क्या रविन्द्र जैन याद हैं? रामानन्द सागर कृत धारावाहिक रामायण के गीतकार व संगीतकार। इन्होंने रामायण से पहले 36 फिल्मों में संगीत दिया। इसमे 80%सफल रही। रामायण के बाद इन्हें केवल एक बड़ी फ़िल्म राजकपूर की हीना मिली। अन्य कोई भी बड़े बैनर की फ़िल्म नहीं मिली। रविन्द्र जैन के मोहक संगीत को आप यूट्यूब पर सुन सकते हैं।
इसी तरह धारावाहिक महाभारत के संगीतकार राजकमल को अघोषित रूप से बहिष्कार किया गया।
इसके विपरीत गुलशन कुमार के हत्यारोपी नदीम इंग्लैंड में बैठकर भी बॉलीवुड से कमाई करता रहा।
महेश भट्ट के बेटे राहुल भट्ट से जब डेविड हेडली के विषय में जांच अधिकारियों ने पूछताछ की तो महेश भट्ट ने प्रधानमंत्री मनमोहन को पत्र लिखा। इसके बाद जांच एजेंसियों ने राहुल भट्ट से पूछताछ बंद कर दी। 26/11 RSS की साजिश पुस्तक के विमोचन में महेश भट्ट मुख्य था।
जावेद अख्तर ने 1970 से 1982 तक लेखक सलीम के साथ मिलकर 24 बॉलीवुड फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी। इनमें से ज्यादातर फिल्में अंडरवर्ल्ड पर अपराध आधारित कहानियां थीं।
इस अवधि के दौरान, बॉम्बे में पांच खूंखार अपराधी थे – हाजी मस्तान, यूसुफ पटेल, करीम लाला वरदराजन मुदलियार और दाऊद इब्राहिम। इनमें से चार मुसलमान थे। पुलिस रिकॉर्ड से पता चलता है कि मुंबई में 80 प्रतिशत अपराधी मुसलमान थे।
लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि उसी दौरान बॉम्बे में जावेद अख्तर और सलीम जावेद ने 24 फिल्मों की कहानी लिखी, उनकी स्क्रिप्ट के खलनायक कभी मुसलमान नहीं थे। यह जावेद अख्तर को लोकप्रिय फिल्मों के शक्तिशाली माध्यम से जनता की सोच को प्रभावित करने के लिए अचूक पूर्वाग्रह दिखाता है।

जावेद अख्तर द्वारा लिखी गई फिल्म दीवार से जुड़ी कहानी जानी-पहचानी है। फिल्म का नायक एक हिंदू है, एक नास्तिक है जो हिंदू धर्म से इतनी नफरत करता है कि वह मंदिर की सीढ़ियों पर भी पैर नहीं रखता है। वह भगवान के प्रसाद को छूता तक नहीं है लेकिन वही नास्तिक हिंदू नायक, एक इस्लामी धार्मिक प्रतीक है, उसकी बांह पर संख्या 786 बिल्ला है जिस पर वह गहरा विश्वास करता है। यही बिल्ला उसकी जान बचाता है जब एक गोली उसे लगती है।
1983 से 2006 तक जावेद अख्तर ने 14 और फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी लेकिन उन 14 फिल्मों में भी एक भी मुस्लिम किरदार को नेगेटिव नहीं दिखाया, यानी 1970 से 2006 तक कुल 38 फिल्मों में जावेद अख्तर के किस्सों में एक भी मुस्लिम किरदार को विलेन के तौर पर नहीं दिखाया गया। ध्यान रहे उनमें से लगभग 60% फिल्में शुद्ध अपराध की कहानियों पर आधारित थीं।
उन दिनों मुंबई में मुस्लिम गुंडों, तस्करों, हत्यारों, आतंकवादियों का अपराध कहर ढा रहा था। जिसके बारे में पूरा देश जानता है लेकिन जावेद अख्तर की लिखी हर कहानी का खलनायक हमेशा हिंदू था।