सफलता की कहानी

दुनिया भर में विकलांगों को दोयम दर्जे का स्थान प्राप्त होता है, जबकि सही दिशा मिलने पर वे भी सामान्य जनों की ही भांति जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बेहतरीन मुकाम हासिल कर सकते हैं। सरकारों ने उनकी तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया है परंतु समाज को और जागरुक होना पड़ेगा ताकि समाज का यह प्रभाग भी पूरी तरह मुख्य धारा के साथ चल सके।

भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा कि, व्यक्तियों को विकलांग नहीं कहा जाना चाहिए। उन्हें दिव्यांग कहें या दिव्यांगजन। जिसका अर्थ है दिव्य शरीर के अंग के साथ। इस सुझाव के बाद अब यही शब्द प्रचार में है।

विश्वभर में प्रतिवर्ष तीन दिसम्बर को अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस मनाया जाता है। इसे मनाने का उद्देश यह है कि, लोगों में इनके प्रति व्यवहार में, संवेदना हो, बदलाव हो। दिव्यांग जन अपने अधिकारों को समझें एवं आत्मसम्मान से, स्वाभिमान से बेहतर जीवन व्यतीत कर सकें।

दिव्यांग व्यक्ति शारीरिक रूप से सक्षम नहीं होते। वे सामान्य व्यक्ति की तरह अपने कार्य नहीं कर पाते। इनमें अपंग व्यक्ति, चलन दोष, दृष्टिदोष वाले व्यक्ति, श्रवणदोष वाले व्यक्ति, वाणीदोष जैसे गूंगा होना, तोतला होना, या हकलाना जैसे व्यक्ति आते हैं। इसके अलावा कुष्ठरोग उपचारित, ऑटिज्म, मानसिक रोग, मानसिक मंदता वाले एवं अन्य दिव्यांगता वाले व्यक्ति आते हैं।

दिव्यांग व्यक्ति जब शरीर से कमजोर होते हैं, तो वे इसे ही अपनी ताकत बना लेते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं जब लोगों ने दिव्यांगता को छोड़कर अपनी अलग पहचान बनाई है।

अभिनेता अभिषेक बच्चन को कौन नहीं जानता। वे बचपन से ही डिस्लेक्सिया के शिकार थे। इसके कारण उन्हें बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने इस पर मेहनत की, और सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के तीन फिल्म फेयर पुरस्कार जीते।

अभिनेता ऋतिक  रोशन को बचपन में हकलाने की समस्या थी। जब युवा हुए तो उन्हें स्कोलियोसिस (रीढ़ की हड्डी से जुडी) बीमारी हो गयी। इसमें शरीर की हड्डी बढ़ती है। परंतु उन्होंने अपनी शारीरिक परेशानियों पर विजय पाई और आज वे सबके पसंदीदा अभिनेता हैं।

भरत नाट्यम नर्तकी और टेलीविजन अभिनेत्री सुधा चंद्रन को कौन नहीं जानता। एक एक्सीडेंट में इन्होंने अपना एक पैर हमेशा के लिए खो दिया था। परंतु जयपुर फुट की मदद से, अपनी विकलांगता को दूर कर वे चोटी की नृत्यांगना बनी। सुधा चंद्रन सबके लिये प्रेरणा हैं।

संगीत की दुनिया का जाना माना नाम रवींद्र जैन हैं। वे जन्म से ही अंधे थे। परंतु इससे निराश नहीं हुए। इन्होंने कई सुपरहिट गीतों को संगीत भी दिया और गाया भी है। प्रसिद्ध रामायण सीरियल के गीत रवींद्र जैन ने ही लिखे थे। उसका संगीत भी उन्होंने दिया था, और इसके गीत भी उन्होंने गाए थे।

साईप्रसाद विश्वनाथन भारत के पहले स्काई डायवर है जो दिव्यांग है। इन्होंने 14हज़ार फीट की उंचाई पर स्काई डायविंग की। उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड में दर्ज है।

भारत की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने वाली अरुणिमा सिन्हा, दुनिया की पहली दिव्यांग महिला हैं। इन्हें एक घटना में पैर गंवाने पड़े थे। परंतु इन्होंने हिम्मत नहीं हारी। और मात्र इस घटना के दो साल बाद ही एवरेस्ट पर विजय प्राप्त की।

बैंगलोर की अंतरराष्ट्रीय पॅराथलीट मलाथी कृष्णमूर्ति होल्ला बचपन में ही लकवाग्रस्त हो गयी थी। इलाज के बाद इनके शरीर का उपरी हिस्सा ही ठीक हो सका। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। संघर्ष किया और आंतरराष्ट्रीय पॅरा एथिलीट खेल में भाग लिया। अब तक उन्हें 300 पदक मिल चुके हैं। उन्हें अर्जुन अवॉर्ड और पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया है।

दीपा मलिक एक भारतीय तैराक, बाइकर ,और एथलीट हैं। इनके कमर के नीचे का अंग लकवा ग्रस्त है। वह पहली भारतीय महिला हैं, जिन्होंने भारत को पॅरालम्पिक गेम्स में 2016 में सिल्वर मेडल दिलाया। इसके अलावा वह प्रथम पेरापलेजिक भारतीय महिला बाइकर, तैराक, कठिन हिमालयन कार रैली में भाग लेने वाली, पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार विजेता हैं।

