शरद पूर्णिमा: एक शाम दोस्तों के नाम

एक समय था, जब शरद पूर्णिमा के दिन जगह-जगह पूरी रात सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे, इसे युवाओं का त्यौहार माना जाता था। संगीत की महफिल, नाटक का मंचन, कविताओं का पठन, सामूहिक या व्यक्तिगत नृत्य इत्यादि का प्रदर्शन करके देर रात जागरण होता था। लगभग पूरे साल इस त्यौहार की राह देखी जाती थी। आज युवाओं के कार्यक्रम के नाम पर होने वाली फूहड़ रेव पार्टी से यह कहीं ज्यादा सुंदर, मनभावन और अपनी संस्कृति से जुड़ा हुआ है। क्या इसे पुन: वही स्वरूप दिया जा सकता है?

शरद पूर्णिमा का जब भी नाम आता है, मुझे बचपन याद आ जाता है। मेरी मां की सहेलियां और उनका त्रिवेणी क्लब। अब आप सोच रहे होंगे, क्लब है, तो लेडीज किटी पार्टी और ताश वगैरे जैसी कुछ चीजें होंगी। लेकिन इनका ये त्रिवेणी क्लब कुछ अलग ही था। हर साल शरद पूर्णिमा की रात किसी एक महिला के घर की छत पर कार्यक्रम का आयोजन होता था। जिसमें सारी महिलाएं, हम बच्चे मिल कर सांस्कृतिक कार्यक्रम करते थे, नृत्य, गाने, कविताएं, नाटक। एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियां। हम सब मिलकर इसके बहुत मजे लेते थे।

आज की ‘एंजॉय’ करने की संकल्पनाएं बहुत बदल गई हैं। दोस्तों के साथ लेट नाइट पार्टीज, ड्रिंक्स, मस्ती, यह सब मजे की व्याख्याएं हैं। असल में मैं सोचती हूं, कि जब हम सब साथ मिलकर कोजागिरी पूर्णिमा मनाते थे, तो कितना मजा आता था। भेल और मसाला दूध के स्वाद से मन भर जाता था। वैसा स्वाद आज की इन पार्टीज में क्यों नहीं आता? उसका कारण यह है, कि हमारा सेलिब्रेशन, काफी हद तक हमारी जड़ों से जुड़ा होता था, जो शायद आज कहीं ‘मिसिंग’ है। हम साथ में एक अलग ही मजे के साथ कुछ नया करने के लिये लिये जुट जाते थे। शरद पूर्णिमा के एक महीने पहले से हम तैयारियों में लग जाते थे। नाटिकाओं और नृत्य की प्रैक्टिस, गाने की तैयारी, कार्यक्रम का सूत्रसंचालन सब अच्छे से हो, इसलिये हर कोई एक साथ आकर सबसे अच्छा काम करने की कोशिश करता था, और इसीलिये यह कार्यक्रम हर साल बहुत अच्छा होता था।

तो क्यों ना हम भी इस साल से नये तरीके से शरद पूर्णिमा मनाएं। जिस तरह से हम वीकएंड गेट टुगेदर करते हैं, जिसमें कई लोगों के लिये  गपशप, मस्ती, वेबसीरीज देखना या फिर ड्रिंक्स और डिनर होता है, उसी तरह से सारे दोस्त एक साथ मिलकर कुछ नया और कुछ अच्छा करें।

  1. एक गेट टुगेदर हमारी परम्पराओं के नाम : हम भले ही इसे एक गेट टुगेदर का नाम दे दें, लेकिन हम अलग और खास गेट टुगेदर की तैयारी पहले से ही कर सकते हैं। हमारी परम्पराएं, और हमारे त्यौहारों को एक धागे में पिरोकर हम एक कार्यक्रम के तौर पर प्रस्तुत कर सकते हैं। इसमें हर एक त्यौहार को गाने या नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सकता है। इससे सभी को हमारी संस्कृति की एक झलक मिलेगी, साथ ही साथ महिला, पुरुष सभी का सहयोग भी रहेगा। सब साथ मिलकर एक अच्छे कार्यक्रम का आनंद ले सकते हैं। कार्यक्रम के बाद हर कोई अपने घर की बनी एक खास डिश सभी को खिलाएगा। ऐसे में कार्यक्रम का आनंद भी आएगा, और किसी एक पर काम भी नहीं पड़ेगा। गेट टुगेदर के साथ अपनी जड़ों से जुड़ा कुछ अच्छा करने का मौका भी मिलेगा।

  2. ड्रेसकोड के साथ गेट टुगेदर : जैसे ऑफिस और कॉलेज में ट्रेडिशनल डे होता है, या देसी डे होता है, उसी तरह हम दोस्तों के साथ शरद पूर्णिमा की शाम भारतीय परिधान पहनकर इस खास ड्रेसकोड के साथ इस कार्यक्रम को मना सकते हैं। अब आप कहेंगे केवल एक ड्रेसकोड से क्या होने वाला है? तो इससे हमारे भारतीय परिधानों को हवा लगेगी, साथ ही अपनी संस्कृति को हम सब के सामने खुले दिल से रख सकते हैं। हमारे भारतीय परिधान कितने सुंदर लगते हैं, यह दुनिया भी तो देखे।

  3. भारतीय खास पकवानों के साथ मनाएं कोजागिरी पूर्णिमा : शरद पूर्णिमा के दिन खास होता है, केसर वाला मसाले का दूध, जिसमें डलती है ढेर सारी चिरौंजी, जिसे बड़े ही प्यार के साथ औटाया जाता है। औटाया हुआ दूध कोजागिरी के दिन कुछ अलग ही खास स्वाद वाला लगता है। इस दिन चंद्र की किरणों का अमृत इस दूध में उतरता है। ऐसे ही पारम्परिक पकवान, जो हम कभी कभी ही बनाते हैं, या जो शायद हमने कभी नहीं बनाए हैं, लेकिन हमारी संस्कृति में खास स्थान रखते हैं, जैसे पूरणपोली, श्रीखंड, गट्टे की सब्जी, सरसों का साग, मक्के की रोटी, या फिर ऐसा ही कुछ पारम्परिक, हम इस दिन बना सकते हैं। इन पकवानों के साथ इस गेट टुगेदर का मजा दुगना हो जाएगा।

हम चाहे जो भी करें, लेकिन इस एक दिन को यदि हम अपने दोस्तों के साथ अपनी परम्पराओं का ध्यान रखते हुए मनाएं, तो इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाएगा। हम कभी-कभी इस चकाचौंध में अपनी जड़ों से दूर हो जाते हैं। लेकिन इस एक खास शाम के साथ, अपने पारम्परिक परिधानों को पहनते हुए, पारम्परिक खाने का साथ, अपनों के साथ, दोस्तों के साथ मनाएं तो कितना अच्छा होगा। शायद दोस्तों के साथ हम फिर एक बार अपने बचपन के उस वक्त में पंहुच जाएं, जहां पर हम दिल खोलकर बिना किसी चकाचौंध के अपनी परम्पराओं का मजा लेते थे।

कहते हैं, शरद पूर्णिमा की रात चांद की किरणों से अमृत बरसता है। और अमृत की किरणें इस दिन मसाला दूध को दिखाई जाती हैं, उसी के बाद सब ये दूध पीते हैं। यह भी कहते हैं, इस रात श्रीकृष्ण जी ने महारास रचाया था। बस इन्हीं कुछ पलों की याद में क्यों ना हम भी साथ मिलकर इस एक शाम के मजे लें।

क्यों ना एक शाम हम अपने दोस्तों और परम्परा के नाम कर दें? आपका क्या खयाल है?

 

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