झूठ परोसने वाले वामपंथी- कॉंग्रेसी पोषित पत्रकार -एनजीओ

2002 में गोधरा में 59 हिन्दू कार्यसेवकों को जिंदा जला दिया गया। उसके बाद गुजरात में दंगा भड़क उठा।
महज दो वर्षों बाद ही 2004 में कॉंग्रेस- कॉमनिस्ट की सरकार बनी और 10 वर्षों तक रही। इस दंगे के मुख्य आरोपी के रूप में तात्कालिक मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को फंसाने का खूब प्रयास हुआ किन्तु 10 वर्षों तक सत्ता में रहने वाले वामपंथी- कोंग्रेसी नरेंद्र मोदी के खिलाफ कुछ भी साबित नहीं कर पाए। उन्हें क्लीन चिट मिलती रही।

एक एनजीओ की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने SIT बनाई। केंद्र की कॉंग्रेस- कॉमनिस्ट सरकार ने सभी केंद्रीय एजेंसियों को गुजरात के तात्कालिक मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के पीछे लगा दिया।

यूपीए सरकार के समय ही SIT ने श्री नरेन्द्र मोदी को क्लीन चिट दिता।
मोदी को क्लीन चिट मिलने के बाद भी वामपंथी पत्रकार, कॉंग्रेस के पेंशनधारियों साहित्यकार, सपा के टुकड़े पर पली बढ़ी हंस जैसी पत्रिकाएं, राजेन्द्र यादव जैसे साहित्यकार व विदेशी चंदे पर चलने वाले एनजीओ ने SIT की रिपोर्ट से विपरीत इतनी बार झूठ बोला कि समाज में विद्वेष बढ़ता ही गया।
चाहे SIT हो या आयोग सभी ने तात्कालिक गुजरात सरकार व नरेंद्र मोदी को न सिर्फ क्लीन चित दिए अपितु उनके द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना भी की।

आज सुप्रीम कोर्ट ने दुबारा नरेंद्र मोदी जी को क्लीन चिट दिया है।
अब एक प्रश्न स्वभाविक रूप से पूछा जाना चाहिए कि ऐसे वामपंथी- कॉंग्रेसी पोषित पत्रकार व साहित्यकार जिन्होंने इतने वर्षों तक समाज में झूठ परोसा उस पर क्या कार्यवाई होनी चाहिए?

क्या इन पत्रकारों- साहित्यकारों को आजीवन कारावास हो अथवा बीच चौराहे पर इनका एनकाउंटर किया जाए ताकि फिर कोई वामपंथी- कॉंग्रेसी- लिबरल धूर्त देश में विद्वेष न फैला पाए।

 

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