दुनिया बदली तो दुनियादार भी बदल गए। पहले बगैर प्रचार के भी दुनिया चल ही रही थी। लोग मजे से खा, पी, घूम फिर रहे थे। लोगबाग भी सीधे सादे थे न उन्हें खाने पीने के लिए प्रचार की जरूरत थी न जाने आने के लिए। घर के खाने या फिर घर लाकर खाने में ही विश्वास करता था तब का व्यक्ति। दो जोड़ी कपड़ों में साल भर निकाल देता था। टूर या भ्रमण पर जाने की तो सोचता भी नहीं था कहीं जरूरी जाना भी पड़ जाए तो सबसे सुगम रेल या फिर परिवहन निगम की बस ही आवागमन का साधन होती थी। वह दौर था जब लोगों की आमदनी सीमित होती थी। फिर क्या हुआ बाहर से आर्थिक उदारवाद हमारे गरीब देश में घुस आया। उदारवाद आया तो पूंजी भी खूब लाया। पूंजी आई तो बाजार घर तक में घुस आया। जाहिर है बाजार तभी घर तक पहुंच सकता है जब मार्केटिंग तगड़ी हो। तगड़ी मार्केटिंग ही तगड़ा मार्केट पकड़ सकती है। जब दो पांच रुपए की चीज का विज्ञापन बिग बी करेंगे तो वह चीज तो यूं ही डिमांड में आ जाएगी। अमिताभ कराड़ों लेकर छोटी मोटी चीज का विज्ञापन क्यों करने लगा भला। प्रोडक्ट कम्पनी एक रुपए की चीज के मूर्ख बने टीवी दर्शक ग्राहक से 5 रुपए वसूलेगी तभी तो अमिताभ की कीमत निकलेगी।
यह तो अमिताभ की ब्रांडिंग की बात है तभी तो वे वाकई बिग बी हैं तभी तो इस उम्र में भी सेलिब्रिटीज से भरे परिवार को कमा कर खिला रहे हैं। वाकई यह इमेज मेकिंग इमेज बिल्डिंग का दौर है तभी तो अमिताभ से लगाकर नीचे तक का हर इन्सान अपनी छवि बनाने और भुनाने में लगा है। देश द्वारा बार बार ठुकराए एक अधेड़ युवा नेता को लगा कि देश में अब उसकी कोई पूछ परख नहीं बच रही बार बार बापड़ा कब तक इटली, बैंकॉक जाए। जलने वाले चिमटी भरकर छोड़ देते हैं। अगला फिर अगली यात्रा पर निकल लेता है। पर इस बार अगले की इमेज बिल्डिंग कम्पनी ने सलाह दे डाली कि भैया परदेस तो आप सैकड़ों बार घूम फिर आए लोग आपको सीरियसली ले ही नहीं रहे, अबकी बार आप देश में ही घूमो और वो भी पांव पांव, चढ़ जा बेटा सूली पे भली करेंगे राम स्टाइल में। नेताजी अपने सलाहकारों की बात फौरन मान लेते हैं खुद कुछ नहीं सोचते वे अपने दिमाग पर जरा भी जोर नहीं देते क्योंकि ऊपर का माला पूरी तरह खाली है, हम नहीं कहते जमाना कहता है। वे चल पड़े पांव पांव पर पिछली पदयात्राओं से भैया की पदयात्रा थोड़ी अलग है इसकी बाकायदा मार्केटिंग स्ट्रेटेजी से ब्रांडिंग करवाई गई है ये अलग बात है कि वे अपनी पदयात्रा में पाकिस्तान जिंदाबाद बोलने वाली लड़की से भी गले मिल लेते हैं और बापू की तरह दो दो कन्याओं के कंधे पर हाथ रखकर अपनी पार्टी की परम्पराओं को आगे बढ़ा रहे हैं।
ब्रांडिंग कम्पनी अच्छा करने की सोचती है तो पाकिस्तान आड़े आ जाता है।
ऐसे ही एक और क्रांतिकारी नेता हैं जिनके भाग से दिल्ली का छींका टूट गया गलती से एक शराब प्रदेश में भी पैगवंत की सरकार बन गई तो इनको लगा कि ये देश पर राज कर सकते हैं पहुंच गए फाफड़ा खमण प्रदेश। एक ऑटो में जबरन बैठे सिक्योरिटी में लगी पुलिस को दुत्कारा जबकि ढोंगी महाराज दिल्ली में 80 सुरक्षाकर्मियों के साथ महंगी कारों में ही घूमते हैं। ऑटो वाले के घर खाना खाने की नौटंकी अपनी ब्रांडिंग कम्पनी के कहने पर की। पर ब्रांड की हवा तब निकल गई जब ऑटो वाला तो मोदीभक्त निकल गया। पर इस मक्कार का कहना है कि, कुछ बात है कि खुजली मिटती नहीं हमारी…।
