भारत में हमेशा से ही पर्यटन का तात्पर्य धार्मिक पर्यटन रहा है। स्वतंत्रता के पश्चात् सरकारों का सारा ध्यान मुगलों द्वारा बनवाई गई इमारतों पर रहा, जबकि हमारी सांस्कृतिक विरासत अछूत हो गई। परंतु पिछले 8 सालों में केंद्र सरकार का पूरा ध्यान इस पर है कि पूरा विश्व भारत की संस्कृति को पहचाने और उससे प्रेरणा ले।
दो शब्दों, ‘शौक व मौज’ को रुचि व आनंद के रूप में लेने पर वास्तविक आनंद रुचि के विषय में ही नजर आता है। पर्यटन भी प्राय: शौक-मौज का विषय बताया जाता रहा है, यद्यपि धार्मिक पर्यटन का आधार आस्था, ऐतिहासिक जिज्ञासा, साहसिक जीवटता व चुनौती तथा विकास की उत्सुकता तथा प्राकृतिक पर्यटन के लिए रमणीयता को मुख्य कारण माना जाता है। पर्यटन की पहली कड़ी जानकारी होना है, जिसका स्रोत अनुभव प्राप्त व्यक्ति, पुस्तकें व साहित्य तथा समाचार पत्र जैसे संवाद माध्यम होते हैं जो इसमें प्रेरक भ्ाूमिका निभाते हैं। जानकारी होने से पर्यटन बढ़ता है और पर्यटन से नई जानकारियां प्राप्त होती हैं, यह विभिन्न क्षेत्रों के बीच बड़े संवाद सेतु का कार्य करता है। पर्यटन से किसी स्थान की भौगोलिक, सामाजिक, ऐतिहासिक एवं आर्थिक स्थिति का ज्ञान होने के साथ ही वहां के निवासियों के चिंतन की दिशा और वहां भ्रमण करने वालों की क्षेत्र व लोगों के प्रति धारणा भी बनती है।
किसी भी समाज व क्षेत्र एवं राष्ट्र को गर्व अथवा लज्जा का अनुभव कराने के लिए यह धारणा बहुत महत्व रखती है। स्वयं पर गर्व अनुभव करने वाला समाज अन्य की दासता स्वीकार नहीं कर सकता। गर्व करने योग्य अति प्राचीन संस्कृति वाले भारत को अपने आधीन रखने को विदेशी आक्रांताओं ने, इसीलिए मुख्य चोट मान बिंदुओं पर ही की। उनका विध्वंस तो किया ही, इसकी व्यवस्था भी की कि उनके विषय में कोई जानकारी भी न मिले जिससे कोई उन स्थानों पर न जा पाये, इसलिए पर्यटन इसका मुख्य निशाना बना। 1947 में देश के स्वतंत्र हो जाने के बाद भी यह प्रवृत्ति बनी रही। नालंदा, तक्षशिला व विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय, गणित व खगोल शास्त्र तथा योग व आयुर्वेद के चिकित्सा केंद्र और भारतीय वास्तुकला व स्थापत्य शैली जैसी पहचान को प्रयत्नपूर्वक छिपा कर इतिहास के नाम पर मुगलों का वर्णन व ऐतिहासिक धरोहरों के रूप में पर्यटन की मुख्य पहचान आगरा के ताजमहल, लाल किले, व कुतुब मीनार को बना दिया गया। सामन्ती सोच वाली एकाधिकारवादी राजनीति के द्वारा प्रोत्साहित विकृत इतिहास, पूर्वाग्रही साहित्य व दुराग्रही पत्रकारिता के षडयंत्रकारी चलन से भारत के मुख्य एवं वास्तविक पर्यटन का क्षेत्र लम्बे समय तक उपेक्षित बना रहा।
अपने राष्ट्र एवं संस्कृति के लिए अन्तर्मन में गर्व का भाव बने रहने से भारत में लगभग 1000 वर्षों तक दासता से मुक्ति के लिए निरंतर संघर्ष चलते रहे और संस्कृति को जीवित रखने की लालसा के कारण शिक्षा के साथ-साथ जन चेतना की जागरण के प्रयास भी हुए। इसका परिणाम स्वतंत्रता प्राप्ति के रूप में तो सामने आया ही, अपने खोए हुए वैभव की पुन: प्राप्ति और गौरव के प्रगटीकरण की आवश्यकता भी अनुभव हुई। भारत की सांपों, मदारियों और भिखारियों वाले देश की छवि से बाहर निकलते हुए राष्ट्र ने इसी भावना से अपनी महान धरोहर और मान बिंदुओं की खोजबीन आरम्भ कर उन्हें सामने लाने के प्रयास आरम्भ किये, जिससे विश्व को भारत की महान संस्कृति का परिचय मिलने लगा। पर्यटन इस ओर महत्वपूर्ण भ्ाूमिका निभा रहा है।
