चलो नाना-मामा के घर

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साल भर पढ़ाई के बोझ से लदे हुए बच्चों को गर्मी की छुट्टियों का इंतजार रहता है। कब परीक्षाएं समाप्त हो और हम फ्री होकर अपने ननिहाल जा सके। बच्चे ही नहीं उनकी मम्मियों को भी बच्चों से ज्यादा इंतजार रहता है कि जल्दी से मायके जाने का। बच्चों को उनकी मां यह लालच देकर पढ़ाती हैं कि फटाफट पढ़ लो परीक्षा के बाद तुमको नाना-नानी के घर लेकर चलूंगी।

पाकिस्तान में – बिजली बन्द तो बच्चे बन्द

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हमारे 24*7 चैनलों का जब राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय खबरों से भी पेट नहीं भरता तो वे रात 10 बजे बाद पाकिस्तान की तरफ कूच कर देते हैं। हम सभी के लिए पाकिस्तान वैसे ही खबरों का जखीरा है जैसे नापाक चैनलों के लिए हिंदुस्तान की खबरें। हालांकि वहां के खबरचियों को…

नए साल के संकल्पों पर भारी पड़ती ठंड

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हर साल की तरह नया साल फिर आ गया। सदियों से एक साल जाता है, दूसरा आ जाता है। यह सिलसिला अनंत है जो सदियों तक चलता ही रहेगा। हर नए साल के आगमन में कुछ उत्साही लोग हर बार की तरह कुछ नए रेजोल्यूशन, कुछ नए संकल्प, कुछ नए…

मार्केट और मार्केटिंग में बदलाव

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दुनिया बदली तो दुनियादार भी बदल गए। पहले बगैर प्रचार के भी दुनिया चल ही रही थी। लोग मजे से खा, पी, घूम फिर रहे थे। लोगबाग भी सीधे सादे थे न उन्हें खाने पीने के लिए प्रचार की जरूरत थी न जाने आने के लिए। घर के खाने या फिर घर लाकर खाने में ही विश्वास करता था तब का व्यक्ति। दो जोड़ी कपड़ों में साल भर निकाल देता था।

वर्क फ्रॉम होम यानी घर से काम

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A man working from home, using computer and being distracted by a cat and a dog while having a remote meeting.
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कोरोना नाम की चायनीज महामारी ने दुनिया भर को घर में घुसेड़ दिया। घर से बाहर निकलो तो कोरोना भले ही धर दबोचे कि नहीं लेकिन नुक्कड़ चौराहे पर खड़ा डंडाधारी जवान अवश्य पकड़ लेता था। लिहाजा मनुष्य बेचारा घर के बॉस के चंगुल में दबा-दबा सा घर से ही काम करने लगा जिसे नाम दिया गया ‘वर्क फ्रॉम होम’ अर्थात घर से कार्य।

हरल्ला चिन्तन

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जब-जब चुनाव होते हैं, तब एक पार्टी जीतती है। दूसरी तीसरी चौथी पांचवी हारती है। जो हारते हैं, वे मन ही मन जानते हैं कि हार कितनी बुरी होती है पर उसी मन को समझाते हैं कि चुनाव में हार जीत तो चलती ही रहती है क्योंकि विजेता तो एक ही होता है न। जो जीता वही सिकन्दर टाइप से। जीत के हजार बाप हो जाते हैं और हार बिचारी बेबाप सी, अनाथ लावारिस-सी किसी अंधेरे कोने में बिसूरते रहती है

बोनसाई हो जाना रावण का..

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कस्बे के बच्चे उदास हैं। बच्चों की उदासी मुझसे देखी नहीं जाती। उनकी उदासी की वजह जाननी चाही तो उन्होंने कहा, अंकल इस बार दशहरे पर रावण  देखने भी नहीं जा पाएंगे। वर्चुअल क्लास की तरह ही वर्चुअल ही रावण दहन देखना पड़ेगा। जिन्दगी में थोड़ा-बहुत असली भी तो होना…

खामोश! प्रिंस टूर पर हैं…

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“देश उबल रहा है, किसान उबल रहे हैं, अदालत उबल रही हैं मगर राजकुमार कहीं ठण्ड में दुबके बैठे हैं। उनके टुटपुंजिये प्रवक्ता ही ऊटपटांग बयान देकर भाग निकलते हैं बस। खाामोश, चूंकि प्रिंंस टूर पर है।”

मानसून का आ जाना कोरोना में..

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“घर ही नहीं बाहर भी ये मौसम और ये दूरी सभी को अखर रही है.. कि कब कोरोना का सत्यानास जाए और पहले की तरह हम खूब खाए पियें और हुलसकर अपनों से गले मिलें, जिससे बारिश की बूंदों में प्रेम की फुहार मिलकर बरसे...”

इत्ते टेंशन…

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“चीनी चपटा नासमिटा कोरोना, अम्पन तूफान, पाकिस्तान से टिड्डियों का आतंकी हमला, ये मजदूर अलग नी मान रिये... उधर अपनी फटी जेब वाले भिया भी नित नई हेयर स्टाइल में टिड्डियों से भी खतरनाक हमला सरकार पर बोलते हैं। अब आप ही बताव कि इत्ते टेंशन में कोई मजे में कैसे रहे?”

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