हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
डॉ. मोहन भागवत जी ने सही दिशा दी 

डॉ. मोहन भागवत जी ने सही दिशा दी 

by अवधेश कुमार
in ट्रेंडींग, देश-विदेश, मीडिया, राजनीति, विशेष, संघ, सामाजिक
0

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत के इस कथन पर निश्चय ही गंभीरता से विमर्श होना चाहिए कि हमारा कार्य पुरुषार्थ व कर्म करना है, नारेबाजी व जोश में होश खोना नहीं। भागवत पिछले कुछ समय से ऐसी बातें बोल रहे हैं जो संघ के बारे में बनी बनाई धारणा से अलग दिखता है। संघ के बारे में धारणा यह बनाई गई कि उसके पास गंभीर वैचारिक आधार नहीं है। वह भावनाओं को उभार कर हिंदुओं के नाम पर अपना अस्तित्व बनाए रखे हुए है। हालांकि भावनाओं को उभार कर काम करने वाला कोई संगठन इतने लंबे समय तक अस्तित्व बनाए नहीं रख सकता वह भी लगातार अपना विस्तार करते हुए । अगले दो साल बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा और इन वर्षों के बीच यह विश्व का सबसे बड़ा संगठन हो चुका है। इससे निकले अन्य संगठनों ने भी अपने-अपने क्षेत्र में कीर्तिमान के झंडे गाड़े हैं। भाजपा अभी देश का सबसे बड़ा दल एवं केंद्र से लेकर सबसे ज्यादा राज्यों में सरकार चला रही है । बावजूद संघ के बारे में अभी भी वैसी ही धारणा बनाए रखने की कोशिश की जाती है। इसे गैर जिम्मेवार, फासीवादी, सांप्रदायिक, नफरती, विभाजनकारी, दंगाई और न जाने क्या क्या कहा जाता है। पिछले लंबे समय से डॉ मोहन भागवत सहित संघ के अधिकारियों के सारे वक्तव्य इनके ठीक विपरीत हैं।

सच यह है कि डॉ मोहन भागवत सहित संघ के ज्यादातर पदाधिकारी अत्यंत संतुलित और जिम्मेवारपूर्ण वक्तव्य दे रहें हैं। अभी जिस वक्तव्य की हम चर्चा कर रहे हैं वह बिहार के बक्सर में आयोजित सनातन संस्कृति समागम के अंतरराष्ट्रीय संत सम्मेलन में दिया गया है। श्री राम कर्मभूमि न्यास के इस कार्यक्रम में भागवत ने कहा कि धर्म के लिए कर्म अवश्य करना चाहिए, स्वयं के लिए अथवा किसी से डरकर नहीं। यानी आपका जो भी कर्म हो वह धर्म के अनुरूप हो, संकुचित स्वार्थ या भय से किया गया कर्म इस श्रेणी में नहीं आ सकता। इस वक्तव्य को ही संघ की सोच माना जाएगा। संघ के प्रत्येक पदाधिकारी यही कहते हैं कि हम राष्ट्र और धर्म की सेवा स्वयं प्रेरणा से करते हैं। संघ की शाखा यही चेतना जागृत करती है जिसमें संकुचित स्वार्थ या किसी तरह का दबाव व भय नहीं होता। दूसरे , नारेबाजी आदि में अपनी शक्ति नष्ट करना व्यर्थ है। मूल बात है अपने लक्ष्य के अनुरूप पुरुषार्थ करना। चूंकि वहां संतों का समागम था,  इसलिए इस बात का महत्व दूसरे मायनों में भी है। पिछले वर्षों में हिंदुत्व और भारतीयता को लेकर जो जागृति हुई है उसका सकारात्मक पक्ष तो है किंतु एक बड़ा नकारात्मक पहलू भी चिंताजनक रूप से उभरा है। वह पक्ष है, गैरजिम्मेवार तरीके से कुछ भी बोलना। सोशल मीडिया के दौर में लगातार बोलना या नारेबाजी करना प्रबल हो गया है और कर्म यानी पुरुषार्थ गौण।

होना ठीक उल्टा चाहिए था। बोला जाए तो जनचेतना जागृति के साथ कर्म की ओर प्रवृत्त करने के लिए। पिछले कुछ समय में ऐसे लोग, नेता, संत आदि उभर गए हैं जो लोगों को केवल अपनी बातों से उत्तेजित करते हैं। कोई इस्लाम का विशेषज्ञ होकर भाषण दे रहा है सोशल मीडिया पर बोल रहा है और लोगों की उसे तालियां मिल रही है। इसी तरह हिंदुत्व के नाम पर कुछ लोग ऐसे गैर जिम्मेवार तरीके से भड़काऊ वक्तव्य देते हैं जिनसे पूरी विचारधारा बदनाम होती है। इसके तीन अर्थ है। कुछ स्वार्थी तत्व जिनका हिंदुत्व विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं वे अपने स्वार्थ की पूर्ति कर रहे हैं। कोई इस्लाम पर बोलकर लोकप्रियता पा रहा है, धन कमा रहा है, प्रभाव बढ़ा रहा है तो कोई हिंदुत्व के नाम पर अनर्गल बातें बोलकर एक वर्ग का हीरो बन रहा है। दूसरे, कुछ ऐसे लोग हैं जिनका इरादा सही है लेकिन उन्हें पता ही नहीं कि हिंदुत्व और भारतीयता क्या है। इस कारण वे गलतफहमी पैदा करते हैं। तीसरी श्रेणी उन लोगों की है जो समझते हैं किंतु कई कारणों से निराश हैं। इसमें हिंदुओं के सबसे बड़े संगठन की जिम्मेदारी है कि वह सही परिप्रेक्ष्य लगातार सामने रखे और कार्यकर्ताओं के साथ आम लोगों को भी आगाह करता रहे। यही भूमिका डॉ मोहन भागवत सहित संघ के पदाधिकारी निभा रहे हैं। यति नरसिंहानंद की भाषा के कारण भारत सहित दुनिया भर के विरोधियों को मौका मिला और उन्होंने यह प्रचारित किया कि यही असल में हिंदुत्व ब्रिगेड है। इसी तरह कालीचरण द्वारा नाथूराम गोडसे के महिमामंडन को भी विश्व भर में प्रचारित किया गया। यही नहीं इस्लाम के विरुद्ध आग उगलने वाले कुछ सोशल मीडिया और मंचों के हीरो के वक्तव्यों को भी इसी तरह दुष्प्रचारित किया जाता है। विरोधी यही तस्वीर पेश करते हैं कि सारे संघ और भाजपा के ही हैं।

