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सामाजिक चेतना का रामोदय

सामाजिक चेतना का रामोदय

by हिंदी विवेक
in अध्यात्म, विशेष, संस्कृति, सामाजिक, सांस्कुतिक भारत दीपावली विशेषांक नवंबर-2022
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राम जन-जन के मन में बसते हैं। उनकी महत्ता बताने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन उनके मंदिर को दोबारा बनवाने के दौरान आई समस्याओं ने लोगों को काफी व्यथित किया क्योंकि रामराज्य के पुनर्स्थापना की आवश्यकता देश का प्रत्येक व्यक्ति महसूस कर रहा है। अयोध्या में बन रहे भव्य-दिव्य राम मंदिर ने समाज की सांस्कृतिक चेतना को जागृत कर प्रत्येक वर्ग और सम्प्रदाय को जोड़ने में महती भूमिका का निर्वहन किया है।

सके पहले कि अयोध्या में भगवान श्रीराम मंदिर के आंदोलन और निर्माण कार्य से सामाजिक बदलाव पर चर्चा की जाय, पहले कुछ बातों को समझ लेना आवश्यक होगा। मंदिर भगवान का होता है। भगवान भक्त के होते हैं और भक्त भगवान के होते हैं। मंदिर, भगवान और भक्त के मिलन का शक्ति केंद्र है। भक्त मंदिर में भगवान से अपनी व्यथा सुनाने जाता है और अहोभाव प्रदर्शित करते हुए प्राप्त विषय व वस्तुओं के प्रति धन्यवाद देने भी जाता है। हर हिंदू के जीवन के केंद्र में उसके इष्ट देव होते हैं और उन इष्ट का एक मंदिर होता है। वह संसार में कहीं भी चला जाए उसे शांति नहीं मिलती किंतु यदि वह अपने इष्ट के मंदिर में जाकर अपने इष्ट की मूर्ति के समक्ष बैठता है तो वह गहन शांति पाता है। ईश्वर की मूर्ति को चित्त में धारण किया जाता है क्योंकि हम ईश्वर की जिस अवतार या रूप में पूजन करते हैं, उसका चरित्र पावन व अनुकरणीय होता है। जब किसी एक मंदिर में इतनी शक्ति होती हो कि वह व्यक्ति को पुनः ऊर्जा से भर देता हो तो सोचिये कि करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र अयोध्या का राम मंदिर लोगों को क्यों नहीं एकत्रित, संयोजित और जाग्रत करेगा? अयोध्या के राम मंदिर में रामलला विराजे हैं। राम के जीवन चरित्र को जो आत्मसात करेगा, वह उस परम ऊर्जा से जुड़ाव अनुभव करेगा ही।

दोहावली में उद्धृत है-

राम नाम रति राम गति, राम नाम बिस्वास।

सुमिरत सुभ मंगल कुसल, दुहुं दिसि तुलसीदास॥

तुलसीदास जी कहते हैं कि जिसका राम नाम में प्रेम है, राम ही जिसकी एकमात्र गति है और राम नाम में ही जिसका विश्वास है, उसके लिए राम नाम का स्मरण करने से ही दोनों ओर (इस लोक में और परलोक में) शुभ, मंगल और कुशल है।

