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संस्कृति की लट्ठगाड़ कहाणी  (संस्कृति की शौर्यगाथा)

संस्कृति की लट्ठगाड़ कहाणी (संस्कृति की शौर्यगाथा)

by हिंदी विवेक
in विशेष, संस्कृति, सामाजिक, सांस्कुतिक भारत दीपावली विशेषांक नवंबर-2022
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खेल प्रतियोगिताओं में देश को सबसे ज्यादा मैडल दिलानेवाले राज्य के रूप में प्रसिद्ध हरियाणा की धरती की संस्कृति में शौर्य कूट-कूटकर भरा है। गजब की शारीरिक क्षमता यहां के पुरुषों और महिलाओं की विशेषता है। ठेठ और दूसरों को कडी लगने वाली भाषा बोलने वाले हरियाणवी स्वभाव से उतने ही कोमल और मधुर होते हैं।

हरियाणा की बेटी पद्मश्री संतोष यादव के विजयदशमी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वार्षिक कार्यक्रम में पहली महिला मुख्य अतिथि बनने के साथ ही नए दौर का श्रीगणेश हो गया। 4 अक्तूबर को जब संतोष यादव नागपुर के लिए रवाना हो रही थीं, उसी दिन हरियाणा का हृदय माने जाने वाले शहर जींद में हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन की मांग को लेकर 150 से ज्यादा खाप पंचायतें एकजुट थीं। पद्मश्री संतोष यादव विश्व रिकॉर्डधारी पर्वतारोही होने के साथ-साथ महिलाओं और खिलाड़ियों के लिए आइकॉन हैं। वहीं, प्रदेश की खाप पंचायतें यहां के सामाजिक ताने-बाने और सरोकारों का आईना है। खेल-खिलाड़ियों और पंचायतों के कारण सुर्खियों में रहने वाला हरियाणा इतने से परिचय से संतुष्ट नहीं हो सकता। इसका समग्र परिचय चिर पुरातन इतिहास, इसके सांस्कृतिक सरोकारों और विकास की ऊंची छलांग की कहानी कहे बिना पूरा नहीं हो सकता।

मानव सभ्यता के शुरुआती विकास की कहानी हरियाणा की धरती पर ही लिखी गई थी। इस धरा की गोद में बहती सरस्वती नदी के तटों पर सरस्वती-सिन्धु सभ्यता विकसित हुई। ऋग्वेद की ऋचाएं इस विकास गाथा का प्रत्यक्ष गायन करती हैं। अनेक इतिहासकार इसे आर्य सभ्यता का प्रथम केंद्र मानते हैं। हिसार जिले के गांव राखी गढ़ी में गत वर्षों में पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई ने मानव इतिहास को नए सिरे से लिखे जाने को विवश कर दिया। इस खुदाई ने विदेशी सभ्यताओं का गुणगान करने वाले तथाकथित प्रगतिशील इतिहासकारों की आंखें चुंधिया दीं। भारतीय पुरातत्व विभाग ने 5 हजार वर्ष पहले बस रहे भव्य शहर का पता लगाया है। यहां से प्राप्त वस्तुएं उस दौर के विकास की तस्वीर पेश करती हैं। उस काल में भी यहां समुन्नत राजमार्ग, जल निकासी की व्यवस्था, बारिश के पानी एकत्रित करने की प्रणाली, कांसा सहित अनेक धातुओं की वस्तुएं मिलीं।

महाभारत का युद्ध इसी धरती पर लड़ा गया। तब यहां गीता के रूप में भगवान श्रीकृष्ण की वाणी मुखरित हुई। सनातनी परंपराओं और आर्य सभ्यताओं के बीच यहां अनेक मत-पंथों को भी पुष्पित-पल्लवित होने के निरंतर अवसर मिले। बौद्ध और जैन दर्शन के यहां प्रमुख केंद्र विकसित हुए। बौद्ध साहित्य के अनुसार स्वयं भगवान बुद्ध इस धरती पर आए थे। यहां का रोहतक नगर जैन पंथ के प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा। शहर के खोखराकोट इलाके से जैन मत से संबंधित अनेक मूर्तियां मिली हैं। इसी जिले का अस्थल बोहर गांव नाथ संप्रदाय का प्रमुख केंद्र है। यहां आज भी प्रसिद्ध मठ विद्यमान है।

