मातृत्व का आदर्श जीजाबाई

राजमाता जीजाबाई का जीवन भारतवर्ष ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिए प्रेरणास्पद है। उन्होंने अपने कर्तृत्व के माध्यम से सिद्ध कर दिया कि समाज की उन्नति के लिए अपनी संतति को सामने लाकर समाज को जाग्रत किया जाना पूर्ण सम्भव है। उन्होंने अपने जीवन काल में हिंदवी स्वराज की स्थापना का सूरज देखा भी।

भारतीय संस्कृति सम्बंधों की संस्कृति है। यहां का समाज सम्बंधों के आधार पर विकसित हुआ है। और यही सम्बंध इस राष्ट्र के होने का, इसके विकास का आधार है। अनेक अक्रांताओं ने भारत को परास्त करने की कूटनीति अपनायी, भरसक प्रयास किए, परंतु इस राष्ट्र की छोटी इकाई जिसे हम ‘परिवार’ या ‘कुटुम्ब’ के नाम से जानते हैं, उसने इस राष्ट्र की धरोहर को संजोया। सुरक्षित रखा। परिवार में मनुष्य केवल जन्म ही नहीं लेता, उसको संस्कार भी मिलते हैं। वह एक विकसित नागरिक बनकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने हेतु तैयार होता है। और यही परिवार राष्ट्र के ओज को शक्ति एवं संबल प्रदान करता है। परिवार की इच्छा शक्ति देश के विकास का पथ प्रदर्शन करती है। परिवार से व्यक्ति में अच्छे-बुरे, सच- झूठ, धर्म-अधर्म आदि में अंतर समझने के संस्कार प्राप्त होते हैं। व्यक्ति स्वयं का विकास करते-करते समाज का विकास भी करता है, और विकसित समाज अपनी संस्कृति, अपनी पहचान बनाता है। इसी कारण व्यक्ति को समाज से जुड़ने की प्रेरणा मिलती है। और फिर अंतर्मन के स्वर उजागर होने पर उद्घोष होता है –

सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया।

सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मां कश्चित् दुख भाग भवेत्॥

माता, राष्ट्र रूपी रथ की सारथी

यह सर्वविदित है कि अगर हमें किसी स्थान पर पहुंचना है, तो उस स्थान के बारे में सम्पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है। जैसे कि वहां का वातावरण वहां के लोग, रीति रिवाज, भौगोलिक परिस्थिति, खानपान आदि। परंतु उसके साथ-साथ उस स्थान पर ले जाने वाला मार्ग हमें पता होना चाहिए। इतना ही नहीं, उस स्थान तक ले जाने वाले अच्छे एवं सबसे निकट मार्ग का पता होना भी आवश्यक है। तभी हम निर्धारित समय में अपने गंतव्य तक पहुंच सकते हैं। वाहन के साथ-साथ हमें निपुण सारथी की आवश्यकता होती है, जो ना केवल हमें निर्धारित स्थान तक पहुंचाए बल्कि आवश्यकता पड़ने पर अपने विवेक से निर्णय ले सके और हमारा मार्गदर्शन भी कर सके। ठीक वैसे ही जैसे कि महाभारत के धर्मयुद्ध में भगवान कृष्ण ने अर्जुन का सारथ्य किया और समय आने पर उसे प्रेरणा भी दी। अपने भारतीय परिवार की सारथी, धुरी, केंद्र बिंदु हमारी मां होती है। वह न तो केवल परिवार की देखभाल करती है, परिवार के व्यवहार चलाती है, बल्कि परिवार के सभी सदस्यों को अपने स्नेह से संस्कारित भी करती है। आवश्यकता पड़ने पर उन्हें डांट भी लगाती है, और आवश्यकता पड़ने पर उनकी ढाल बनकर सुरक्षा भी प्रदान करती है और यथासम्भव मार्गदर्शन भी करती है। स्त्री शब्द चार अक्षरों से बना है – स त र ई

  1. स- सत्व गुणों से युक्त
  2. त- तमो गुण पर विजय की क्षमता
  3. र- रजो गुणों की संवाहक शक्ति

ऐसी त्रिगुणात्मक शक्ति का स्त्रोत हमारी ‘मां’, ‘पत्नी’,’ बहन’,’ पुत्री’, महिला होती है। वह हमें नर से नारायण बनने की प्रक्रिया में सहायक होती है और प्रेरणा भी देती है।

