जामिया से पढ़ी और यूपीएससी में टॉप करने वाली श्रुति शर्मा खुलेआम कह रही हैं कि – ”आर्य आक्रमणकारी थे।” जब तक हम केवल अकूत पैसे और पावर के कारण आईएएस/आईपीएस एवं अन्य सरकारी बाबुओं को सिर-माथे बिठाते रहेंगें, ये ऐसे ही अनाप-शनाप वक्तव्य जारी करते रहेंगें। दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज के हमारे समाज ने विद्वत्ता का संबंध भी पद से जोड़ दिया।
बिना किसी प्रामाणिकता और सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन में योगदान के केवल किसी प्रतियोगी परीक्षा में सफलता सर्वज्ञता का पैमाना नहीं दूसरी ओर जब तक आप शिक्षा-व्यवस्था और पाठ्यक्रमों में बदलाव नहीं करेंगें ऐसे लोग रहेंगें और टॉप भी करते रहेंगें। सोचकर देखिए कि इन्हें टॉप कराने वाले विशेषज्ञों ने इनसे क्या और कैसे सवाल पूछे होंगें और इनके चयन की प्रक्रिया कितनी लचर रही होगी कि अपनी मूल पहचान, अपने पुरखों को ही ये मूलतः विदेशी बता रही हैं और उसके प्रमाण में एक वामी लेखक ”टोनी जोसेफ़” को कोट कर रही हैं।
आप स्वयं सोचकर देखिए कि किसी ”जोसेफ़ या ज़फ़र” की भारत के बारे में समझ कितनी गहरी, निष्पक्ष एवं संतुलित हो सकती है? या आर्यों के आक्रमण के मिथ्या सिद्धांत को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए ऐसे लेखकों को क्या अंतिम सत्य मान लिया जाना चाहिए? बिलकुल वेद और ब्रह्म-वाक्य की तरह? जिस अभ्यर्थी को इतनी भर समझ न हो, वह टॉप तो करता ही है, उससे बुरा है कि उसे विद्वत्ता का सार्वजनिक तमग़ा भी पकड़ा दिया जाता है।
क्या सिविल सर्विसेज देने वालों की समाज और देश की समझ बेहतर नहीं होनी चाहिए? क्या भारत को भी हम विदेशी नज़रिए से ही समझेंगें? क्या भारत को भारतीय दृष्टिकोण से जानना-समझना इन टॉपर्स के लिए आवश्यक नहीं होना चाहिए?
श्रुति शर्मा द्वारा आर्यों पर दिए गए वक्तव्य को आप इस ट्विटर हैंडल पर स्वतः सुन सकते हैं।
https://twitter.com/MahaAmatya/status/1531290359904739328…
बहरहाल, श्रुति शर्मा जैसों के लिए मैं अपना यह लेख यहाँ साझा कर रहा हूँ।
https://organiser.org/…/calendar-of-iit-kharagpur…/