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फ्यूज़न साइंस ऑफ ह्यूमनबीइंग

Genetic manipulation and DNA modification concept.

फ्यूज़न साइंस ऑफ ह्यूमनबीइंग

by हिंदी विवेक
in विज्ञान, विशेष, संस्कृति
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जेनेटिक्स एंड एपीजनेटिक्स : प्रत्येक मनुष्य दो कोशिकाओं से निर्मित है -एक शुक्राणु और एक अंडाणु। यह हर बच्चा जानता है।
Zygot बनता है इनसे। फिर मात्र तीन माह में ये लगभग 200 ट्रिलियन कोशिकाओं के समूह में बंट जाता है। सभी विशेषज्ञ कोशिकाएँ। कोई भी कोशिका सामान्य नहीं। हर कोशिका विशेषज्ञ। हर कोशिका लगभग अपने आप मे सम्पूर्ण। जो एक मनुष्य के शरीर मे घटता है वह सभी कोशिकाओं के अंदर घटता है – खाना पखाना, सांस लेना, मेटाबोलिज्म या उपापचय।

जीव वैज्ञानिक इनका डेटा एकत्रित कर सकता है, कर लेता है – क्रोमोजोम से लेकर जीन तक – शूक्ष्म और स्थूल अध्ययन के द्वारा। मेडिकल साइंस जिसको हम लोग पढते हैं। हम मनुष्य के हर गुण दोष को क्रोमोजोम और जीन्स पर डाल देते हैं।
जेनेटिक्स पर सारा गुण दोष आरोपित करते आये हैं हम। अभी एक ब्रांच आयी है एपीजनेटिक्स। वह कहती है कि गुण दोष बदले जा सकते हैं।प्रकृति अंतिम निर्णय नहीं सुनाती जीवन के बारे में। जीव अंतिम निर्णय देता है। गुण और जीवन बदले जा सकते हैं। वहीं पहुंच रहे हैं वे जहां हम बीसियों हजार साल पहले पहुंचे थे।

मेडिकल साइंस और जेनेटिक साइंस आदि समझते हैं कि इतना ही जीव सम्पूर्ण होता है। मेडिकल या जेनेटिक साइंस प्रकृति या लौकिक संसार तक ही जा सकता है। फिजिकल अस्तित्व के ऊपर वह जा नहीं सकता। उसकी एक सीमा है। लेकिन वह समझता है कि यही अंतिम सीमा है।

लेकिन यदि सामान्य बुद्द्धि और जिज्ञासा हो तो इस मिथ को भंग किया जा सकता है। हम एक कोशिका अपने पिता से उधार लेते हैं और एक अपनी माता से । या दूसरी भाषा में कहें कि आनुवंशिकी विज्ञान (जेनेटिक साइंस) के अनुसार एक-एक कोशिका हमे अपने माता पिता से उपहार में मिली हैं। जिसने हम निर्मित होते हैं। लेकिन हमको जो भी चीज उपहार या उधार में मिलती है वह हमारी संपत्ति हो सकती हैं, हम नहीं हो सकते वह। लेकिन हमारा विवेक कहता है कि उसी में हम भी रहते हैं।

तो फिर प्रश्न उठेगा कि हम हैं कौन? जिस जिस चीज को हमने आज तक अपना होना समझा था वह तो बाहर से ओढ़ी गयी डिग्रियां और उपाधियां मात्र निकलीं। वे हैं तो हमारी संपत्ति लेकिन हम उनसे अलग हैं।

फिर प्रश्न उठेगा कि मैं कौन हूँ?
Who Am I?
जिस दिन यह प्रश्न उठे अंदर से, तो समझना कि तुम्हारे कदम सत्यं शिवं सुंदरं की ओर उठने को तत्पर हैं। फिर तुम स्वयं खोजने लगोगे अपने होने को।

ईशोपनिषद कहता है:
पूर्णमदम् पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णात पूर्णम् उदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णम आदाय पूर्णमेव अवशिष्यते।
पूर्ण वह भी है पूर्ण यह भी है। पूर्ण से पूर्ण निकलता है।
पूर्ण से पूर्ण निकलने के बाद भी पूर्ण ही बचता है।

