सरकार पाते ही सत्ता के मद में चूर नेहरू जी ने संघ को दबाने का प्रयास किया जिसके प्रतिफल में संघ के कई अनुषांगिक संगठन खड़े हो गए। इसके उपरांत संघ की ओर सीधे तौर पर दृष्टि डालने की नेहरू जी की कभी हिम्मत ही नहीं पड़ी और एक दिन ऐसा भी आया जब 1963 के गणतंत्र दिवस की परेड में राजपथ पर भारतीय सेना के साथ परेड करने का संघ को न्यौता मिला वह भी नेहरू जी की तरफ से।
फिर वर्तमान समय की सबसे वयोवृद्ध पार्टी का आज का नेतृत्व संघ पर सीधा प्रहार करने की सोच भी कैसे सकता है तब जबकि संघ भारत ही नहीं विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन बन चुका है और कॉंग्रेस की इतनी ही हस्ती नहीं बची कि वह अपने दम पर लोकसभा में प्रतिपक्ष का नेता भी बना पाए।
संघ का ही एक अनुषांगिक संगठन भाजपा एक राजनीतिक दल है जिसका विरोध करना उनके विपक्षी दलों का कर्तव्य भी है काम भी। भाजपा 10 करोड़ भारतीयों का प्रतिनिधित्व करने वाला दल है अतः इस पर किए गए प्रहार केवल 10 करोड़ लोगों तक ही सीमित रहेगा किंतु संघ भारत एवं विदेशों में रहने वाले लगभग 60 करोड़ भारतवंशियों का मातृ संगठन है। संघ का कार्यक्षेत्र कोई एक वर्ग एक इलाका अथवा एक संस्थान तक सीमित न होकर देश के सभी विषयों/ आयाम/क्षेत्रों/ संस्थाओं पर संघ का सीधा हस्तक्षेप है।
क्या संघ की इस शक्ति को वर्तमान कॉंग्रेस नहीं समझती या अपरिपक्व नेतृत्व समझने को तैयार ही नहीं है। क्या आज कॉंग्रेस उन परजीवियों के चंगुल में फंस गई है जो कहता है भगवा जलेगा।
वर्तमान कॉंग्रेस का अपरिपक्व नेतृत्व भारतीय मूल्यों से इतना दूर हो चुका है कि भारत का वह इतिहास भी भूल गया कि अहंकार और घृणा के आकंठ में डूबे रावण ने हनुमानजी की पूछ में आग लगा कर खुद की ही लंका का दहन कर बैठा था। आज कॉंग्रेस संघ के गणवेश में आग लगा जश्न मना रही है इस जश्न को अंतिम परिणाम समझने की भूल न करें, लंका – दहन अभी बाकी है।
– अमित श्रीवास्तव