप्रद मानसिक कमजोरी को मारकर दूर भगा देते ?

दुनिया में हर एक के सामने अप्रिय प्रसंग आते हैं । ऊँचे चढ़ने वालों के सामने तो वे और भी अधिक संख्या में आते हैं, उनसे घबराने या डरने से कर्मयोग की उपासना नहीं हो सकती। कर्तव्य का पथ संघर्षमय है, उसमें क्षण-क्षण पर बाधाएँ आती हैं और उन्हें हटाने के लिए निरंतर युध्द करते रहना पड़ता है । आप एक बहादुर सिपाही की तरह विघ्न बाधाओं को कुचलते हुए आगे बढ़ते चलिए, जीवन को खेल समझिए, परिस्थितियों के प्रभाव से मस्तिष्क को बेकाबू मत होने दीजिए। धैर्य रखिए, भली-बुरी परिस्थितियों में एक समान हँसते रहिए, मानसिक संतुलन नष्ट मत होने दीजिए।

कर्मयोग का आनंददायक सूत्र यह है कि सदा प्रसन्न रहिए और ईश्वर को स्मरण रखिए ।

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