सामान्यतः उपचुनाव परिणामों को वर्तमान और भावी राजनीति के महत्वपूर्ण संकेत के रूप में नहीं लिया जाता रहा है। पिछले कुछ वर्षों में यह प्रवृत्ति बदली है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के चुनावी उत्थान के बाद से जिस तरह का राजनीतिक वातावरण बना है उसमें हर चुनाव महत्वपूर्ण हो गया है। विश्लेषकों ने जिस तरह भाजपा के कहीं उपचुनाव हारने को उसके अंत की शुरुआत का संकेतक बताना शुरू किया उससे भी यह स्थिति पैदा हुई है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा सामान्य नगर निकायों के चुनावों को भी इतनी प्रखरता से लड़ती है कि उसके मायने बदल जाते हैं। चूंकि 2024 लोकसभा चुनाव लगभग सवा साल दूर है इसलिए उस दृष्टि से भी इन परिणामों को देखा जाना स्वाभाविक है। छः राज्यों के सात विधानसभा उपचुनाव के परिणाम का विश्लेषण मुख्यतः आपके दृष्टिकोण पर निर्भर करेगा। सात में से चार स्थान भाजपा ने जीते और यह उसके जनाधार के मजबूत बने रहने का द्योतक है। पहले उसके पास तीन स्थान थे। कांग्रेस हरियाणा और तेलंगाना की अपनी सीटें गवा बैठी। तो इसके राजनीतिक मायने हैं और वे निश्चित रूप से महत्वपूर्ण हैं। तो इन परिणामों से भविष्य की राजनीति की क्या तस्वीर निकलती है?
उत्तर प्रदेश की गोला गोकर्णनाथ, बिहार के गोपालगंज, उड़ीसा की धामनगर और हरियाणा की आदमपुर सीट भाजपा के खाते गई है। इनमें आदमपुर सीट पहले उसकी नहीं थी। बिहार के मोकामा में राष्ट्रीय जनता दल की विजय हुई। तेलंगाना में मुनुगोड़े टीआरएस तथा महाराष्ट्र के अंधेरी ईस्ट उद्धव ठाकरे की शिवसेना जीती है। कहा जा सकता है कि गोला गोकर्णनाथ, गोपालगंज और धामनगर तीनों पहले भाजपा के ही खाते में थे। तीनों स्थान विधायकों की मृत्यु से खाली हुई थी। लेकिन तीनों स्थानों को फिर से प्राप्त करना इस बात का परिचायक तो है ही कि भाजपा का जनाधार पूरी तरह कायम है। गोला गोकर्णनाथ लखीमपुर खीरी जिले में आता है जहां कृषि कानून विरोधी आंदोलन के दौरान हुई हिंसा में लोग मारे गए थे।
प्रचार यह रहा है कि वहां के सांसद और गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टोनी के विरुद्ध व्यापक आक्रोश है और लोग भाजपा को हराएंगे। यह प्रचार पहले भी गाली गलत साबित हुई और फिर पुष्टि हो गई है कि जो माहौल बनाया गया है स्थानीय स्तर के लोग ऐसा नहीं सोचते। दूसरे , वहां भाजपा के उम्मीदवार अमन गिरी ने विनय तिवारी को 34 हजार 298 वोटों से हराया जबकि पिछले चुनाव में अमन गिरी के पिता अरविंद गिरी ने विनय तिवारी को 29 हजार 294 वोटों से हराया था। तो जीत का अंतर भी बढा है। निस्संदेह, बिहार के गोपालगंज सीट पर राष्ट्रीय जनता दल ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी। वहां भाजपा की कुसुम देवी ने राजद के मोहन गुप्ता को केवल 2183 वोटों से हराया। दूसरी ओर बिहार के मोकामा में राजद क उम्मीदवार अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी ने भाजपा की सोनम देवी को 16 हजार 707 मतों से हराया है।
इन परिणामों के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना आसान है कि जहां राजद ने अच्छे अंतर से जीत पाई वहीं भाजपा ने कम। बिहार में राजद का ठोस जनाधार है इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। न भूलिए कि जदयू से अलग होने के बाद भाजपा पहली बार अकेले चुनाव लड़ रही थी। निश्चित रूप से उसका आत्मविश्वास कम रहा होगा। दूसरी ओर राजद के उम्मीदवार को लोजपा को छोड़ सभी पार्टियों का समर्थन प्राप्त था। राजद, जदयू, कांग्रेस, हम और कम्युनिस्ट पार्टियों का गठबंधन एक ओर था तो भाजपा दूसरी ओर। इसमें गोपालगंज में उसकी विजय तथा मोकामा में उसके उम्मीदवार को 62 हजार 939 मत प्राप्त होना साफ करता है कि बिहार में वह अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। यानी आगामी लोकसभा चुनाव के लिए ठीक तैयारी करने पर उसके बेहतर प्रदर्शन की संभावनाएं मौजूद हैं। मुंबई की अंधेरी वेस्ट से कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता क्योंकि शिवसेना उद्धव के प्रत्याशी ॠतुजा लटके के विरुद्ध भाजपा ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था। वहां उनका मुकाबला केवल निर्दलीय से था।