प्रदेश का इतिहास थानेसर के महाराजा हर्षवर्धन की कुशाग्र बुद्धि और श्रेष्ठ शासन व्यवस्था की कहानी बताता है। संस्कृत के महान कवि बाणभट्ट ने अपने महाकाव्य कादम्बरी और हर्षचरित में इन गाथाओं को उकेरा है। यहां का मध्यकालीन इतिहास पृथ्वीराज चौहान की शौर्य गाथा से शुरू होता है। यहां की मारकंडा नदी ने शाहबाद के पास 1014 ई. में महमूद गजनवी के आतंक को देखा। तराइन और पानीपत की लड़ाइयों ने भी हरियाणा के रक्त की लालिमा को परखा है। हरियाणा की धरती बंदा वीर बहादुर के शौर्य की साक्षी भी रही है।

आधुनिक इतिहास में हरियाणा राजनीतिक रूप से देसी रियासतों में बंटा दिखा, लेकिन सांस्कृतिक और भावनात्मक रूप से यह भारत के राष्ट्रीयत्व का ही प्रवाह रहा। 1857 के प्रथम स्वातांत्र्य समर में इसकी बानगी स्पष्ट रूप से देखने को मिली। विदेशी सत्ता के खिलाफ प्रदेश का बच्चा-बच्चा लामबंद दिखाई दिया। हरियाणा का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं था, जहां लड़ाई नहीं लड़ी गई हो। हरियाणा में इस क्रांति की शुरुआत 13 मई 1857 को अम्बाला छावनी से हुई थी, लेकिन देखते ही देखते क्रांति की ज्वाला गुरुग्राम, रोहतक, हिसार, सिरसा, थानेसर, झज्जर, बल्लभगढ़, बहादुरगढ़, रेवाड़ी, हांसी और मेवात में भी धधकने लगीं।

इसके बाद शुरू हुए स्वाधीनता आंदोलन में हरियाणवियों की भूमिका ने अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए। यहां हरियाणा केसरी पंडित नेकीराम शर्मा होमरूल आंदोलन के मुख्य सूत्रधार रहे। 1920 में असहयोग आंदोलन का नेतृत्व यहां के वीर सपूत लाला लाजपत राय ने किया। महात्मा गांधी की प्रथम गिरफ्तारी भी हरियाणा के पलवल में हुई थी। यहां स्वाधीनता आंदोलन में आर्य समाज काफी प्रभावी भूमिका में रहा। स्वयं महर्षि दयानन्द ने अम्बाला और रेवाड़ी में सभाएं की थीं। उनके बाद स्वामी श्रद्धानंद ने यहां प्रचार की कमान संभाली।

15 अगस्त 1947 में स्वधीनता के वक्त हरियाणा नाम के किसी राज्य का अस्तित्व नहीं था। यह क्षेत्र पंजाब का हिस्सा था, लेकिन भाषा के आधार पर अलग राज्य की मांग स्वतंत्रता से पहले ही शुरू हो गई थी। अनेक समितियों और आयोगों की सिफारिश के बाद 1 नंवबर 1966 को हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया। नदी जल बंटवारे और राजधानी इत्यादि अनेक मसलों पर पंजाब और हरियाणा में विवाद चल रहे हैं। इन सबके बावजूद सांझी राजधानी, सांझा उच्च न्यायालय और सांझे परिसरों में विधान सभा और सिविल सचिवालयों के साथ ये दोनों राज्य पूरे देश में ऐसी इकलौती व्यवस्थाओं वाले प्रदेश हैं।

इन दिनों हरियाणा विकास की नई गाथा गढ़ने में व्यस्त है। यहां अनेक ऐसी योजनाएं शुरू हुईं जो पूरे देश के लिए मानक बन गई। हरियाणा सरकार ने गांवों के लाल डोरा के भीतर की अचल संपत्तियों की सेटेलाइट मैंपिंग करवाकर उनकी रजिस्ट्रियां शुरू की तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस योजना के मुरीद हो गए। हरियाणा ने देश की आधार परियोजना से एक कदम आगे बढ़ाते हुए परिवार पहचान पत्र बनाकर सरकारी योजनाओं को न केवल प्रत्येक व्यक्ति की पहुंच तक ला दिया, बल्कि कामकाज को पारदर्शी बनाकर धांधलेबाजी पर कड़ी नकेल कस दी। इस परियोजना से प्रत्येक व्यक्ति व परिवार का सत्यापित और विश्वसनीय डाटा तैयार हो सका।

साइबर सिटी गुरुग्राम ने वैश्विक पटल पर अपनी विशेष छवि बनाई है। यह शहर न केवल हरियाणा के लिए बल्कि पूरे देश के लिए विकास इंजन साबित हो रहा है। गुरुग्राम के साथ-साथ पंचकूला भी सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के लिए जाना जाता है। इसके साथ ही प्रदेश में बड़ी संख्या में विश्वविद्यालयों की श्रृंखला विकसित हुई है। इन विश्वविद्यालयों से न केवल शिक्षातंत्र मजबूत हुआ, बल्कि शोध के क्षेत्र में भी विशिष्ट योगदान मिल रहा है। हिसार स्थित चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय फसलों की नई किस्म तैयार करने के मामले में विश्व के शीर्ष विश्वविद्यालयों में शुमार है।

