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महामहिम राष्ट्रपति को प्रथम प्रति भेंट 

महामहिम राष्ट्रपति को प्रथम प्रति भेंट 

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग, विशेष, समाचार..
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मुंबई विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर करुणाशंकर उपाध्याय ने अपना सद्य: प्रकाशित ग्रंथ जयशंकर प्रसाद महानता के आयाम की प्रथम प्रति भारत गणराज्य के माननीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी को भेंट की। इस अवसर पर भारत सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री और वरिष्ठ साहित्‍यकार डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक और हिमालयन विश्वविद्यालय के प्रति-कलपति डाॅ. राजेश नैथानी साथ में थे।
इस मौके पर डाॅ. निशंक ने कहा कि प्रोफेसर करुणाशंकर उपाध्याय ने यह ग्रंथ 30-31 वर्षों के श्रम से अत्यंत गंभीरतापूर्वक लिखा है। यह जयशंकर प्रसाद जैसे महान रचनाकार के साथ न्याय करने वाला है।यह सुनने के बाद माननीय राष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपने साहित्य को विश्व में फैलाने के लिए इसी तरह से बड़ा एवं गंभीर कार्य करना चाहिए।
ध्यातव्य है कि डाॅ.उपाध्याय का यह ग्रंथ हिंदी साहित्‍यकारों एवं आलोचकों के बीच विमर्श के केंद्र में है। इसे प्रसाद को विश्व-स्तर पर प्रतिष्ठित करने वाला तथा नए युग का सूत्रपात करने वाला ग्रंथ कहा जा रहा है। डाॅ.उपाध्याय ने प्रसाद साहित्य में निहित भारत बोध, अस्मिता-बोध, दर्शन,ज्ञान- विज्ञान , अंतर्दृष्टि- विश्वसंदृष्टि,  संगीत एवं कलात्मक उत्कर्ष का वस्तुपरक विश्लेषण किया है। ऐसा माना जा रहा है कि यह प्रसाद पर  अब तक का श्रेष्ठतम आलोचना ग्रंथ है। इसमें  लेखक ने प्रसाद साहित्य का एक अभिनव एवं क्लासिक पाठ  तैयार किया है। उपाध्याय के अनुसार,” प्रसाद सांस्कृतिक चैतन्य से भरे हुए कलाकार हैं जो मानवीय जीवन की सार्थकता आनंद प्राप्ति में ढूँढ़ते हैं। इनका दार्शनिक चिंतन रागपरक रहस्य चेतना के रूप में प्रकट हुआ है।
इनका साहित्य क्वांटम भौतिकी तरह घोर से अघोर अर्थात प्रकृति के परमाणुओं, उप- परमाणुओं से विराटता और अपारता की ओर जाता है। यही कारण है कि उसे समझने के लिए उदात्त जीवन बोध और अंतर्दृष्टि तथा विश्व- संदृष्टि आवश्यक है। इनके साहित्य में संपूर्ण विश्व का संवेदन और भारतीय मनीषा के चिंतन का सार- तत्व परिव्याप्त है। अत: उसके पास जाने के लिए विराट अध्ययन, गहन बौद्धिक तैयारी और संवेदनात्मक औदात्य जरूरी है। चूँकि प्रसाद काव्य की गहन संरचना बहुलार्थी और उसकी अभिव्यंजना क्लासिक है अत: वे उसे जिस ऊंचाई पर ले जाती है ,वह या तो आलोकित करती है अथवा संगीत की सीमा का भी अतिक्रमण कर जाती है।” इस अवसर पर प्रोफेसर उपाध्याय ने माननीय राष्ट्रपति एवं निशंक जी के प्रति हार्दिक आभार प्रकट किया।

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Tags: bookdraupadi murmuhindi litraturejaishankar prasadkarunashankar upadhyaypresident of indiawriter

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