तेलंगाना के मुनुगोडे विधानसभा सीट कांग्रेस के विधायक कोमाटी रेड्डी राजगोपाल रेड्डी के भाजपा में शामिल होने के कारण खाली हुई थी। भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार बनाया, पर टीआरएस के प्रभाकर रेड्डी से वे 10,000 से ज्यादा वोटों से पराजित हो गए। लेकिन इससे साफ हो गया कि तेलंगाना में अब कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी है और भाजपा टीआरएस के साथ मुख्य मुकाबले में है। यह महत्वपूर्ण है । पु निस्संदेह, इस चुनाव में टीआरएस का दबदबा कायम रहने का संकेत है। तो 2024 में बेहतर प्रदर्शन के लिए भाजपा को ज्यादा परिश्रम की आवश्यकता है। उसके पूर्व विधायक ठाकुर राजा सिंह की गिरफ्तारी तथा भाजपा का उनके लिए कोई स्टैंडर् न लेने के कारण कार्यकर्ताओं में निराशा है तथा समर्थक नाखुश हैं। बावजूद उम्मीदवार को इतना अधिक मत मिलने का मतलब है कि अगर भाजपा ने अपना रुख थोड़ा स्पष्ट किया तो उसकी स्थिति बेहतर हो सकती है। इसी तरह ओडिशा की धामनगर भाजपा विधायक विष्णु चरण सेठी के निधन होने से खाली हुआ था।
भाजपा ने उनके पुत्र सूर्यवंशी सूरज को उम्मीदवार बनाया तथा उन्होंने बीजू जनता दल के अवंती दास को करीब 10 हजार वोटों से हरा दिया। इसका अर्थ यही है कि उड़ीसा में भी कांग्रेस हाशिए पर है तथा मुख्य मुकाबला भाजपा एवं टीआरएस के बीच है। हरियाणा आदमपुर विधानसभा उपचुनाव वहां के विधायक कुलदीप बिश्नोई के कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले जाने से आयोजित हुआ। भाजपा ने उनके पुत्र भव्य विश्नोई को टिकट दिया। भव्य विश्नोई ने कांग्रेस के उम्मीदवार जयप्रकाश को 16 हजार 606 वोटों से पराजित कर दिया। इसके मायने भी स्पष्ट हैं। भव्य भजनलाल की तीसरी पीढ़ी हैं। क्षेत्र पर उनके परिवार का भी असर है। किंतु इसका अर्थ यह भी है कि हरियाणा में सत्तारूढ़ भाजपा के विरुद्ध जनता में बड़ा असंतोष नहीं है।
कुल मिलाकर इन परिणामों के निहितार्थ यही है कि सभी पार्टियों के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव से ज्यादा अंतर नहीं आया है। भाजपा अपने इन्हीं जनाधार की बदौलत लोकसभा चुनाव में 303 सीटें पाने में सफल हुई थी। जाहिर है, इन परिणामों के आधार पर 2024 की दृष्टि से भाजपा के लिए किसी भी तरह निराशाजनक निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता। लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सांसद देने वाले उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के दुर्दिन कायम हैं और भाजपा की विजय श्रृंखला बनी हुई है। इन परिणामों के आधार पर वहां से भाजपा के नुकसान की कतई संभावना नहीं व्यक्त की जा सकती। इसी तरह बिहार में जद- यू के अलग होने से भाजपा के नुकसान की संभावना भी तत्काल शत प्रतिशत स्थापित नहीं होती। इसका मतलब हुआ कि आगामी चुनाव में दोनों का गठबंधन रहेगा और यह शक्तिशाली होगा।
दक्षिण के तेलंगाना में भाजपा ने 2019 में 4 लोकसभा सीटें जीतीं थीं। वर्तमान चुनाव में टीआरएस को जिस तरह उसने टक्कर दिया है उससे अभी यह मानना कठिन है कि उसका जनाधार घट गया होगा। हालांकि इस समय टीआरएस भाजपा और कांग्रेस दोनों को तोड़ने में लगी है। उसमें थोड़ी सफलता उसे मिल रही है। किंतु भाजपा ने हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी आयोजित कर तथा अपने नेताओं को वहां लगाकर संदेश दिया है कि वह पूरी ताकत झोंकने जा रही है। इन परिणामों में सबसे बुरी दशा कांग्रेस की रही है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा तेलंगाना में काफी समय रही। परिणाम बताता है कि इससे उसके जनाधार में तनिक भी वृद्धि नहीं हुई। कम से कम इन परिणामों के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है कि 2024 में कांग्रेस 2019 से बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी।
– अवधेश कुमार