हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
अमृत महोत्सव वर्ष में हिंदी का वैभव

अमृत महोत्सव वर्ष में हिंदी का वैभव

by डॉ. करूणाशंकर उपाध्याय
in शिक्षा, संस्कृति, सामाजिक, सितंबर- २०२२
0

पिछले कुछ वर्षों में हिंदी ने अन्य बड़ी वैश्विक भाषाओं की तुलना में अधिक तीव्रता से अपना विस्तार किया है परंतु अभी भी मौलिक कार्यों की कमी है जिसे पूरा किया जाना अति आवश्यक हो जाता है। इसके लिए भारत सरकार को बड़े पैमाने पर सर्वेक्षण और शोध करवाना चाहिए ताकि हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं वैश्विक स्तर पर वह ऊंचाई छू सकें जो अंगे्रजी और अन्य यूरोपीय भाषाओं को प्राप्त है।

इस वर्ष जब हम अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो यह आवश्यक हो जाता है कि हम हिंदी की अद्यतन उपलब्धियों का तटस्थ विश्लेषण करें। हिंदी अपनी सर्जनात्मक और बहुविध उपलब्धियों के कारण विश्व की किसी भी भाषा की समकक्षता की अधिकारिणी बन गई है। वह स्वाधीनता संग्राम की आधिकारिक भाषा थी, जिसके कारण आजादी मिलने के बाद देश के कर्णधारों ने हिंदी को भारतीय संघ की राजभाषा का सम्मान दिया। आजादी के बाद शासकीय कार्यालयों में हिंदी का प्रयोग बढ़ने से उसका बहुविध विकास हुआ। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 351 के निर्देशों के अनुरूप उसका विधिवत मानकीकरण किया गया। वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग की सहायता से 10 लाख से अधिक नए शब्द निर्मित किए गए। वह ज्ञान-विज्ञान, कला-संस्कृति, सिनेमा-साहित्य, विधि-वाणिज्य, बैंकिंग- राजनय, पत्रकारिता-मीडिया, डिजिटल दुनिया और विनिमय के अनेक क्षेत्रों में आधिकारिक तौर पर प्रयुक्त हो रही है।

आज जब सम्पूर्ण विश्व बहुभाषिकता की ओर बढ़ रहा है और नई पीढ़ी स्वयं ही अनेक भाषाएं सीखने के प्रति उन्मुख है, तब किसी भी प्रकार के संकीर्ण दृष्टिकोण का कोई औचित्य नहीं रह गया है। हिंदी भारत बोध और अस्मिता बोध का संवर्धन-संवहन करती है। वह भारत के सबसे उत्तरी भाग सियाचिन ग्लेशियर स्थित इंदिरा घाटी से लेकर देश के सबसे दक्षिणी भाग ग्रेट निकोबार स्थित इंदिरा प्वाइंट तक भारतीय सेनाओं द्वारा प्रयुक्त हो रही है। इसी तरह भारत के सबसे पूर्वी क्षेत्र नगालैंड-मिजोरम से लेकर पश्चिमी छोर नलिया तक प्रयोग में है। वह भारत की सांस्कृतिक एकता का अनिवार्य आधार बन गई है। वह तमाम निराशावादियों की आशंकाओं को रौंदती हुई एक संश्लिष्ट और समंजित इकाई के रूप में निरंतर विकासमान है। वह राष्ट्रीय सम्पर्क भाषा से ऊपर उठकर विश्व भाषा की गरिमा का संस्पर्श कर रही है। जब हम हिंदी की विश्वव्याप्ति और वैश्विक भाषा के रूप में अद्यतन स्थिति पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि आज हिंदी सम्पूर्ण विश्व में सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। भारतवर्ष की विकासशील जनसंख्या हिंदी के प्रसार का एक बड़ा कारण है। आज हिंदी अनेक बोलियों से समन्वित भाषा है। उसका देश-विदेश में अपना संयुक्त परिवार है। आज जितने लोग मातृभाषा अथवा पहली भाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग करते हैं, उससे कहीं अधिक लोग उसका प्रयोग द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम और विदेशी भाषा के रूप में प्रयोग करते हैं। इस समय सम्पूर्ण विश्व में बहुभाषिकता को बढ़ावा मिल रहा है। फलतः हिंदी सम्पूर्ण विश्व में 65 करोड़ लोगों की पहली भाषा और 50 करोड़ लोगों की दूसरी और तीसरी भाषा है। वह गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना तथा पूर्वोत्तर के भारतीय राज्यों और अधिकांश केंद्र शासित प्रदेशों तथा नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, फिजी, मारीशस, थाईलैंड, सूरीनाम, त्रिनिदाद और गयाना जैसे देशों में दूसरी एवं तीसरी भाषा के रूप में प्रयुक्त होती है। शेष विश्व में लगभग 20 करोड़ लोगों द्वारा चौथी, पांचवी और विदेशी भाषा के रूप में प्रयुक्त होती है। इस तरह सम्पूर्ण विश्व में 135 करोड़ लोग किसी-न-किसी रूप में हिंदी बोल अथवा समझ लेते हैं। यही पद्धति अंग्रेजी और चीन की भाषा मंदारिन का आकलन करने वाले भी अपनाते हैं। अंग्रेजी की संख्या का आकलन करने वाले उन भारतीयों को भी अंग्रेजी बोलने वालों में शुमार करते हैं जो अंग्रेजी माध्यम से पढ़े हैं। यद्यपि अमेरिकी- ब्रिटिश और ऑस्ट्रेलियाई अंग्रेजी में पर्याप्त अंतर है लेकिन उन्हें अलग भाषा के रूप में उल्लिखित नहीं किया जाता है। ठीक इसी तरह चीन की भाषा मंदारिन भी 56 बोलियों और विभाषाओं से समन्वित है। लेकिन चीन सरकार उन्हें अलग नहीं मानती। चीन में मंदारिन के अलावा कैंटोनी, अंग्रेजी, पुर्तगाली, यूगुर, तिब्बती, मंगोली और झियांग को भी आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है। इसी तरह यह भी तुलनीय है कि भारत में 82% भारतीय हिंदी बोल अथवा समझ सकते हैं जबकि चीन में केवल 62% लोग ही मंदारिन बोल अथवा समझ पाते हैं। हिंदी को वैश्विक भाषा का दर्जा दिलाने में भारत की विकासमान अर्थव्यवस्था भी है।

