1400 साल पहले अरब से जब इस्लामिक आंधी उठी तो इसने कई राष्ट्रों और कई सभ्यताओं का नामोनिशान मिटा दिया। ईरान से पारसियों का साम्राज्य पर्शिया का नामोनिशान मिटा दिया, इराक के यजीदी दुनिया में अब ढूंढे नहीं मिलते हैं। अफ्रीका से लेकर एशिया तक कितने सभ्यताएं और कितने साम्राज्य इस आंधी में उड़ गए जिनका अब कोई नामोनिशान ढूंढने से भी नही मिलता।
दुनिया में सिर्फ एक सनातन हिंदू सभ्यता है जो इनसे न केवल मुकाबला कर रही है बल्कि अपनी छीनी हुई विरासत भी वापस ले रही है। आज हम इनसे राम मंदिर ले चुके हैं, ज्ञानवापी लेने ही वाले हैं और मथुरा समेत अन्य विरासत भी लेकर रहेंगे।
हमारे महिमाशाली पुरखे हजार सालों से इनसे लड़कर अपनी खोई विरासत छीनते आ रहे हैं जाहिर है हमारे रक्त मे उसी स्वाभिमान का डीएनए दौड़ता है।
नासिक में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक त्रयंबकेश्वर मंदिर को औरंगजेब ने 1680 ईसवी में तोड़कर वहाँ मस्जिद का निर्माण करके नासिक का नाम गुलछनाबाद कर दिया था। मराठाओं ने 1751 में गुलछनाबाद पर कब्जा कर लिया और मस्जिद को गिराकर पुन: भव्य मंदिर का निर्माण करके गुलछनाबाद का नाम पुनः नासिक कर दिया, इस मंदिर का पुननिर्माण बाजीराव बल्लाल के बेटे नाना साहेब पेशवा ने किया था।