भागवत ने समय-समय पर इन सब पर अपना मंतव्य प्रकट किया है। नासमझ और अतिवादी लोगों को यह नागवार गुजरा लेकिन यही हिंदुत्व एवं भारत के सभी लोगों के हित में है। भागवत ने संत समागम में यही कहा कि धर्म के लिए कर्म करना चाहिए, खुद के लिए अथवा किसी से डरकर नहीं। धर्म का उद्देश्य समाज, राष्ट्र व विश्व का कल्याण होता है। इसके लिए सहज व निष्कपट रहना आवश्यक है, परंतु यह भी ध्यान रहे कि कोई ठगे नहीं। इन पंक्तियों का अर्थ उन लोगों को बताने की आवश्यकता नहीं जो हिंदुत्व, राष्ट्रीयता, भारतीयता और धर्म की अवधारणा को ठीक प्रकार से समझते हैं। केवल भाषण बाजी और नारेबाजी से धर्म पूरा नहीं होता। मूल बात है कर्म। और कर्म का उद्देश्य भी सर्वहित होना चाहिए। अगर आप स्वयं को धार्मिक मानते हैं तो आपको अंदर और बाहर दोनों से शुद्ध और निश्छल होना चाहिए। निश्छलता का अर्थ नहीं है कि कोई हमको बेवकूफ बनाए और हम बनतें रहे। राष्ट्र और धर्म के प्रति चैतन्यशील व्यक्ति हमेशा जागृत रहता है। जब आप बड़ा लक्ष्य लेकर काम करते हैं तो हर व्यक्ति के अंदर अच्छाई देखते हुए भी हमेशा सतर्क रहते हैं। इससे आपको कोई ठगता नहीं भ्रमित नहीं करता। इस समय यह वक्तव्य इसलिए देना आवश्यक था ताकि सारे लोगों के अंदर यह संदेश जाए कि अगर कोई केवल नारेबाजी और भाषण बाजी कर रहा है तो मान लीजिए कि वह  उसे धर्म का बोध नहीं। उससे हमें भ्रमित होना नहीं है। यानी उनसे हमें सचेत और सतर्क रहना है। भागवत ने स्पष्ट कहा कि अगर आपकी मनोकामना है कि भारत नामक यह राष्ट्र सर्वोच्च शिखर पड़ जाए और हिंदू धर्म विश्व के कल्याण का वाहक बने तो उसको पूरा करने के लिए आप कर्म और पुरुषार्थ करिए।

उन्होंने वहां प्रभु श्री राम का उदाहरण दिया और बताया कि कैसे उन्होंने छोटे से छोटे लोगों को गले लगाया। अहिल्या का उद्धा,र केवट को गले लगाना तथा शबरी का बैर खाना प्रेम का उत्कट उदाहरण है। भागवत ने सभी से आग्रह किया कि हम प्रेम, करुणा व भाईचारा का संदेश देते हुए एक दूसरे को जोड़ें और एक दूसरे से जुड़ें ।  भारत का उत्थान करना है तो हम गुणवान बनें, एक दूसरे को जोड़ें  तथा देश, धर्म व संस्कृति के लिए काम करें। कर्मवीर और पुरुषार्थी किसी की याचना नहीं करते स्वयं को योग्य बनाते हैं। अपने अनुसार सफलता न मिलने का अर्थ उग्रवादी और अतिवादी होना नहीं है।  नियति समय के अनुसार ही सफलता देती है। तो कुल मिलाकर भागवत ने कहा है कि धर्म और राष्ट्र के अपने मर्म को समझें, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए स्वयं को समर्थ और सक्षम बनाइए तथा इसके लिए देवी – देवताओं के चरित्र को आत्मसात करें । अपने अंदर हमेशा प्रेम और करुणा का भाव रहे , घृणा नहीं। सफलता अपने समय से ही आएगी इसलिए धैर्य खोकर अतिवाद या उग्रवाद का मार्ग न पकड़ा जाए। अतिवादी – उग्रवादी भाषा बोलने वाले या कर्म करने वालों से सतर्क और सावधान रहकर ही लक्ष्य को पाया जा सकता है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

अवधेश कुमार

Next Post
क्रांतिकारी वीरांगना ऊदा देवी का पराक्रम

क्रांतिकारी वीरांगना ऊदा देवी का पराक्रम

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0