डेटिंग ऐप प्यार धोखा खतरा

इस राष्ट्रीय बालिका दिवस पर हम सबको यह प्रण लेना चाहिए कि हम अपनी बहन-बेटियों को डेटिंग ऐप्स और लव जिहाद के चंगुल से बचाने की दिशा में सार्थक प्रयास करें। वरना वह समय दूर नहीं जब हर शहर में श्रद्धाएं टुकड़े हो रही होंगी और हमारे पास आंसू बहाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचेगा।

डेटिंग ऐप वाला प्यार, लिव इन रिलेशनशिप और फिर हत्या! श्रद्धा मर्डर केस की कहानी के यही तीन एंगल हैं। जिसके बाद सवाल कई हैं। जिनके जवाब हमें और हमारे समाज को ढूढ़ना होगा। वरना श्रद्धा जैसे कोई अन्य लड़की भी डेटिंग ऐप के माध्यम से पहले दोस्ती के जाल में फंसेगी और फिर लव-जिहाद की शिकार हो जाएगी। श्रद्धा-आफताब की कहानी के कई अनसुलझे पहलू हैं, लेकिन वक्त की पुकार यही है कि हमें अपनी बहन-बेटियों को लव-जिहाद और उससे उभरते खतरों से रूबरू कराने की आवश्यकता है। वरना धीरे-धीरे यह मर्ज बढ़ता चला जाएगा और हम हाथ पर हाथ रखें अपनी बहन-बेटियों को बोटियों में तब्दील होने का सिर्फ तमाशा देखते रह जाएंगे।

23 जनवरी को हम हर वर्ष राष्ट्रीय बालिका दिवस मानते हैं। ऐसे में इस दिवस की सार्थकता इसी में है कि हम अपनी बहन-बेटियों को सुरक्षित वातावरण दे सकें। वरना वो श्रद्धा जैसे लिव-इन और लव-जिहाद में फंसकर तिल-तिलकर मरने को विवश होती रहेंगी और हम सिर्फ मूकदर्शक बनकर रह जाएंगे! श्रद्धा एक आजाद ख्याल की लड़की थी, जिसने खुले आसमां में जीना चाहा। मां-बाप से बिछड़कर भी अपने प्रेम पर विश्वास किया, लेकिन अंततोगत्वा उसे मौत मिली। इस दर्दनाक मौत ने हमें लिव-इन रिलेशनशिप के खतरों से दो-चार किया है। ऐसे में देखा जाए तो बढ़ते डेटिंग ऐप के चलन और लिव-इन-रिलेशनशिप के फायदे और नुकसान दोनों है। डेटिंग ऐप्स का इस्तेमाल कोरोना महामारी के बाद से युवाओं में ज्यादा बढ़ गया है और अब मार्केट में ऐसे सैकड़ों डेटिंग ऐप्स हैं, जिसमें लॉगिन करने के बाद ऐप यूज करने वाले लड़के-लड़कियां, एक दूसरे की प्रोफाइल देखकर, दोस्ती और मुलाकात का समय तय कर लेते हैं। स्थिति ये है कि आजकल कई युवा लड़के-लड़कियों की जिंदगी का अकेलापन, राइट स्वैप और लेफ्ट स्वैप में ही बीत रहा है। श्रद्धा और आफताब भी एक डेटिंग ऐप बम्बल के माध्यम से ही नजदीक आए थे। जिसका अंजाम क्या हुआ हम सभी बखूबी जानते हैं।

एक आंकड़े के अनुसार देश में 3 करोड़ से ज्यादा लोग डेटिंग ऐप्स का इस्तेमाल करते हैं। इनमें 67 प्रतिशत यूजर्स पुरुष हैं, जबकि 33 प्रतिशत यूजर्स महिलाएं हैं। यही वजह है कि भारत में डेटिंग ऐप्स के सब्सक्रिप्शन से सालाना कमाई 515 करोड़ रुपये की होती है। गौरतलब हो कि सब्सक्रिप्शन के मामले में भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा बाजार है। भारत में डेटिंग ऐप्स के 2 करोड़ से ज्यादा पेड सब्सक्राइबर्स भी हैं। वहीं एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2017 में 25 से 34 वर्ष के बीच के 52 प्रतिशत युवा, डेटिंग ऐप पर थे। ऐसे में सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि डेटिंग ऐप्स का बाजार कितना बड़ा हो चला है, लेकिन इससे मिलने वाली नजदीकी और प्रेम एक लड़की के जीवन में कितना ठहराव ला पाता है, यह श्रद्धा और आफताब का केस चीख-चीखकर गवाही देता है। वैसे डेटिंग ऐप्स से लिव-इन तक पहुंचे सभी रिश्ते कमजोर डोर पर ही नहीं टिके होते, लेकिन फिर भी संशय और धोखा मिलने का चांस सदैव बना रहता है।

श्रद्धा और आफताब की पहली मुलाकात भी 2019 में डेटिंग ऐप पर हुई थी। उसके बाद प्यार और फिर लिव-इन रिलेशनशिप, लेकिन इस बेपनाह मोहब्बत का अंजाम बेहद खौफनाक रहा। आफताब ने अपनी लिव-इन पार्टनर श्रद्धा की बेरहमी से हत्या कर दी। इस हत्या ने समाज के सामने कई ज्वलंत प्रश्नों को खड़ा किया! जिसका उत्तर ढूढ़ें बिना आगे बढ़ना कहीं न कहीं अपने-आपको अंधेरे में रखने वाला होगा, क्योंकि हमारी बहन-बेटियां डेटिंग ऐप और लव-जिहाद का शिकार होती रहें और हम सिर्फ तमाशबीन बन अपने बहन-बेटी का नम्बर आने का इंतजार करें, यह उचित नहीं। प्रेम करना गलत नहीं है, लेकिन प्रेम में पवित्रता और शुचिता बरकरार होनी चाहिए।