और चौथा अक्षर ई यानी

4.ई- ईश्वरत्व को प्राप्त करने एवं करवाने की क्षमता रखने वाली हमारी जननी। भारत माता भी हमें ऐसी ही प्रेरणा देती है।

राजमाता जीजाबाई – मातृत्व का आदर्श

राष्ट्र सेविका समिति का कार्य बीते आठ दशकों से ज्यादा समय से चल रहा है। यह विश्व का सबसे बड़ा हिंदू महिलाओं का संगठन है। इस संगठन की संस्थापिका वंदनीय लक्ष्मीबाई उर्फ मौसी केलकरजी ने हम सबके सम्मुख ‘मां जीजाबाई’ को मातृत्व के आदर्श के रूप में रखा है। महिलाओं का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास होना आवश्यक है, तभी वे इस राष्ट्र की प्रगति में ठीक से और पूरे मन से अपना योगदान दे सकती हैं। इस दृष्टि से महिलाओं को राष्ट्रधर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने वाला संगठन ‘राष्ट्र सेविका समिति’ है। वंदनीय मौसी जी कहा करती थी कि, अगर महिला सजग रहे और अपने दायित्व का ठीक से पालन करे, तो यह राष्ट्र अपना खोया हुआ गौरव फिर से प्राप्त कर सकेगा। इसीलिए उन्होंने हमारे सम्मुख तीन आदर्श रखे-

  1. मातृत्व का आदर्श- राजमाता जीजाबाई
  2. कर्तृत्व का आदर्श- पुण्यश्लोक अहिल्याबाई
  3. नेतृत्व का आदर्श- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई

उनका कथन था कि, इन आदर्शों के जीवन की प्रेरणा, हमारे अंदर अपने कर्तव्यों का जागरण करेगी और भारत की महिला सशक्त बनकर अपना दायित्व अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति ठीक से निभा सकेगी।

शिवाजी को छत्रपति बनानेवाली मां

इतिहास हमें भूतकाल का यथार्थ ज्ञान कराता है। वह हमें प्रेरणा देता है और हमारा मार्गदर्शन भी करता है। अपने पूर्वजों के शौर्य और पराक्रम का वह साक्षी होता है। इसलिए जब हम शिवकालीन इतिहास को पढ़ते हैं, तो हमें जीजाबाई एक अष्टावधानी-कर्तृत्वशालिनी मां के रूप में दिखायी देती हैं। यत्र तत्र होने वाले मुगलों के अत्याचार से समाज की पीड़ा का दर्शन हमें होता है। ऐसे समय में सम्पूर्ण समाज को संगठित कर उसके अंदर स्वराज्य की भावना जाग्रत करना आवश्यक था। जीजाबाई ने एक शेरनी की भांति अपने बछड़े को तैयार किया और उसके अंदर समाज के प्रति कर्तव्य का बीजारोपण किया। अपने पुत्र को प्रशिक्षण देकर और उसे स्वयं के कर्तव्यों के प्रति जागरूक करने वाली जीजाबाई ने अपने जीवन में अपने स्वप्न को साकार होते देखा है। जीजाबाई का जीवन अपने पुत्र एवं अपने पुत्र रूपी समाज को यथार्थ के मार्ग पर ले जाने वाली अदम्य शक्ति का परिचायक है। वह सम्पूर्ण भारतवर्ष को प्रेरणा देकर अपने पुत्र के माध्यम से मुगलों को परास्त कर हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की नीव बनी हैं। उन्होंने दिखाया कि एक स्त्री, एक मां अगर चाहे, प्रण ले तो घर-घर से शिवाजी महाराज जैसा कर्तव्यपरायण पुत्र निर्माण हो सकता है। वह शक्ति फिर से जाग्रत करने के लिए राष्ट्र सेविका समिति प्रयासरत है। इसीलिए समिति ने राजमाता जीजाबाई को आदर्श के रूप में सबके सम्मुख रखा है।

इथे म्लेंच्छ सत्ता धुमाकूळ घाली,

कुणी नाही त्राता प्रजा त्रस्त झाली,

जिने भारताला दिला थोर राजा,

नमस्कार त्या जिजा माऊली ला।

– डॉ. लीना गहाणे

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