हैदराबाद के “रजाकार” आज के भारत के लिए कोई बहुत जाना पहचाना नाम नहीं है। ऐसा इसलिय है क्योंकि ये संगठन या कहिये “स्वयंसेवकों का दल” मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) नाम की पार्टी के झंडे तले, बहादुर यार जंग ने 1938 में बनाया था और तब से अब तक करीब आठ दशक बीत चुके हैं। भारत की स्वतंत्रता के काल में कासिम रिज़वी ने इसकी कमान संभाली और तब ये काफी तेजी से बढ़ा। नवम्बर 1947 से अगस्त 1948 तक जब हैदराबाद के निजाम से भारत सरकार इस संगठन को खत्म करने की विनती कर रही थी, तो मीम (एमआईएम) और निजाम के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही थी।
मजलिस ए इत्तेहाद उल मुस्लिमीन (एमआईएम) की स्थापना महमूद नवाज खान ने 1926 में की थी। इसके हथियारबंद दस्ते को रजाकार नाम दिया गया था। कासिम रजवी जो इसका प्रमुख था, खुद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढ़ा था। उसका मन्ना था कि हैदराबाद एक इस्लामिक मुल्क है जिसे उन लोगों ने फतह किया है। इनके सैन्य शक्ति इतनी थी कि रजाकार के लियी कासिम अलग कानून बनवा सकता था। उसके इशारे पर हैदराबाद के निजाम ने हैदराबाद स्टेट का मामला यूनाइटेड नेशन्स की सिक्यूरिटी कौंसिल में उठाने के लिए एक दल भी भेजा था। इस दौर में हैदराबाद में शोएबुल्ला खान जैसे कुछ पत्रकार भी थे जो भारत में हैदराबाद के विलय की वकालत करते थे।
रजाकारों ने पत्रकार शोएबुल्ला खान की हत्या कर दी थी। इस दौर में रजाकारों ने हैदराबाद के कई कम्युनिस्टों की हत्याएं की थी। हैदराबाद स्टेट कांग्रेस को प्रतिबंधित कर दिया। हिन्दुओं को जंगलों में भागना पड़ा, पड़ोसी क्षेत्रों में शरण लेनी पड़ी। अनगिनत बलात्कार, लूट और हत्याएं हुईं। आखिरकार सरदार पटेल ने “ऑपरेशन पोलो” की इजाजत दी। जैसे ही निहत्थे नागरिकों के बदले हथियारों से मुकाबला करने के लिए कोई उतरा रजाकारों ने दुम दबाकर हथियार डाल दिए। सितम्बर 18, 1948 को रजाकारों के हथियार डालने के बाद निजाम के मुख्यमंत्री मीर लाइक अली के अलावा कासिम रिजवी भी गिरफ्तार कर लिया गया। पंडित सुन्दरलाल समिति की रिपोर्ट के मुताबिक रजाकारों की हिंसा में हैदराबाद में 27000 से 40000 लोगों की जान गयी थी।
कासिम रिजवी को करीब दस साल जेल में रहना पड़ा, जिसके बाद वो पाकिस्तान चला गया और वहीँ कहीं गुमनामी की मौत मरा। शुरू में मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन को प्रतिबंधित कर दिया गया था लेकिन ये पार्टी नाम बदलकर आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) नाम से नए नेतृत्व के साथ 1957 में फिर से आ गयी। असद्दुदीन ओवैसी इसी पार्टी का प्रमुख है। विकास की कोई बात किये बिना सिर्फ मुहम्मडेन होने के नाम पर वो कई जगह इसलिए जीत जाता है क्योकि उन्हें याद है कि “रजाकार” कौन थे। उन्हें याद है कि काफिरों के साथ, कम्युनिस्टों के साथ, कांग्रेस के साथ, “रजाकार” क्या कर सकते हैं, क्या किया था। ये सिर्फ आप हैं जो भूल गए कि ओवैसी कौन है।
जब ओवैसी पूछता है कि मोदी चला जायेगा, योगी अपने मठ में जायेगा, तब तुम क्या करोगे? तो ये कोई ऐसा सवाल नहीं जो बस पूछ लिया गया है। वो रजाकारों वाला ओवैसी है, इस सवाल का जवाब आपको सोचना तो होगा ही!