अब राम और अयोध्या में राम मंदिर के प्रभाव तथा प्रासंगिकता का उदाहरण देखते हैं। कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें धारावाहिक रामायण में भगवान राम की भूमिका निभाने वाले अभिनेता अरुण गोविल को एक महिला प्रणाम कर रही है। वीडियो में स्पष्ट दिख रहा है कि महिला की आंखें भरी हुई हैं। कंठ रुंधे हुए हैं। होंठ कांप रहे हैं। करबद्ध होकर वह अपनी भावनाएं व्यक्त कर रही है और बार-बार गोविल के पैर छू रही है। अरुण गोविल स्तब्ध होकर उसे देख रहे हैं। उसे ढाढस बंधा रहे हैं और अपना पैर छूने से मना कर रहे हैं। इसी तरह का एक और समय याद करिये, जब कोरोना काल में लोगों को घरों में रहने की सलाह दी गई थी। सरकार ने उस दौरान एक अच्छा निर्णय लिया और रामायण जैसे प्रसिद्ध धारावाहिक का टीवी पर पुनः प्रसारण करवाया। उसके पश्चात महाभारत आदि धारावाहिकों का भी प्रसारण हुआ। लेकिन रामायण धारावाहिक को लोग पुनः देखने लगे और शेष धारावाहिकों की तुलना में रामायण धारावाहिक देखने वाले दर्शकों की संख्या करोड़ों में पहुंच गई। उस वक्त की टीआरपी रिपोर्ट इस बात की गवाह है। यहां यह सोचना आवश्यक है कि जब भगवान राम का रूप बना कर अभिनय करनेवाले व्यक्ति मात्र को भगवान के समान मानकर उसकी पूजा की जा सकती है, चलचित्र में दिखने वाले अभिनेता को भगवान से कम नहीं माना जाता है, तो सोचिये जो भगवान के आदर्श और आचरण को आत्मसात कर लेगा, वह व्यक्ति समाज में रामराज्य लाने हेतु प्रतिबद्ध नहीं होगा?

राम एक आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श भाई और आदर्श आराध्य देव हैं। समाज तो दूर की बात है, घर-परिवार में ही बिना राम के नाम के काम नहीं चलता। जय राम जी की, राम-राम, राम तुम्हारा भला करें, राम की मर्जी और राम जाने जैसे शब्द हम प्रायः सुनते हैं। रामराज्य की अवधारणा लोगों के मन को संतोष देती है। राम अपने शील और पराक्रम के कारण जाने जाते हैं। उन्होंने जीवन का जो आदर्श रखा, स्नेह और सेवा के जिस पथ का अनुगमन किया, उसका महत्व आज भी अक्षुण्ण है।

इतिहास गवाह है कि जब-जब भारतवर्ष की जनता बिखरी है, उसे ईश्वर प्रणीत एवं ईश्वर प्रदत्त शक्तियों से परिपूर्ण जन नेताओं ने पहल करते हुए जोड़ने का प्रयास किया है। धर्म और संस्कृति के नाम पर लोगों को जोड़ने के लिए राम मंदिर ने भी ठीक उसी तरह कार्य किया जैसे स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान हुआ था। अंग्रेजों के खिलाफ एकत्रित होने के लिए लोकमान्य तिलक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत की थी। सांस्कृतिक व धार्मिक कार्यक्रमों के माध्यम से लोग इकट्ठा होने लगे। लोग बड़ी संख्या में देवता के नाम पर एकत्रित होकर देश को दासता से मुक्त करने के लिए प्रयास करने लगे। कुछ इसी प्रकार बंगाल में भी देखने को मिला, जहां दुर्गा पूजा के दौरान इस तरह की गतिविधियों ने आकार लिया। पहले जो दुर्गा पूजा केवल राजाओं या जमींदारों के घरों तक सीमित थी, अब सार्वजनिक रूप से मनायी जाने लगी और दुर्गा पूजा का पंडाल लोक जागरण का मंच बन गया। इसी तरह लाला लाजपत राय ने लोक जागरण के लिए आर्य समाज के जरिये वेद और वैदिक विद्यालयों की स्थापना की। स्थानीय सांस्कृतिक प्रतीकों के सहारे जन मन को जोड़ने का प्रयास समय-समय पर होता आया है।