इस समय भारत की जनसंख्या 138 करोड़ जबकि अमेरिका की 33 करोड़, कनाडा की लगभग 4 करोड़ , सम्पूर्ण यूरोप की 75 करोड़, रूस की 15 करोड़ और ऑस्ट्रेलिया की ढाई करोड़ है। कहने का आशय यह है कि इस समय धरती के लगभग 60% हिस्से पर जितनी जनसंख्या रहती है उससे अधिक जनसंख्या भारत जैसे सम्पूर्ण विश्व के 6% से भी कम क्षेत्रफल वाले देश में रहती है। इस दृष्टि से भी हिंदी का पलड़ा भारी है। हमारी जनसंख्या हिंदी के संख्याबल का सबसे बड़ा आधार है। डॉ.जयंती प्रसाद नौटियाल ने भी हिंदी जानने वालों की संख्या का आंकलन किया है।

आज डिजिटल विश्व में हिंदी सबसे तीव्र गति से बढ़ने वाली भाषा है। अब स्वयं गूगल का सर्वेक्षण यह सिद्ध करता है कि इंटरनेट पर हिंदी में प्रस्तुत होने वाली सामग्री में विगत 5 वर्षों में 94% की दर से इजाफा हुआ है जबकि अंग्रेजी केवल 19% की दर से बढ़ रही है। इस समय भारत में 75 करोड़ लोगों के पास स्मार्ट फोन है, जिसमें से 63 करोड़ से अधिक लोग हिंदी का प्रयोग करते हैं। भारत के 93% युवा यू-ट्यूब पर हिंदी का ही प्रयोग करते हैं। हिंदी वॉयस सर्च क्वेरी 400% की दर से प्रतिवर्ष बढ़ रही है और सोशल मीडिया हिंदी जानने वालों का सबसे बड़ा पटल बन गया है। इस समय जो तकनीकी सुविधा अंग्रेजी में उपलब्ध है वह हिंदी में भी उपलब्ध है।

हमारे वर्तमान प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी संयुक्त राष्ट्र संघ और हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिंदी में अपनी बात बड़े प्रभावी ढंग से रखते हैं जिससे उनकी वैश्विक लोकप्रियता में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी हुई है। इसी तरह अमेरिकी जनगणना के अनुसार सन 2000 से 2011 के बीच अमेरिका में हिंदी बोलने वाले 105% की दर से बढ़े हैं।

हमें यह भी स्मरण रखना होगा कि विश्व के जितने भी विकसित राष्ट्र हैं उन सबने अपनी भाषा में विकास किया है। यह बात अमेरिका, रूस, जर्मनी, जापान, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, स्पेन, पुर्तगाल, इजरायल और चीन तक समान रूप से देखी जा सकती है। इजरायल जैसे छोटे से राष्ट्र ने हिब्रू में उत्कृष्ट तथा मौलिक शोधकार्य करके अब तक 12 नोबेल पुरस्कार प्राप्त किए हैं। ये सारे देश अपनी भाषाओं के विकास पर बड़ी धनराशि खर्च करते हैं। इसकी तुलना में भारत सरकार हिंदी एवं भारतीय भाषाओं पर बहुत कम धनराशि खर्च करती है। इन देशों की सरकारें ऐसी योजनाएं प्रस्तुत करतीं हैं कि उनकी भाषा और साहित्य के प्रति आकर्षण बढ़े और विश्व समुदाय की उन्मुखता उनकी ओर बनी रहे। हम भारत सरकार से भी यही अपेक्षा रखते हैं। यह तभी सम्भव है जब समूचा हिंदी जगत सरकार पर दबाव बनाए। हम भारत सरकार को इस बात के लिए तैयार करें कि वह विश्व के तमाम देशों में हिंदी और भारतीय भाषाओं की स्थिति का आकलन करने के लिए विद्वानों-विशेषज्ञों की एक समिति गठित करे जो हर दस साल की जनगणना के बाद हिंदी और भारतीय भाषाओं की वस्तुस्थिति का खाका तैयार करे। इसी के साथ भारत में परिचालन करने तथा अंधाधुंध कमाई करने वाली तमाम कम्पनियों का यह कर्तव्य सुनिश्चित किया जाए कि वे अपनी सेवाएं हिंदी और भारतीय भाषाओं में दें। उनके विज्ञापन में हमारी भाषाओं को यथोचित सम्मान मिले। चूंकि लिपि भाषा का शरीर है अतः देवनागरी तथा दूसरी भारतीय लिपियों के प्रयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

डॉ. करूणाशंकर उपाध्याय

Next Post
सावधान ….. वो रजाकारों वाला ओवैसी है

सावधान ..... वो रजाकारों वाला ओवैसी है

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0