भारत में मंदिर सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्रियाकलापों का केंद्र रहे हैं, इनके साथ गुफाओंं और मठों में भी ऐसी गतिविधियां चलती थीं। दासता के कालखंड में इनका विध्वंस होने के बावजूद काफी मंदिर बचे रहे, खासतौर पर दक्षिण भारत में, किन्तु ऐतिहासिक महत्व का होने पर भी, धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इन्हें पर्यटन केंद्रों के रूप में नहीं बढ़ाया गया। शिक्षा के प्रसार और बीसवीं सदी के अन्तिम वर्षों से हिंदू अस्मिता तथा धार्मिक पुनर्जागरण के प्रयासों के चलते देश के आस्था केंद्रों और मानबिंदुओं का गौरव लौटाने के श्रीराम जन्मभ्ाूमि आन्दोलन जैसे बड़े अभियानों का जनमानस पर भारी प्रभाव पड़ा। इन प्राचीन धरोहरों के प्रति जनता के बढ़ते हुए आकर्षण के रूप में सामने आने के सकारात्मक परिणाम से बड़ा गुणात्मक परिवर्तन आया है। मुगल विरासतों और मजारों में पर्यटन घटने के समाचार हैं जबकि देश की प्राचीन ऐतिहासिक व धार्मिक धरोहरों के प्रति रुचि जाग्रत होती दिख रही है।
जनसामान्य को अब जानकारी होने लगी है कि महाराष्ट्र में यूनेस्को की विश्व विरासत में सम्मिलित हिंदू, बौद्ध व जैन धर्म से सम्बंधित कलाकृतियों वाली गुफायें और मंदिर परिसर विशाल चट्टानों को काट कर तराशे गये हैं। एलोरा गुफा में हिंदू महाकाव्यों और पौराणिक कथाओं को प्रदर्शित करने वाली मूर्तियां स्थित हैं। इसी प्रकार कर्नाटक में विजय नगर साम्राज्य के वैभव का प्रतीक और 1986 में यूनेस्को की विश्व धरोहर में भी शामिल हम्पी शहर विशाल नक्काशीदार मंदिरों खास तौर पर काफी प्रसिद्ध विरुपाक्ष मंदिर हैं। उडुपी में नक्काशीदार मंदिर और शानदार इमारतें प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरें हैं। दक्षिण भारत में ही प्रसिद्ध बादामी में खुबसूरत रॉक कट गुफायें, मंदिर और स्मारक हैं। उड़ीसा में कोणार्क सूर्य मंदिर और मध्य प्रदेश में खजुराहो भी ऐसी ऐतिहासिक धरोहरों के केंद्र हैं। अब बड़ी संख्या में पर्यटक इन सारे स्थानों पर जा रहे हैं। अनुमानत: 600-1000 ईसवी के दौरान बनी इन ऐतिहासिक धरोहरों को विश्व पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए बहुत समय तक कोई विशेष प्रयास नहीं हुए थे।
भारत में ऐतिहासिक पर्यटन अधिकांशत: धार्मिक रूप से जुड़ा है किंतु धार्मिक पर्यटन का आयाम बहुत विस्तृत है। बहुत सारे पर्यटक देश के चारों धामों, चारों कुंभ क्षेत्रों, भगवान शिव के सभी बारह ज्योतिर्लिंगों, बहुत सारे शक्तिपीठों, श्री राम जन्मभ्ाूमि अयोध्या, श्रीकृष्ण जन्मस्थान मथुरा के साथ ही अमरनाथ गुफा, तिरुपति बालाजी, श्री कालहस्ति, गोकर्ण महाबलेश्वर, श्रीसिद्धिविनायक, करणी देवी (चूहों का मंदिर) और मोक्षतीर्थ गया सहित हजारों तीर्थस्थलों की वर्ष भर यात्रा करते हैं। कई स्थानों, जैसे काशी, वृंदावन और ॠषिकेश के अलावा सिख तीर्थ स्थलों की भी हजारों लोग यात्रा करते हैं। वैशाली और पालिताना जैन धर्म के तथा बोधगया और कुशीनगर बौद्ध धर्म के बड़े आस्था केंद्र हैं। इन सभी स्थानोें पर विदेशी पर्यटक भी अच्छी संख्या में सम्मिलित होते हैं। धर्मनिरपेक्षता के आडम्बर के कारण इन स्थानों पर सरकार की भ्ाूमिका कानून व्यवस्था बनाने तक की सीमित रहती आई है, पर्यटकों की सुविधा, आकर्षण एवं प्रोत्साहन के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किए गए।
