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युद्ध से बढ़ेंगी मुश्किल

युद्ध से बढ़ेंगी मुश्किल

by सतीश सिंह
in आर्थिक, देश-विदेश, राजनीति, विशेष, सामाजिक, सितंबर- २०२२
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रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच चीन और ताइवान में भी गम्भीर स्थितियां पैदा हो गई हैं। चीन और ताइवान सम्पूर्ण विश्व में सेमी कंडक्टर चिप के सबसे बड़े सप्लायर हैं इसलिए यदि इनके बीच युद्ध की स्थिति आती है तो समूचे कम्प्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक और वाहन उद्योग पर उसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा। भारत में शीघ्र ही शुरू होने जा रही 5जी सेवाओं पर भी इसके प्रतिकूल प्रभाव पड़ेंगे।

आज युद्ध से ज्यादा जरूरी कारोबार हो गया है। अगर दूसरे देशों से कारोबारी रिश्ते अच्छे नहीं हैं या फिर वैश्विक स्तर पर आपूर्ति शृंखला बाधित है तो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था तबाह हो सकती है। इसके लिए किसी देश को युद्ध की आग में जलने की कदापि जरूरत नहीं है। उदाहरण के तौर पर रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की वजह से वैश्विक स्तर पर आपूर्ति श्रृंखला बाधित है, जिससे दुनिया भर में महंगाई बढ़ रही है और दुनिया के देशों में विकास की रफ्तार धीमी पड़ गई है। आज रूस और यूक्रेन में चल रहे युद्ध के कारण दुनिया के कई देशों में मंदी आने की सम्भावना बढ़ी है। श्रीलंका और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लगभग तबाह हो चुकी है। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था भी तहस-नहस होने के कगार पर है। वैसे तो चीन और ताइवान के रिश्ते पहले से तल्ख हैं, लेकिन अमेरिकी स्पीकर नैंसी पेलोसी की हालिया ताइवान यात्रा से चीन और ताइवान के बीच तनाव कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है और दोनों देशों के बीच युद्ध होने की सम्भावना जताई जा रही है।

चीन इलेक्ट्रॉनिक और कई दूसरे उत्पादों का दुनिया का एक महत्त्वपूर्ण उत्पादक एवं निर्यातक देश है। इस मामले में ताइवान भले ही एक छोटा देश है, लेकिन सेमीकंडक्टर, जिसे चिप भी कहा जाता है का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है। चिप को इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का ब्रेन या दिमाग कहा जाता है। इसके बिना, इलेक्ट्रॉनिक उत्पादें निर्जीव हैं। इस लिहाज से देखें तो ताइवान का महत्त्व दुनिया के सभी देशों के लिए बहुत ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत समेत दुनिया के अधिकांश देश इस छोटे से देश पर चिप की आपूर्ति के लिए निर्भर हैं।

विगत कुछ सालों में भारत में चीन से आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में ऑटोमेटिक डेटा प्रोसेसिंग मशीन, टेलीफोन इक्विपमेंट व वीडियो फोन, इलेक्ट्रॉनिक सर्किट, ट्रांजिस्टर्स व सेमीकंडक्टर डिवाइस, एंटीबायोटिक्स, उर्वरक, साउंड रिकॉर्डिंग, डिवाइस व टीवी कैमरा, ऑटो कम्पोनेंट व एक्सेसरीज, प्रोजेक्ट गुड्स आदि हैं। भारत अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर चीन से तैयार उत्पादों का आयात भी करता है। इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर बाजार के मामले में भी चीन का भारत के बाजारों पर कब्जा है।

चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ा है अर्थात भारत चीन से विविध उत्पादों का आयात ज्यादा करता है, जबकि निर्यात कम। वर्ष 2014 में भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 3.36 लाख करोड़ रूपये था, तो वर्ष 2015, वर्ष 2016, वर्ष 2017, वर्ष 2018, वर्ष 2019, वर्ष 2020 और वर्ष 2021 में क्रमशः 3.91 लाख करोड़ रूपये, 3.87 लाख करोड़ रूपये, 4.45 लाख करोड़ रूपये, 4.30 लाख करोड़ रूपये, 3.83 लाख करोड़ रूपये, 3.30 लाख करोड़ रूपये और 4.61 लाख करोड़ रूपये रहा।