वर्तमान हरियाणा की विशेष पहचान बनाने में देश के पूर्व कार्यवाहक प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा, सुचेता कृपलानी, सुषमा स्वराज, योगगुरु बाबा रामदेव, ब्रिगेडियर होशियार सिंह, जनरल दीपक कपूर, जनरल वीके सिंह, एडमिरल सुनील लांबा, जनरल दलबीर सिंह सुहाग, जादूगर शंकर सम्राट, कल्पना चावला का खास योगदान है।

वर्तमान सरकार रोजगार सृजन करने के लिए विशेष प्रयास कर रही है। स्टार्ट-अप को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ स्थानीय पर रोजगार के अवसर विकसित होने लगे हैं। यहां प्रत्येक विकास खंड के लिए एक उत्पाद या व्यवसाय की पहचान कर उसे हब के तौर पर पहचान दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। इससे युवक-युवतियों को अपने घर के आसपास रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। इसके अलावा यहां की सक्षम योजना, बेरोजगारी भत्ता योजना, मॉडल कैरियर सेंटर और सक्षम सारथी जैसी योजनाएं बेरोजगारों के लिए सहारा बनी हैं।

यहां प्रत्येक जिले में बने खेल स्टेडियम प्रतिभाओं को तराश रहे हैं। हरियाणा राज्य खेल नीति में 2015 से न सिर्फ खेलकूद को प्रोत्साहन मिला है बल्कि अवसंरचनात्मक विकास भी हुआ है। इसी का परिणाम है कि यहां के खिलाड़ी वैश्विक स्तर पर प्रदेश के साथ-साथ देश का भी नाम रोशन कर रहे हैं।

हरियाणा देश का पहला राज्य है, जो पदक विजेता खिलाड़ियों को सबसे ज्यादा नकद पुरस्कार राशि देता है। ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक विजेता को 6 करोड़ रुपये, रजत पदक विजेता को 4 करोड़ रुपये और कांस्य पदक विजेता को 2.5 करोड़ रुपये दिए जाते हैं। हरियाणा देश का पहला राज्य है, जिसने ओलम्पिक व पैरालम्पिक खेलों के लिए क्वालीफाई करते ही खिलाड़ी को तैयारी के लिए 5 लाख रुपये की एडवांस राशि देने की व्यवस्था की है।

हरियाणा सरकार ने विश्व की 10 सबसे ऊंची पर्वत चोटियों की चढ़ाई करने वाले प्रदेश के पर्वतारोहियों के लिए भी नई नीति लागू की है। इन पर्वतारोहियों को 5 लाख रुपये का नकद पुरस्कार और खेल श्रेणी का ग्रेड-सी प्रमाण-पत्र दिया जाता है। इससे उन्हें खेल कोटे के तहत सरकारी नौकरी प्राप्त करने में मदद मिल रही है। खिलाड़ियों के लिए प्रथम श्रेणी से चतुर्थ श्रेणी तक के पदों की सीधी भर्ती में आरक्षण का प्रावधान किया है।

इसका परिणाम यह रहा कि पिछले कुछ सालों में जितने भी खेल टूर्नामेंट हुए हैं, चाहे एशियन खेल, कॉमनवेल्थ या ओलंपिक खेल हों, इन सभी में हरियाणा के खिलाड़ियों की उल्लेखनीय भूमिका रही है। राज्य स्तरीय खेल प्रतियोगिताओं, खेल अकादमियों और प्रशिक्षण शिविरों में भाग लेने वाले खिलाड़ियों की डाइट मनी 250 रुपये से बढ़ाकर 400 रुपये प्रतिदिन की गई है।

बच्चों में खेल संस्कृति विकसित करने के उद्देश्य से प्रदेश में 1100 खेल नर्सरियां खोली जा रही हैं। इससे राज्य के लगभग 25000 नवोदित खिलाड़ी लाभान्वित होंगे। इस वर्ष 4 से 13 जून तक हरियाणा के पंचकूला, अंबाला, शाहबाद समेत 5 स्थानों पर खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2021 का आयोजन किया गया। इस आयोजन में 5 पारंपरिक खेल जैसे गतका, कलारीपयट्टू, थांग-ता, मलखंब और योगासन समेत 25 तरह के खेल हुए। इन खेलों में भी खिलाड़ियों का सबसे बड़ा दल हरियाणा का ही रहा।

