लालच आदमी को चैन से बैठने नहीं देता

“तृष्णा” आदमी को जरूरत से ज्यादा धन – दौलत और सुविधाओं को इकट्ठा करने के लिए उकसाती रहती है । सोच यही रहती है कि जितना अधिक ये चीजें रहेगी, हम उतना ही सुखी और प्रसन्न हो जाएंँगे, किंतु यह ख्याल एक धोखा ही सिद्ध होता है ।

इंसान की जरुरत बहुत थोड़ी सी हैं । उन की बनावट ऐसी है कि थोड़े में ही उसका गुजारा हो जाता है । पेट भरने, शरीर को ढकने और परिवार के पालन पोषण के लिए जरूरी चीजों का इंतजाम कुछ ही घंटो की मेहनत मशक्कत करके पूरा हो जाता है । बाकी समय का उपयोग अपना सुधार करने, अपनी योग्यता बढ़ाने और भगवान के काम में कर सकता है। इस तरह की जिंदगी जीने वालों के लिए कोई बड़ी दिक्कत नहीं आती, पर कठिनाई तब होती है, जब धन्ना सेठ बनने की और बहुत सारा ठाठ – बाट बटोरने की सनक दिमाग पर चढ़ी होती है ।

यह लालच आदमी को चैन से बैठने नहीं देता है । ऐसे आदमी के दिमाग में हर घड़ी धन कमाने और उसे कमा कर मौज मस्ती करने की बात घूमती रहती है । इसके वश में हुए व्यक्ति के लिए पैसा ही भगवान बन जाता है और किसी भी तरह उसे जोड़ना उसकी पूजा बन जाती है । सुख की आशा में वह धन – दौलत और ठाठ – बाट के ढेर लगाता जाता है, किन्तु इसके नतीजे उल्टे ही निकलते हैं ।

सबसे पहले तो इसके रख-रखाव की चिंता हर समय परेशान किए रहती है, कि कहीं कोई चोर, डाकू, सेंधबाज आदि इस पर हाथ साफ न कर ले । फिर ईर्ष्यालु और दुश्मन – बैरी लोग भी चैन से नहीं बैठने देते । नीचा दिखाने और बदनाम करने की हर संभव कोशिश करते रहते हैं । चापलूस, ठग आदि भी दोस्त बनकर घात लगाए बैठे रहते हैं । बहुत सारा माल – टाल आदतों को बिगाड़ कर तरह – तरह के व्यसनों में उलझा देता है और पता ही नहीं चलता कब शराब, नशा, नाच – गाना ताश – चौपड़ खर्चीले शौक आदि जिंदगी के अंग बनते चले जाते हैं। समझदार और सही वारिस न मिलने पर इतनी भाग दौड़ कर इकट्ठा की गई संपदा यूँ ही बर्बाद होने का डर अलग से सताता रहता है, जो चैन से मरने भी नहीं देता ।

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