तो यह पहली कैसे सुलझे कि उधार या उपहार में प्राप्त दो कोशिकाओं से बने इस स्थूल शरीर मे मैं कहाँ और कैसे रह रहा हूँ?
सत्वं रजः तम इति गुणा: प्रकृति संभवा।
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययं ।।
– भगवतगीता
प्रकृति से उत्पन्न तीन गुण, सत रज तम मिलकर इस शरीर मे अविनाशी जीव को बांधते हैं।

यह असेम्बली तैयार होती है – मां के गर्भ में। असेम्बली शब्द का प्रयोग इसलिए कर रहा हूँ कि इस शब्द से आप परिचित हैं। हर वस्तु आज असेंबल होती है। मनुष्य जैविक कंप्यूटर है। कृत्रिम कंप्यूटर (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) असेम्बल होता है, यह आप जानते हैं।

तो जैविक कंप्यूटर की असेम्बली है मां का गर्भ।
पिता और माता से मिला प्रकृति के तीन गुण – सत रज तम। जिसको जेनेटिक साइंस और मेडिकल साइंस समझ सकते हैं। अब इसमें असेंबली होनी होती है जीव की, जो आत्मा है और परमात्मा का अंश है। स्थूल प्रकृति और आत्मा के बीच का बन्धन बनाता है मन ( माइंड ) तथा पांच ज्ञानेन्द्रिया। ज्ञानेंद्रियों को भी विज्ञान ने समझ लिया है, लेकिन माइंड को अभी समझ नहीं सके हैं – माइंड एक तरह का सूक्ष्म भौतिक और अभौतिक के बीच के तरह का तत्व है।

ममैवांशो जीवलोके जीवभूत सनातनः।
मनः षस्टाणि इन्द्रियाणि प्रकृति स्थाने कर्षति।।
– भगवतगीता

माता पिता से प्राप्त कोशिकाओं में हम प्रविष्ट होते हैं मन और पांच इंद्रियों के साथ। मन प्रकृति का हिस्सा है – आत्मा अलौकिक है, सनातन है, जबसे सृष्टि निर्मित हुयी है, तब से अस्तित्व में है – जो समस्त ऊर्जा का स्रोत है, लेकिन वह अकर्ता है। कुछ करता नहीं है। लेकिन सब कुछ उसी की उपस्थिति में घटता है।

इसको वैज्ञानिक भाषा वालो को ऐसा समझाया जा सकता है। हमने एक तत्व सुना है – catalyst (उत्प्रेरक)। अनेकों जैविक और रसायनिक क्रियाएं तभी घटती हैं जब कैटेलिस्ट उपस्थित हो। वस्तुतः कैटेलिस्ट उसमें कोई सक्रिय योगदान नहीं देता है – अकर्ता है। ठीक आत्मा को ऐसा ही समझा जा सकता है मोटा मोटा।

यह असेम्बली निर्मित होने के बाद दो कोशिकाओं का विभाजन शुरू होता है – और तीन माह में दो सौ ट्रिलियन कोशिकाओं मे विभाजित हो जाती हैं। इतने कम समय मे इतनी कोशिकाओं को निर्मित करने में कितनी बड़ी फैक्ट्री की आवश्यकता होगी, इसकी मात्र कल्पना की जा सकती है।
प्रकृति को स्त्री सूचक संज्ञा से संबोधित करते हैं हम। माया दुर्गा सीता काली आदि उन्हीं शक्तियों का नाम है जिससे यह जग निर्मित हुवा है।

और परमात्मा, चेतना, ऋत को पुरूष के नाम से। प्रकति और पुरुष के मिलने से ही जीव का निर्माण होता है।

आदिशक्ति जेहिं जग उपजाया।
सो अवतरेहु मोर यह माया।।

या फिर

जड़ चेतनहिं ग्रंथि पड़ि गई।
जद्यपि मृषा छूटत कठिनई।।
– रामचरितमानस

यह एक नया तरीका है अस्तित्व को समझने का।
आपको शायद पसंद आये।

– सिंह त्रिभुवन 

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Tags: ancient heritageancient knowledgeepigeneticsgeneticsheritage

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