नंदी इतिहास में और हमारी चेतना में भी

कालजयी कवि थे जयशंकर प्रसाद जब उन्होंने नंदी को जितना धर्म का प्रतिनिधि कहा था उतना उसकी मंथर गतिविधि को भी ध्यान में रखा। याद करें ‘आनंद’ सर्ग। था सोम लता से आवृत वृष धवल, धर्म का प्रतिनिधि , घंटा बजता तालों में उसकी थी मंथर गति-विधि ।

जबकि शास्त्र कहते थे : धर्मस्य त्वरिता गतिः। कि धर्म की गति त्वरित होती है फिर भी काशी के उस सुंघनी साहू ने धर्म के इस प्रतिनिधि की गति को मंथर कहा। अब समझे कि क्यों कहा। वे वृष संविधान की प्रस्तावना-पृष्ठ पर थे और संविधान के पहले पृष्ठ पर ‘ धर्मचक्र प्रवर्तनाय’ भी था। अत: प्रस्तावना धर्म-प्रवर्तन तो करती थी। रिलीजन के संकीर्ण अर्थ में नहीं।यों देखें तो स्पूनर ने बसरा की भीटा सील नं 44 में एक ओर नंदी तथा दूसरी ओर चक्र को खोजा।

यदि ऋग्वेद ( II. 33,8) के अनुसार चलें तो रुद्र ही वृष है। यह संविधान का शिवारंभ है। और सबसे प्राचीन भारतीय पंचमार्क सिक्कों में न तो धेनु हैं और न महिष। किन्तु वृषभ हैं। यानी हमारे सभ्यतारंभ में भी शिव हैं।

आज कुछ विदेशों से अपने को जोड़ने वाले नंदी का मज़ाक़ उड़ा लें, लेकिन एक समय था जब अपोलोडोटस जैसे इंडो-ग्रीक राजाओं ने भी पंजाब और गांधार में शिव को वृष के रूप में चित्रित किया था। हेसीचिअस गांधार में नंदी पूजा का बार बार उल्लेख करता था। पुष्कलावती (आधुनिक पेशावर) में भी वही नंदी-रूप शिवपूजा प्रचलित थी। एक इंडो-सिथियन राजा का स्वर्ण-सिक्के के एक ओर ग्रीक व खरोष्ठी में वृषभ नाम व आकृति अंकित है तो दूसरी ओर पुष्कलावतीदेवता नाम खरोष्ठी में लिखा है और एक देवी हाथ में कमल लिये खड़ी है।

कुमारस्वामी उसे लक्ष्मी और जे एन बैनर्जी उसे पार्वती बताते हैं। ग्यारहवीं सदी तक गांधार सिक्कों में नंदी की आकृति रही आई और विद्वानों का विश्वास है कि तब तक शिव की वृषभ रूप में आराधना होती थी।न केवल वसुदेव की मुद्राओं में बल्कि इस कुषाण शासक को पराजित करने वाले ससानियन राजाओं की मुद्राओं में भी शिव और नंदी अंकित हैं। आर्जुनायन और यौधेय सिक्कों में नंदी शिवलिंग के साथ मिलते हैं।

नाग राजाओं की मुद्राओं में वृषभ ही नहीं है बल्कि महाराज श्री वृष्ण भी लिखा है। गुप्तकाल को वैष्णव बताते हमारे इतिहासकार नहीं थकते पर उनके सिक्कों और सीलों पर वृषभ रहे ही रहे। वे शिव का theriomorphic रूप थे। गुप्तों दकन में सातवाहनों, वाकाटकों से लेकर पल्लवों, चोलों,पांड्यों आदि न केवल सिक्कों में बल्कि अपने प्रतीकों व सिद्धांतवाक्यों में वृषभलांछन अंकित किये। जो नंदी इतिहास में हमारे साथ चले, वे अभी क्या स्थिर ही बैठे हुए हैं या हमारी चेतना में किसी गति का संचार कर रहे हैं?

– मनोज श्रीवास्तव

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