आम जनता द्वारा किए जा रहे ‘बायकॉट बॉलिवुड’ ने फिल्मी धुरंधरों के हाथ- पांव फुला दिए हैं। सभी बड़े एक्टर्स अपने पुराने बयानी पापों को धोने के चक्कर में हैं लेकिन ‘लाल सिंह चड्ढा’ के आमिर की तरह नए पाप करने पर आमादा भी हैं। इसलिए अब लोगों ने मूड बना लिया है कि फिल्म वही हो जिसमें अपनी मिट्टी की सुगंध हो। मनोरंजन की आड़ में राष्ट्र-समाज विरोधी फिल्में बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
बॉलीवुड की फिल्मों के बायकॉट का सिलसिला जारी है। हाल ही में प्रदर्शित आमिर खान की ‘लाल सिंह चड्ढा’ और अक्षय कुमार की ‘रक्षा बंधन’ दोनों ही फिल्मों को जनता के विरोध का सामना करना पड़ा है। इसी विरोध के चलते दोनों फिल्में टिकट खिड़की पर बुरी तरह असफल हुई हैं। अक्षय कुमार की ये लगातार तीसरी असफल फिल्म है। वहीं लम्बे अरसे बाद वापसी कर रहे आमिर खान के लिए ‘लाल सिंह चड्डा’ की असफलता एक बड़ा झटका है। हो सकता है आगे चलकर विदेशी भूमि से वो तगड़ा मुनाफ़ा कमा लें, क्योंकि चीन में उनकी फिल्में अच्छा खासा पैसा कमाती हैं। लेकिन उनकी ब्रांड इमेज को जो झटका लगा है, उससे उबरना उनके लिए मुश्किल होगा। इन फिल्मों की असफलता से बॉलीवुड की खान तिकड़ी सहम सी गयी है, जल्द ही लम्बे समय से एक हिट फिल्म के लिए तरस रहे शाहरुख़ खान की फिल्म ‘पठान’ प्रदर्शित होने वाली है जिसके बायकॉट की चर्चा शुरू हो गयी हैं। बॉलीवुड का बुरा समय खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। हालिया प्रदर्शित फिल्मों में ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘भूल भुलैया-2’ को यदि छोड़ दें तो कोई भी बॉलीवुड फिल्म दर्शकों का प्यार जीत नहीं पायी हैं। आखिर इसकी वजह क्या है?
‘लाल सिंह चड्ढा’ की बात करें, फिल्म के विरोध से अधिक आमिर खान का विरोध दिखाई देता है। उनके द्वारा अतीत में की गयी कुछ टिप्पणियां उनके विरोध का कारण बनी हैं। 2015 में उनका ये कहना कि देश के मौजूदा वातावरण में उनकी बीवी को डर लगता है, वो अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं (यह बात अलग है कि यदि उनका डर जायज होता और वे ये देश छोड़ कर कहीं और चले गए होते तो आज उनको फिल्म की सफलता के लिए नहीं गिड़गिड़ाना पड़ता) या फिर एक टीवी साक्षात्कार में देश के मौजूदा प्रधान मंत्री को गुजरात दंगों का जिम्मेदार ठहराना। या अपने टीवी कार्यक्रम में हिन्दू समाज की कमियों को तो प्रमुखता से दिखाना लेकिन मुस्लिम समाज की कमियों पर चर्चा भी न करना। भारत विरोधी देश तुर्की के प्रमुखों के साथ सम्बंध रखना आदि कुछ ऐसे कार्य थे जिनके कारण आमिर खान देश की बहुसंख्यक जनता के निशाने पर थे। इसलिए जैसे ही फिल्म प्रदर्शित होने वाली थी, सोशल मीडिया पर फिल्म का बायकॉट करने की मुहीम शुरू हो गयी। हालांकि शुरूआती दौर में आमिर खान के तेवर नरम नहीं थे। उनको लग रहा था कि वो अपनी स्टार पॉवर पर फिल्म को हिट कराने में कामयाब हो जायेंगे। फिल्म की हीरोइन करीना कपूर भी दर्शकों