2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विशेष रुचि के चलते पर्यटन, विशेषकर धार्मिक-सांस्कृतिक आवागमन की स्थिति में काफी परिवर्तन आया है। एक ओर जहां अयोध्या में श्रीराम जन्मभ्ाूमि का निर्माण कार्य प्रगति पर है, वहीं काशी का भी कायाकल्प हो चुका है। 2013 की त्रासदी के बाद केदारनाथ में निर्माण कार्य पूरे हुए हैं और उज्जैन का महाकाल मंदिर भी संवरने जा रहा है। धार्मिक पर्यटन राष्ट्र को एकसूत्र में बांधने में इतना सहायक है कि दक्षिण के लोग बद्री-केदार की यात्रा पर निकलते हैं, जबकि उत्तरी राज्यों के निवासी दक्षिण की यात्रा पर। पूर्वी राज्यों से यात्री द्वारका दर्शन के लिए आते हैं और पश्चिमी क्षेत्र के लोग जगन्नाथपुरी की यात्रा पर।
सड़कों के विस्तारीकरण और नए हाईवे तथा एक्सप्रेसवे के बनने के साथ ही द्रुत गति की ट्रेनों का संचालन होने से यात्रियों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। अब लम्बी यात्राएं पहले की अपेक्षा लगभग आधे समय में सम्पन्न होने लगी हैं जिससे पर्यटन को भी प्रोत्साहन मिल रहा हैै। भारत भौगोलिक व प्राकृतिक रूप तथा बोली-भाषा, खान-पान, रहन-सहन एवं तीज-त्यौहारों आदि विविधताओं से सम्पन्न देश है, जहां एक दूसरे को जानने-समझने से आपसी सम्बंधों तथा राष्ट्रीय एकता को बल मिलता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्राय: कहते हैं कि पर्यटन लोगों को आपस में जोड़ने के साथ आर्थिक सम्पन्नता भी लाता है। गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने हिंदी फिल्मों के सुप्रसिद्ध नायक अभिनेता अमिताभ बच्चन को ब्रांड एम्बेसेडर बना ‘कभी तो आइये गुजरात’ नारे के साथ राज्य को पर्यटन में बहुत ऊपर पहुंचा दिया था। ‘पधारो म्हारे देश’ नारे के साथ राजस्थान भी अपनी संस्कृति को विशेष पहचान दिला चुका है।
केंद्र सरकार द्वारा खेल एवं खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने का परिणाम पिछले दिनों सम्पन्न हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के उत्कृष्ट प्रदर्शन के रूप में सामने आया है। एडवेंचरस स्पोर्ट्स के प्रति आकर्षण होने से पर्वतारोहण, ट्रैकिंग और रिवर राफ्टिंग जैसे साहसिक पर्यटन को बढ़ावा मिल रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में पुराने पर्यटक स्थलों के अलावा अब बड़ी संख्या में नए केंद्र उभर रहे हैं। पूर्वोत्तर में शांति व्यवस्था स्थापित हो जाने से ये सातों राज्य और सिक्किम भी पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं। दक्षिणी राज्य केरल पंचकर्म एवं प्राकृतिक चिकित्सा को लोकप्रिय बना स्वास्थ्य पर्यटन में अपना विशेष स्थान बना चुका है। अनेकों स्थानों पर बिना रासायनिक खाद व कीटनाशकों के प्रयोग के अपनाई जा रही खेती, गैर परम्परागत कृषि तथा बेमौसमी सब्जियों व फलों के उत्पादन के प्रयोगों को प्रोत्साहन भी पर्यटन को बढ़ाने में सहायक है। लोगों द्वारा पर्यटन को जीवन शैली का अंग मानने का चलन बढ़ने का भी लाभ होने लगा है तथा नए स्थानों पर जाने व नए लोगों से मिलने की चाहत और धार्मिक एवं मनोरंजक यात्राओं की इच्छा जगने से पर्यटन के प्रति लोगों का रुझान बढ़ रहा है। केवल मुगल विरासत को ही पर्यटन समझने की बात अब लोगों के मन से काफी हद तक उतर चुकी है।