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वर्क फ्रॉम होम यानी घर से काम

A man working from home, using computer and being distracted by a cat and a dog while having a remote meeting.

वर्क फ्रॉम होम यानी घर से काम

by मुकेश जोशी
in विशेष, सामाजिक, साहित्य, सितंबर- २०२२
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कोरोना नाम की चायनीज महामारी ने दुनिया भर को घर में घुसेड़ दिया। घर से बाहर निकलो तो कोरोना भले ही धर दबोचे कि नहीं लेकिन नुक्कड़ चौराहे पर खड़ा डंडाधारी जवान अवश्य पकड़ लेता था। लिहाजा मनुष्य बेचारा घर के बॉस के चंगुल में दबा-दबा सा घर से ही काम करने लगा जिसे नाम दिया गया ‘वर्क फ्रॉम होम’ अर्थात घर से कार्य। कोरोना ने यह नया ‘वर्क कल्चर’ स्थापित किया क्योंकि अब तक तो नौकरी मतलब दफ्तर या ऑफिस पहुंचना जरूरी। कोरोना ने इतनी आजादी अवश्य दे दी कि अब आप घर पर ही पड़े-पड़े (ज्यादातर अधिकारी कर्मचारी ऐसे ही होते हैं) लेटे-लेटे या बैठे-बैठे और कई बार तो खड़े-खड़े भी घर से काम निबटाते देखे गए हैं। इस वर्क फ्रॉम होम कल्चर से कम्पनी भी खुश और कर्मचारी भी। कम्पनी या नियोक्ता इसलिए खुश हैं कि बड़े बड़े कॉरपोरेट दफ्तर के खर्चे बिजली पानी, चाय, कैंटीन, पेट्रोल के हजारों रुपए रोज का खर्च अब फिजूलखर्ची लगने लगा था। और घर से काम करने वाले कर्मचारी/अधिकारी और ज्यादा खुश कि रोज-रोज ऑफिस जाने का टंटा कटा। हर रोज कपड़े बदलने का, लंच बॉक्स ले जाने का, रोज नई टी शर्ट/शर्ट बदलने, रोज नई सब्जी बनवाने, रोज शेव बनाने, रोज पेट्रोल भरवाने के झंझट से मुक्ति मिली। बस ऑफिस की सहकर्मिणियों से सीधे चोंचबाजी के अवसर दुर्लभ हो गए थे उसकी जगह घरवाली से ही रोज माथाकूट हिस्से में आ गई थी। वर्क फ्रॉम होम का एक फायदा ये भी हुआ कि लैपटॉप/कम्प्यूटर के सामने पूर्ण गणवेश धारण करने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। घर का ही शर्ट ऊपर डाला और लग गए काम पे। नीचे पेण्ट पहनी या नहीं कौन देख रहा है। यही हाल महिलाकर्मियों का भी था। नित नए मेकअप से छुटकारा मिला। हर दिन नए नेल पेंट, लिपजेल, नई फेसक्रीम, नित नए मैच करती ड्रेसेस। बाप रे कितना टाइम लगता था इस सब में। फिर पतिदेव और बच्चों के लंच बॉक्स का हर रोज का सुबह से होने वाला टेंशन। इससे भी मुक्ति मिली। लेकिन वर्क फ्रॉम होम का बड़ा नुकसान यह भी हुआ कि आजादी खत्म सी हो गई और घरों में कैद होकर रह गए। घरेलू महिला हो या कामकाजी। सब पति बच्चों के हुक्म के गुलाम बनकर रह गईं। सुबह से शाम तक उनकी फरमाइशें पूरी करते गुजरतीं। नित नए व्यंजन/पकवान बनवाए जाने लगे। खा-खा कर आदमी मुटियाने लगे थे। जैसे-जैसे कोरोना का असर कम होने लगा लोग वापस नॉर्मल होने लगे। क्योंकि कोरोना में आग और घी पास में धरे धरे न सिर्फ पिघलने लगे वरन चेतने भी लगे। कोरोना के वर्क फ्रॉम होम ने जहां सौहार्द्र बढ़ाया वहीं पास रहने पर दूरियां भी बढ़ने लगीं क्योंकि एक दूसरे के लक्षण सामने दिखने लगे थे। जिनसे भागा नहीं  जा सकता था। यह तो झेलना आवश्यक ही था जाएं तो जाएं कहां वाली स्टाइल में।

सच कहें तो कोरोना ने हम सभी को एक नई जीवन शैली दी जो कोरोना के चले जाने के बाद भी चल रही है। बहुत याद आओगे कोरोना अपने वर्क फ्रॉम होम की वजह से।

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