चीन कम्प्यूटर, ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री का बादशाह है। वह वैश्विक स्तर पर इनके कलपुर्जों का विभिन्न देशों में निर्यात करता है। चीन में ऑटोमोबाइल, मोबाइल और कम्प्यूटर के कलपुर्जों का बड़ी मात्रा में निर्माण किया जाता है। चीन से भारत आयात किये जाने वाले उत्पादों में इलेक्ट्रॉनिक्स का 20.6 प्रतिशत, मशीनरी का 13.4 प्रतिशत, ऑर्गेनिक केमिकल्स का 8.6 प्रतिशत और प्लास्टिक उत्पादों का 2.7 प्रतिशत योगदान है, जबकि भारत से चीन निर्यात किये जाने वाले उत्पादों में ऑर्गेनिक केमिकल्स का 3.2 प्रतिशत और सूती कपड़ों का 1.8 प्रतिशत का योगदान है। भारत आज इलेक्ट्रिकल मशीनरी, मैकेनिकल उपकरण, ऑर्गैनिक केमिकल, प्लास्टिक और ऑप्टिकल सर्जिकल उपकरणों का सबसे अधिक आयात करता है, जो भारत के कुल आयात का 28 प्रतिशत है। भारत चीन से सबसे ज्यादा यानी 40 प्रतिशत ऑर्गेनिक केमिकल्स का भी आयात करता है।

भारत चिप समेत अन्य कुछ उत्पादों की आपूर्ति के लिए ताइवान पर निर्भर है। ताइवान से कारोबार बाधित होने पर भारत में स्मार्टफोन, इलेक्ट्रॉनिक और ऑटो सेक्टर का बाजार ठप्प पड़ सकता है। भारत, ताइवान से इलेक्ट्रिकल उपकरण, प्लास्टिक, मशीनी कलपुर्जे, और ऑर्गेनिक केमिकल्स आयात करता है। दुनियाभर के 90 प्रतिशत चिप का निर्माण ताइवान करता है। पिछले साल ताइवान ने 118 अरब डॉलर के चिप का निर्यात दुनिया के देशों को किया था।

ताइवान की कम्पनी टीएसएमसी; एपल, एएमडी, एआरएम् आदि कम्पनियों के लिए चिप बनाती है, जिनका इस्तेमाल स्मार्टफोन, कार, लैपटॉप और दूसरी इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के निर्माण में किया जाता है। चिप के बिना इन उत्पादों का निर्माण नहीं किया जा सकता है। भारत का मोबाइल उपकरण विनिर्माण उद्योग अपनी चिप जरूरतों के लिए ताइवान के चिप निर्माताओं पर 75 प्रतिशत से अधिक निर्भर है। यदि हम इलेक्ट्रॉनिक्स, वाहन, पीसी, लैपटॉप आदि सभी उद्योगों के लिए समग्र चिप जरूरत को देखें तो ताइवान पर भारत की निर्भरता लगभग 60 प्रतिशत है।

भारत में मोबाइल उपकरणों के लिए चिप की आपूर्ति करने वाली तीन प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं में अमेरिकी कम्पनी क्वालकॉम, ताइवान की कम्पनी मीडियाटेक और चीन की कम्पनी यूनिसोक शामिल हैं। भारत सभी श्रेणियों में ताइवान की कम्पनियों पर ज्यादा निर्भर है। भारत यूरोप और एकीकृत उपकरण निर्माताओं से भी चिप का आयात करता है, जिनमें इंटेल, इनफिनियॉन, माइक्रॉन, वेस्टर्न डिजिटल आदि कम्पनियों का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है।

भारत में 5 जी सेवाएं जल्द ही शुरू होने वाली हैं जिसके लिए भारत को बड़ी संख्या में चिप की जरूरत होगी। इसके अलावा रोबोटिक्स, आईओटी समाधान आदि के लिए भी चिप की जरूरत है। इलेक्ट्रिक वाहनों में भी चिप का इस्तेमाल किया जाता है। दूसरे वाहनों में भी चिप का प्रयोग किया जाता है। आईईएसएमए इंडिया के अनुसार, भारत में खपत होने वाले चिप का कुल मूल्य वर्ष 2021 में 27 अरब डॉलर था, जो वर्ष 2026 तक बढ़कर 64 अरब डॉलर हो सकता है।

अभी चिप की मांग, आपूर्ति के मुकाबले ज्यादा है। अगर चीन और ताइवान के बीच युद्ध शुरू होता है तो दुनिया भर में कई वाहन निर्माताओं और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स कम्पनियों का उत्पादन पूरी तरह से ठप्प पड़ सकता है। चिप की कमी से देश के शेयर बाजार पर भी प्रतिकूल प्रभाव देखा जा रहा है। चिप पर निर्भर कम्पनियों के शेयरों के भाव में गिरावट देखी जा रही है।

आज विभिन्न उत्पादों की आपूर्ति के लिए दुनिया के कई देशों की निर्भरता चीन और ताइवान पर है। इसलिए, भारत समेत दुनिया के अधिकांश देश चीन और ताइवान के बीच युद्ध नहीं चाहते हैं। भारत में भले ही चीन में बने सामानों के बहिष्कार की बात गाहे-बगाहे की जाती है, लेकिन भारत के बहुत सारे उद्योग कच्चे माल एवं कलपुर्जों के लिये चीन पर निर्भर हैं। कई तैयार उत्पादों का आयात भी भारत, चीन से करता है। लिहाजा, चीन और ताइवान के बीच युद्ध शुरू होने से भारत का आर्थिक स्वास्थ्य बिगड़ सकता है।

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