कुछ ऐसा ही देखने को मिला है जबसे अयोध्या में श्रीराम मंदिर आंदोलन की शुरुआत हुई है। श्रीराम मंदिर आंदोलन के दौरान सैकड़ों लोग मारे गए। परम पावन सरयू नदी रामभक्तों के रक्त से लाल हो गई। कई घायल हुए। कई जेल गए लेकिन राम की कृपा से राम का काम हुआ और आज अयोध्या में भव्य-दिव्य राम मंदिर भविष्य में यह संकेत करने के लिए बन रहा है कि जब-जब भारत की भूमि पर आक्रमण होगा, भारत की सांस्कृतिक विरासत को मिटाने का प्रयास किया जाएगा, तब-तब ईश्वरीय प्रेरणा से कोई न कोई लोकनायक आगे आएगा और समाज में नव चैतन्य लाने हेतु अपने जीवन को होम कर देगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जब अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनने का मार्ग खुल गया तो विरोधियों ने अपनी कोई चाल बाकी नहीं रखी। धार्मिक आंदोलन को साम्प्रदायिक और बांटनेवाला बता कर और राम सेतु को काल्पनिक बताकर अदालत में हलफनामा तक दे दिया गया। श्रीराम मंदिर निर्माण निधि का एक अभियान चलाया गया लेकिन इस अभियान का उद्देश्य केवल धनराशि जुटाना नहीं था, बल्कि यह एक प्रकार से बिखरे हुए समाज को पुनः एकत्रित कर जागृत करने का प्रयास था। यह विडम्बना ही है कि विपक्ष के संकुचित राजनीतिक दर्शन ने राम मंदिर को आस्था की बजाय राजनीतिक मोड़ देने का भरपूर प्रयास किया।

श्रीराम मंदिर आंदोलन की शुरुआत 1990 की दीपावली के दौरान हुई थी। हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए प्रकाश पर्व का सहारा लिया गया। एक दीपक से पूरे देश के हिंदू घरों का दीप जलाकर देश को एकता के सूत्र में जोड़ने का अभियान चला। इस अभियान में जातियों की सीमाएं नहीं रहीं। स्वयं को उच्च बताने वाली जातियों के कार्यकर्ता भी दलितों और पिछड़ों के घर पहुंचे थे। बता दें कि श्रीराम मंदिर के लिए सैकड़ों लोगों ने अपनी जान दी। चिंगारी तो सुलगती ही रही। अक्टूबर 1984 में सबसे बड़ा अहिंसक जन आंदोलन हुआ। जन्मभूमि आंदोलन में कई रामभक्तों ने समय, श्रम, धन और प्राण तक अर्पण कर दिए। श्रीराम- जानकी यात्रा, श्रीराम शिलापूजन, पादुका पूजन हुआ और अंततः 6 दिसंबर 1992 को बाबरी ढांचे का हिंदू समाज ने विध्वंस कर दिया। इस विध्वंस के बाद से अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनाने हेतु हरविध प्रयास शुरू कर दिये गए। लगातार अदालती लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया। 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण का भूमि पूजन किया। तबसे अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण जारी है। माना जा रहा है कि साल 2023 तक अयोध्या में भक्तों के लिए रामलला के दर्शन की पूरी व्यवस्था हो जाएगी। तबतक रामलला नए मंदिर में विराजमान होंगे, जबकि साल 2025 तक श्रीराम जन्मभूमि मंदिर परिसर पूरी तरह विकसित होगा। इस दौरान अयोध्या में पर्यटन को बढ़ाने का रोडमैप भी तैयार कर लिया गया है। पर्यटन बढ़ने से रोजगार में वृद्धि होगी जिससे वहां रहने वालों का जीवन आसान होगा। साथ ही देश में धार्मिक पर्यटन को गति मिलेगी। अभी भी देश में हर दूसरा घरेलू पर्यटक धार्मिक यात्रा पर ही जाता है, इसलिए सरकार इसे और बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है। भारत में होने वाले घरेलू पर्यटन का करीब 50 प्रतिशत हिस्सा धार्मिक ही होता है यानी हर दो में से एक भारतीय घरेलू पर्यटक तीर्थयात्रा या धार्मिक स्थलों की यात्रा पर जाता है। इसलिए सरकार अब धार्मिक स्थलों के बुनियादी ढांचे और अन्य सुविधाओं के विकास पर सतत काम कर रही है। एयरपोर्ट, अच्छी सड़क और सर्वसुविधा सम्पन्न रेलवे स्टेशन आदि पर तेजी से काम हो रहा है। सही उद्देश्य, सही दिशा और तेज गति कार्य की संपूर्णता का उद्घोष कर रही है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर का कार्य तय सीमा व योजनानुसार हुआ तो हर कोई यही कहेगा कि सामाजिक चेतना का रामोदय हो गया।

                                                                                                                                                                              अभय मिश्र 

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