को चुनौती देती नजर आ रहीं थीं, जिसको देखनी हो देखे फिल्म-कोई जबरदस्ती नहीं है। लेकिन बायकॉट की मुहीम में कमी ना होती देख कर दोनों के तेवर ढीले पड़ गए। आमिर अपने पहले के बयानों पर माफी मांगते नजर आये तो करीना भी फिल्म को बचाने के लिए बदले अंदाज में नजर आयीं। लेकिन पब्लिक इस बार माफी देने के मूड में नहीं थी। ओपनिंग के लिहाज से ‘लाल सिंह चड्ढा’ बॉक्स ऑफिस पर आमिर खान की सबसे कमजोर फिल्म साबित हुई।
आमिर खान एक ओर तो पब्लिक से अपने पुराने बयानों के लिए माफी मांग रहे थे, वहीं दूसरी ओर उनकी फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ की कहानी ये बता रही थी कि आमिर खान सुधरने वाले नहीं हैं। जिस तरह से उन्होंने मंदबुद्धि नायक को भारतीय फौज में दिखाया है, वह उनकी खुराफाती फितरत का परिचायक है। क्या भारतीय फौज में इस तरह की भर्तियां की जाती हैं? आज तक तो सुना नहीं। अगर फौज में ऐसा नहीं होता तो सेंसर ने कैसे इसको पास कर दिया। क्या ऐसा सम्भव है कि भारतीय सेना पर गोली चलाने वाले पाकिस्तानी आतंकवादी को बचा कर उसको भारतीयों में रखा जाए? आगे चलकर उसका हृदय परिवर्तन हो और उसके साथ व्यापार किया जाये, पैसा कमाया जाए? वास्तव में मूल फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है। शायद आमिर खान अपनी पाकपरस्ती में ये भूल गए कि पाकिस्तानी सेना और आतंकवादियों ने भारतीय जवानों के साथ किस तरह का सुलूक किया था। सेना से जुड़े दृश्यों को एक बार सेना को दिखा कर, उनकी सहमति से दिखाया जाना चाहिए, क्या सेना की सहमति इसमें शामिल है? भारतीय सेना के इस तरह के चित्रण की जवाबदेही तय होनी चाहिए। विदेशी बहुचर्चित फिल्म ‘फारेस्ट गंप’ की अधिकृत रीमेक होने का दावा करने वाली ये फिल्म सहजता से कभी भी मूल फिल्म से अलग हो जाती है और अपना एजेंडा दिखाने लगती है। इसलिए आमिर! जब आपकी नीयत ही खराब थी, तो आपकी फिल्म का यही हश्र होना था। अब आप अपने घर पर तिरंगा फहराएं, देश से माफ़ी मांगे, अपने बच्चों से फिल्म देखने की अपील करवाएं, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। आपकी कथनी और करनी में अंतर सबको दिखाई दे रहा है।
वहीं अक्षय कुमार की ‘रक्षा बंधन’ को लेखिका कनिका ढिल्लों की अपनी पुरानी टिप्पणियों का खामियाजा भुगतना पड़ा। बायकॉट टीम ने उनका कच्चा चिट्ठा खोलते हुए उन्हें ऐसा ट्रोल किया कि सोशल मीडिया पर बायकॉट ‘रक्षा बंधन’ शुरू हो गया। ‘रक्षा बंधन’ अक्षय कुमार की लगातार तीसरी फ्लॉप है।
इससे पहले रनबीर कपूर की ‘शमशेरा’ में संजय दत्त के खलनायक किरदार को तिलकधारी दिखाकर फिल्म निर्माताओं ने पंगा ले लिया था। फलस्वरूप इस फिल्म का भी बायकॉट हुआ और बॉक्स ऑफिस पर इसका धंधा भी ठन-ठन गोपाल हो गया। आखिर कैसे आप समाज के एक वर्ग का चित्रण इस तरह से कर सकते हैं। शायद इसलिए क्योंकि ये समाज आपके खिलाफ फतवा जारी नहीं करता। आपका सर तन से जुदा करने के लिए नहीं कहता। आखिर कब तक इनके सब्र का इम्तिहान लोगे, आखिर कब तक?
