पौराणिक कथाएं बताती हैं कि भगवान शिव बार बार लम्बे समय तक तपस्या में चले जाते हैं। समय अपनी गति से बीतता जाता है, पर बाबा संसार और संसारिकता से मुक्त हो कर ध्यानमग्न पड़े रहते हैं। फिर एक समय आता है, जब वे जगते हैं। वे जगते हैं सारे असंतुलन को ठीक करने के लिए, भक्तों पर आई समस्त विपत्तियों को दूर करने के लिए, आसुरी शक्तियों का नाश करने के लिए… जगने के बाद शीघ्र ही वे धर्म की स्थापना कर भी देते हैं।
बाबा का तपस्या में जाना भी अवश्यम्भावी है, तो एक न एक दिन संसार के हित के लिए तपस्या छोड़ कर वापस लौटना भी अवश्यम्भावी ही है। नकारात्मक शक्तियों का प्रभावी होना और उसके कारण धर्म की हानि होना भी सत्य है, तो एक न एक दिन धर्म की पुनर्स्थापना होना भी परम सत्य है। समय की गति को “समय चक्र” यूँ ही तो नहीं कहा गया न! चक्का बार बार एक ही चाल दुहराता है।
कभी कभी लगता है कि ईश्वर जानबूझ कर आसुरी शक्तियों को प्रभावी होने देते हैं, ताकि मनुष्यों को संघर्ष का कारण मिले। बने रहने के लिए संघर्ष आवश्यक है। सभ्यता की आयु संघर्षों से ही बढ़ती है, अन्यथा निश्चिन्त दिनों की शांति उसके बल को मार देती है। जिनमें अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते रहने की शक्ति और जिद्द हो, वे असंख्य पराजयों के बाद भी अंततः विजयी होते हैं।
यह सोचना तनिक अजीब है, पर यदि गजनवी ने सोमनाथ ध्वंस न किया होता तो भीमदेव को नव सृजन का अवसर कैसे मिलता? राजा भोज युग युगांतर के लिए किस्से कहानियों के नायक कैसे बनते? नकारात्मक शक्तियों का उत्थान धर्म की पराजय नहीं, बल्कि एक सामान्य प्रक्रिया है। आसुरी शक्तियां ही धर्म की शक्ति को उभरने का मार्ग बनाती हैं। जब कंस और दुर्योधन जैसे अत्याचारियों की शक्ति प्रबल होती है, तभी तो संसार युद्धमूमि में देवत्व लेकर उतरे कृष्ण द्वारा “धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे!” का उद्घोष सुन पाता है।
सोमनाथ से याद आया, जब गजनवी ने आकमण किया था तब हजारों निहत्थे लोगों ने उसका प्रतिरोध करते हुए अपनी आहुति दी थी। निकटवर्ती गांवों शहरों के अधिकांश पुरुष सोमनाथ ध्वंस की खबर सुनकर निहत्थे ही दौड़ पड़े थे। यह जानते हुए भी कि वे उस राक्षस से जीत नहीं पाएंगे, वे लड़े… लड़ने की यही जिद्द सोमनाथ के पुनर्निर्माण का आधार बनी।
आप यदि संघर्षों से भागें नहीं, तो धर्म की पुनर्स्थापना कठिन नहीं है। समय सनातन का समस्त वैभव उसे एक न एक दिन लौटा ही देगा, आपको बस लड़ते रहना होगा। एक न एक दिन सप्तसिंधु से गोदावरी तक वेदमन्त्रों की ध्वनि अवश्य गूंजेगी, बस आपके हृदय में सुनने की इच्छा प्रबल हो।
लगता है, बाबा की तपस्या समाप्त हो रही है। वे जग रहे हैं। यह उत्सव का अवसर है। यह आपके भरोसे की पुनर्स्थापना का दिन है, धर्म की पुनर्स्थापना के युग के निकट होने का संकेत है… हर हर महादेव!
– सर्वेश तिवारी श्रीमुख