एक बाबा ने पिछले दिनों देश भर के मीडिया से जमकर ब्रांडिंग करवाई जिससे उनकी रजवाड़ी कुर्सी को कोई खतरा न हो मगर भूरी काकी के सामने उनकी पूरी हेकड़ी निकल गई जब नाक रगड़कर वफादारी की कसमें खाते माफी मांगनी पड़ गई। कहां तो देश भर में उनकी इज्जत बढ़ने वाली थी लेकिन कमजोर ब्रांडिंग की वजह से नाक कटवानी पड़ गई।
ये तो बड़े पैकेज की ब्रांडिंग की बात हुई पर अब हर व्यक्ति खुद को सेलिब्रिटी हीरो समझने लगा है भले ही उसका पड़ौसी उसे न पहचानता हो। गोलू भैया का हैप्पी बड्डे कस्बे में फ्लेक्स टांग कर मनाया जाता है गोलू भैया अपने महल्ले में ही इतने लोकप्रिय हैं कि वे जिस गली से निकलते हैं लोग अपने दरवाजे बंद कर लेते हैं दूर से दिख जाएं तो लोग कट लेते हैं उनके लगाए फोन मिस्ड कॉल होकर रह जाते हैं पर गोलू भिया ठहरे झांकीबाज अपने आवारा पट्ठों से कहकर अपने हैप्पी बड्डे के फ्लेक्स टंगवाते हैं फिर रात को अपनी थर्डहैंड धक्कापरेड कार के बोनट पर केक धरकर तलवार से केक काटते हैं शैम्पेन की तो उनकी औकात नहीं है तो कुत्ता छाप की बोतल से झाग उड़ाकर फेसबुक पर फटाफट फोटो डलवाते हैं जिससे मोहल्ले भर की हसीनाओं की नजर में हीरो बन सकें उनके लाइक और कमेंट पाकर। लेकिन जब उन रूठी हुई हसीनाओं के कमेंट नहीं मिलते तो वे उनके इनबॉक्स वाट्सअप में एक हाथ में गिलास और दूसरे में तलवार वाली कई मुद्राओं के फोटो डाल देते हैं। यह भी उनकी मार्केटिंग का एक फंडा है। नेताओं की तो ठीक है लुच्चे लफंगों की हैप्पी बड्डे की मार्केटिंग के इस होर्डिंग ब्रांड फंडे से तंग आकर एक समाजसेवी ने अपने प्यारे पपी हनी की फोटो फ्लेक्स पर लगवाकर उसका बड्डे मनाने की मुनादी कर दी, लुच्चों की समझ में आई या नहीं पता नहीं पर लोगों ने खूब मजे लिए।
आजकल के युवा अपनी शादी की भी मार्केटिंग करते हैं पहले प्रीवेडिंग शूट करवाकर उसमें पोस्टवेडिंग तक की तमाम हरकतें करते हुए सारे सोशल मीडिया पर डालकर अपने बड़े बुजुर्गों को शर्मसार करते हैं। भले ही इस शर्मसारी की कीमत मां बाप वीडियोग्राफरों को लाखों में चुका रहे हों। आत्मप्रचार और आत्ममुग्धता का यह फंडा और नीचे उतरकर ‘प्रेग्नेंसी शूट’ तक करवाकर अपने बेबी बम्प का भौंडा प्रदर्शन कर रही हैं लड़कियां खुद को किसी नवाबजादे की बीबी समझती हुई। इस सामाजिक पतन के प्रचार के लिए बाकायदा बड़ी बड़ी इवेंट कम्पनियां बनी हुई हैं। कोई क्या करे जब खुद ही युवा पतन की मार्केटिंग में उलझ रहे हों।
किसी बड़ी होटल के बाहर खड़े ठेले पर पानीपूरी खाने के बाद उस होटल के नियॉन साइन के नीचे सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने और उस पर फ्रेंड्स की र्ूीााू लिखी लाइक्स पाना भी फर्जी मार्केटिंग का नुस्खा है।
मार्केटिंग के चक्कर में अखबार अखबार नहीं रहकर जैकेट पर जैकेट में तब्दील होकर विज्ञापन के पर्चे भर होकर रह गए हैं इन त्योहारी दिनों में तो अखबारों में खबर ढूंढ़नी पड़ रही है। अखबार खुद तो महंगे सोने, इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स के विज्ञापन से भरे होते हैं पर साथ में 2-4 पैम्पलेट्स भी लाते हैं जो महापर्व पर महाऑफर लाकर ललचाते हैं। श्रीमती जी हर दिन इन लोकलुभावन पर्चों को अवेर लेती हैं और दफ्तर से लौटने पर मेरे सामने पुटअप कर देती हैं घसीटकर ले चलने के लिए इन सेलों में ठगाकर आने के लिए लेकिन मार्केटिंग का एक के साथ एक फ्री वाला फंडा सबसे ज्यादा गृहिणियों को ललचाता है।
मैं सोचता ही रह जाता हूं कि शादी के समय ये एक के साथ एक फ्री वाली क्यों नहीं आई, वरना एक साली तो फ्री मिल ही जाती स्साली।