हम सभी ने एक कहावत सुनी है कि एक पेड़ तभी तक जीवित रहता है। जब तक वह अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है। जैसे ही वह अपनी जड़ें छोड़ देता है, सूख जाता है। ठीक वैसे ही मनुष्य भी तभी तक जीवित रहता है जब तक कि वह अपनी संस्कृति से जुड़ा हुआ हो। संस्कृति और संस्कारों के बिना मनुष्य का नाश हो जाता है। वर्तमान समय में आधुनिकता की चकाचौंध में हम अपने संस्कारों को भूलते जा रहे हैं। खासकर हमारी युवा पीढ़ी अपने संस्कारों को बिसारती जा रही है। जिसकी सबसे बड़ी कीमत हमारी श्रद्धा, अंकिता और निधि जैसी बहन- बेटियों को चुकानी पड़ रही है। कहने को तो हमारे भारतीय समाज में बेटियों को पूजनीय माना गया है। बेटियां समाज व राष्ट्र की अमूल्य धरोहर एवं जननी होती हैं। लेकिन आधुनिक होती पीढ़ी में सामाजिक परम्परा बदल रही है। समाज का नजरिया बेटियों के प्रति बदल रहा है और बेटियां भी अब घर से बाहर निकलकर स्वछंद आसमां में उड़ना चाहती है, अपने सपनों को जीना चाहती हैं, लेकिन कई बार डेटिंग ऐप या किसी वर्ग विशेष की विकृत मानसिकता की शिकार हो जाती हैं।

लव-जिहाद, एक विकृत मानसिकता का ही खेल है। वरना प्रेम निष्छल होता है। हम प्रेम की दुहाई जब भी देते हैं, तो राधा और श्याम को याद करते हैं। मीरा का प्रेम अद्भुत था। फिर कोई पुरुष कैसे एक महिला के प्रेम के साथ छलावा कर सकता है। वास्तव में कई बार प्रेम होता ही नहीं, प्रेम केवल दूसरे के शरीर पर अधिकार प्राप्त कर लेने तक सीमित होता है। आफताब ने भी यही किया, पहले श्रद्धा का विश्वास जीता, फिर उसका शरीर। और जब उससे मन भर गया तो उसके टुकड़े-टुकड़े करने में देर नहीं लगाई और यही मानसिकता लव-जिहाद का परिचायक है।

लव जिहाद एक ऐसा ही कुचक्र है। जहां हिंदू धर्म की लड़कियों को गुमराह करके उनका धर्म परिवर्तन कराया जाता है। यहां तक कि हिंदू बनकर लड़कियों से दोस्ती करना, अपने प्यार के जाल में फंसाना और जब हिंदू लड़कियां न माने या उनसे मन भर जाए तो उन्हें मौत के घाट उतारा देना। कहीं न कहीं यही श्रद्धा के मामले में भी हुआ है। वरना जिस स्त्री (लड़की) ने अपनी देह किसी के हवाले कर दी हो। वह भी अपने घर वालों की मर्जी के विरुद्ध जाकर और अपना शहर छोड़कर लिव-इन में रहना मंजूर किया हो। उसे प्रेम में रहते हुए मौत के मुंह में तो नहीं धकेला जा सकता है। वह भी इतना निर्ममता के साथ। यह एक साजिश ही हो सकती है। जिसकी शिकार अक्सर हिंदू लड़कियां हो जाती हैं। आज के समाज का एक विद्रूप चेहरा यह भी है कि छोटी सी घटनाओं पर जो छाती पीटने लगता है, वह श्रद्धा के 35 टुकड़े हो जाने के बाद भी खमोश है। अभी तक कोई मोमबत्ती गैंग आवाज नहीं उठा रही और न ही कोई शाहीनबाग में बैठकर अनशन करने को तैयार है।

अब समय आ गया है जब समाज में बढ़ते अपराधों को देखते हुए अभिभावक अपने बच्चों को जागरूक करें। बेटियों को सिर्फ घर परिवार के काम ही न सिखाएं, बल्कि देश दुनिया में क्या घटित हो रहा है। इसकी जानकारी भी अपने बच्चों विशेषकर बहन-बेटियों को दें ताकि विकृत मानसिकता के लोगों की गिद्ध दृष्टि उनपर न पड़ सके। आज जमाना तेजी के साथ बदल रहा है, तकनीक का चलन बढ़ रहा है। ऐसे में घर की बेटियां क्या कर रही हैं, उसकी जानकारी परिजनों को होनी चाहिए। बेटियों को संस्कार और प्रशिक्षण दिए जाने की आवश्यकता है। ताकि विपरीत परिस्थितियों में भी वो आत्मरक्षा कर सकें। आज के समय में प्रेम और साजिश के बीच का फर्क समझाना भी आवश्यक है, तभी बहन-बेटियां सुरक्षित रह सकती हैं।

– सोनम लववंशी 

Leave a Reply