दिव्यांग जनों ने अपनी प्रतिभा से दिखा दिया है कि, जमाना इन्हें कमजोर समझने की गलती ना करे। खेलों की दुनिया में अनेक पदक जीत कर  इन्होंने अपने नाम का डंका बजा दिया है।

2021 मे टोकियो पॅरालम्पिक में भारत ने शानदार प्रदर्शन किया था। जिसमें कुल 19 मेडल जीते गये थे। इसमें 5 स्वर्ण पदक, 8 रजत पदक और 6 कांस्य पदक हैं। आइये देखते हैं, किन-किन दिव्यांग जनों ने किस-किस क्षेत्र में कौन कौन स पदक जीते।

5 स्वर्ण पदक- अवनि लखेरा पहली भारतीय महिला एअर रायफल शूटिंग, सुमित अंतिल जेवलीन थ्रो, मनीष नारवाल पिस्टल शूटिंग, प्रमोद भागवत बॅडमिंटन मेन्स सिंगल्स, कृष्णा नागर बॅडमिंटन मेन्स सिंगल्स।

8 रजत पदक- भाविना पटेल टेबल टेनिस वुमन्स सिंगल्स, निशांत कुमार मेन्स हाई जंप, देवेंद्र झांझरिया जेवलीन थ्रो, योगेश कथुनिया मेंस डिस्कस थ्रो ,सिंघराज अधाना पिस्टल शूटिंग ,मरियप्पन थंगावेलू जेवलीन थ्रो, प्रवीण कुमार मेन्स हाई जंप, सुहास ल. यथिराज बॅडमिंटन मेंस सिंगल्स।

6 कांस्य पदक – सुदर सिंह गुर्जर मेंस जेवलीन थ्रो, सिंगराज अधाना एअर पिस्टल शूटिंग, शरद कुमार मेंस हाई जम्प, हरविंदर सिंह ओपन आर्चरी, मनोज सरकार बॅडमिंटन मेन्स सिंगल्स, अवनि लखेरा रायफल शूटिंग।

देश की सबसे चुनौती पूर्ण और कठिन परीक्षा होती है, यू.पी.एस.सी.की। जिसमें रैंक लाने के लिए अच्छे अच्छों के पसीने छूट जाते हैं। परंतु कुछ दिव्यांग जनों ने बड़ी मेहनत से  इस क्षेत्र में भी सफलता पायी। इनमें इरा सिंघल का नाम सबसे आगे है, जो जनरल कॅटेगरी में 815 रैंक लेकर आयी थी। कर्नाटक के केंपा होन्नाह नेत्रहीन हैं। वे 2016 में आय.ए.एस. अधिकारी बने। इनके अलावा जयंत मनकले एवं उत्तर प्रदेश के सत्येंद्र सिंह नेत्रहीन हैं। दोनों ने 2018 में यूपीएससी परीक्षा में सफलता हासिल की।

डॉक्टर सुरेश अडवाणी भारत में पहला बोन मैरो ट्रान्सप्लांट करने वाले आंकोलॉजिस्ट हैं। वे पोलिओग्रस्त हैं। उनका मानना है कि पोलिओ उनकी कमजोरी नहीं ताकत है और इसी ताकत के सहारे उन्हें सफलता मिली। उन्हें सरकार ने 2002 में पद्मश्री से और 2012 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया। लेखक ललित कुमार पोलियो ग्रस्त हैं। उन्होंने कविताकोश, गद्यकोश, दशमलव और वी कैपेबल डॉट कॉम जैसी परियोजनाओं की स्थापना की। उन्हें 2018 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

हमारे देश में अभी भी बसों, ट्रेनों, वाहनों और कार्यालयो में दिव्यांग जनों के प्रवेश के लिए समुचित सुविधायें उपलब्ध नहीं हैं। शहरों की स्थिति कुछ हद तक ठीक है। परंतु गांवों में स्थिति बहुत खराब है। ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिये कि दिव्यांग किसी की मदद लिये बिना ही सभी कार्य स्वयं सुचारु रूप से कर सकें।

सरकार की तरफ से सभी तरह के प्रयास किये जाते हैं। परंतु समाज को भी उनके प्रति अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। उनकी हंसी उड़ाना, उन्हें हीन समझना, भेदभाव करना गलत है। उन्हें सहानुभूति की नहीं सम्मान देने की आवश्यकता है। हमें भूलना नहीं है कि, वे हमारे समाज के ही अंग हैं।

दिव्यांगजनों में भी अब जागृति आ गई है। वे स्वावलंबी, आत्मविश्वासी व आत्मनिर्भर हो रहे हैं। खेल जगत में तो उन्होंने हलचल मचा ही दी है, अब अन्य स्थानों की बारी है। हमारे समाज जनों को अपनी सोच सकारात्मक रखनी होगी। इन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए हर संभव प्रयास  करने होंगे। याद रखें इनके आगे बढ़ने से ही देश आगे बढ़ेगा और एक दिन विश्व विजेता बनेगा।

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