लेकिन क्या बॉलीवुड इन असफलताओं से कोई सबक सीख रहा है? ऐसा लगता तो नहीं। अभी हाल ही में चर्चित निर्देशक अनुराग कश्यप ने ये कहा है कि देश की आजादी को 75 वर्ष हो गए हैं, लेकिन बॉलीवुड आज भी आजाद नहीं हो पाया है। फिल्मों की असफलता का कारण उन्हें लगता है कि आज देश के जो हालात हैं लोगों को पनीर पर जीएसटी देना पड़ रहा है, लोगों के पास टिकट खरीदने के पैसे नहीं हैं। जी अनुराग जी! आपने एक बात तो सही कही कि आज 75 वर्षों के बाद भी बॉलीवुड आजाद नहीं हो पाया है। अगर बॉलीवुड आजाद होता और सेलेक्टिव विमर्श से हट कर काम कर रहा होता तो आज उसकी ये दुर्गति नहीं होती। जिस तरह का नेरेटिव बॉलीवुड ने इतने लम्बे समय तक मनोरंजन के नाम पर परोसा है उसका घड़ा एक न एक दिन फूटना ही था, जो अब फूट रहा है। आपके पैसे कमाने की भूख ने ना जाने कब फिल्मों से भारतीयता ख़तम कर दी, पता ही नहीं चला। कब मंदिरों से निकाल कर हम अनजाने ही दरगाहों में पहुंचा दिए गए, हमें ख़बर ही ना हुई। हमारे पर्व-त्यौहार फिल्मों से गायब हो गए। भगवान को कोसना, गाली देना फैशन बन गया और अल्लाह की इबादत धर्म। 786 का बिल्ला लगा कर, गले में क्रॉस लटका कर, शर्ट के दो बटन खोलकर घूमना वक्त की जरूरत बन गया। लेकिन साहब आज आपकी फिल्मों का फ्लॉप होना बदलते वक्त की आवाज है। इसको अभी अगर आपने नहीं सुना तो वो वक्त दूर नहीं जब आप सफलता के लिए तरसेंगे।
और हां अगर लोगों के पास पैसे नहीं होते तो ‘कश्मीर फाइल्स’, ‘आरआरआर’, ‘पुष्पा’, ‘भूलभुलैया-2’, ‘केजीएफ-2’ आदि जैसी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं होतीं। फिल्मों की असफलता का दोष दूसरों को देने की बजाय स्वयं चिंतन करें। काठ की हांडी बहुत चढ़ा ली, अब अपने पापों का प्रायश्चित करो। वो सिनेमा बनाओ जिसमें देश की माटी की सुगंध हो। कड़वा भी हो लेकिन सच हो। अभिव्यक्ति की आजादी तो हो, उसका दुरुपयोग ना हो। देश का सम्मान बढ़े। आम आदमी की भावनाओं-संवेदनाओं को आवाज़ मिले।
बायकॉट किसी समस्या का हल नहीं है। लेकिन बिना बायकॉट के आपकी समझ में भी कुछ नहीं आता। आज ‘लाल सिंह चड्ढा’ की असफलता ने आमिर खान के होश ठिकाने लगा दिए हैं। आखिर कब तक आम लोगों की भावनाओं से खेलोगे मिस्टर परफेक्शनिस्ट? ये पब्लिक है सब जानती है और अब तुम्हें और तुम्हारे जैसे फिल्मी सौदागरों को जवाब भी देना शुरू कर दिया है। ये शुरुआत है, अंत नहीं। अभी भी नहीं सुधरे, तो ख़तम हो जाओगे। देश बदल चुका है, अब तुम भी बदल जाओ। वरना… बायकॉट कायम रहेगा।