टोक्यो पैरालम्पिक-2020 में देश के 54 प्रतिभागियों में से 19 हरियाणा के थे। भारत द्वारा प्राप्त 19 पदकों में 2 स्वर्ण, 2 रजत तथा 2 कांस्य कुल 6 पदक हरियाणा के खिलाड़ियों ने जीते थे।

खेल उपलब्धियों की दृष्टि से हरियाणा का इतिहास भी गौरवशाली रहा है। पद्मश्री संतोष यादव ने 8848 मीटर ऊंची माउंट एवरेस्ट को 1992 और 1993 में फतेह हासिल कर लिया था। कुश्ती में मास्टर चंदगी राम ने 1970 में बैंकॉक में आयोजित एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। वर्ष 1969 में भारत सरकार द्वारा उन्हें अर्जुन पुरस्कार और 1971में पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया। योगेश दत्त ने 2003 में कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक हासिल किया।

गीतिका जाखड़, गीता फौगाट, बबीता फौगाट, विनेश फौगाट, साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया के नाम से आज पूरा विश्व परिचित है। एथलेटिक्स नीरज चौपड़ा एशियन चैम्पियनशिप 2018 में स्वर्ण पदक जीता। क्रिकेट में मंसूर अली खां पटौदी, कपिल देव, वीरेंद्र सहवाग, जोगिंद्र शर्मा के नाम से आज कौन अनभिज्ञ है। हॉकी में ममता खरब, संदीप सिंह, सरदार सिंह ने जादू दिखाया है। बैडमिंटन में सायना नेहवाल का कोई सानी नहीं। निश्चित रूप से हरियाणा को अपनी इन सभी प्रतिभाओं पर गर्व है।

खेलों के साथ चोली-दामन का संबंध रखने वाली सांस्कृतिक विधाओं में भी हरियाणा कभी कमतर नहीं रहा। यहां के लोक-नृत्य और लोकगीत जनजीवन को सरल एवं सौम्य बनाते हैं। प्रदेश के लोकगीतों का मुख्य रस हास्य और वीरता से भरा रहा है। वैसे तो यह प्रदेश संत कवि सूरदास और साहित्य के आसमान में चमकते सितारे बाबू बाल मुकुंद गुप्त की कर्मभूमि रही है, लेकिन सांग-रागनियों के इस धरती पर आधुनिक साहित्य के जन्मदाता सूर्यकवि पंडित लख्मीचंद को माना जाता है। हालांकि पंडित लख्मीचंद से पूर्व बाजे भगत सांग विधा को स्थापित कर चुके थे, लेकिन पंडित जी ने कठोर साहित्य साधना कर इस विधा को जन-जन में लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया। उन्होंने अपनी लेखनी और गायकी को लोगों के मनोरंजन और शिक्षित करने का माध्यम बनाया। उनकी विषयवस्तु भारतीय दर्शन और पौराणिक आख्यानों के माध्यम से तत्कालीन समाज का प्रबोधन करने वाली रही। पं. लख्मीचंद के समय में हरियाणवी सांग विधा अपने चरम उत्कर्ष तक पहुंची। बाद में उनके शिष्य पं. मांगेराम, लोक कवि फौजी मेहर सिंह, धनपत सिंह, पंडित जगन्नाथ और पंडित रामकिशन समचाणा इत्यादि ने इस विधा को पुष्पित-पल्लवित किया।

वर्तमान में हालांकि हरियाणा की यह विधा इंटरनेट के माध्यम से आ रहे अंधाधुंध शोरगुल में डूबी नजर आती है। सरकार इन लोकनृत्यों, लोकगीतों और सांग जैसी परंपरागत विधाओं को प्रोत्साहित करने का विशेष प्रयास कर रही है, लेकिन यूट्यूब की दुनिया में तैरते रैप के आगे इनका सुर दबा नजर आता है। तथाकथित सोशल मीडिया के सहारे असामाजिकता भी गायन के क्षेत्र में दस्तक दे रही है। इन आधुनिक हरियाणवी गानों में अवैध हथियारों, गाली, अश्लीलता और बदमाशी का महिमा मंडन सुनाई पड़ता है।

हरि की पवित्र भूमि के शौर्य और सरस्वती माता की गोद में पली सभ्यता को इन दुर्गणों से बचाना आज की बड़ी जरूरत महसूस हो रही है। तभी यहां की प्रतिभाओं और मेहनतकश समाज को दुनिया वह सम्मान दे पाएगी, जिसका वास्तव में वह पात्र है।

                       दिनेश कुमार 

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