जन्नत, 72 हूरें और लव जिहाद

श्रद्धा वालकर के केस ने लव जिहाद की भयानकता को अपने समूचे स्वरूप में समाज के सामने रख दिया है। अब समय आ गया है कि हम अपने घर की बेटियों को इन भेड़ियों की करतूतों के प्रति सचेत करें तथा उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से इतना सक्षम बनाएं कि आवश्यकता पड़ने पर मुंहतोड़ जवाब दे सकें।

श्रद्धा वालकर और आफताब पूनावाला केस को अब एक महीना पूरा हो चुका है। 11 नवम्बर को यह केस दुनिया के सामने आया, और सारी दुनिया सिहर उठी। यह केवल हत्या का केस नहीं है। वरन लव जिहाद की वो घिनौनी सच्चाई है, जो आज सभी के सामने आना अत्यावश्यक हो गया है। क्योंकि आज एक श्रद्धा टुकड़ों में मिली है, यदि हमने कुछ न किया, तो कल न जाने कितनी श्रद्धाएं टुकड़ों में, सूटकेस में या आलमारी में मिलेंगी। वे 72 हूरों के लालच में हमारी एक-एक बेटी से साथ वहशियाना हरकत करते हैं। जिन्हें अपनों को काटने से डर नहीं लगता, वे हमारी बहू बेटियों को काटने से कहां कतराएंगे? श्रद्धा वालकर केस आज के समाज को बहुत कुछ सिखाना चाह रहा है। प्रश्न यह है, कि क्या हम इससे कुछ सीखना चाह रहे हैं?

जो लोग कह रहे हैं, कि यह एक ‘प्युअर क्राइम’ केस है, इसका धर्म से कोई सम्बंध नहीं, वे आफताब पूनावाला के ताजा बयान को एक बार पढ़ें, पुलिस की खोजबीन और पूछताछ के समय आफताब पूनावाला ने एक बहुत ही सनसनीखेज बयान दिया है, जो हर तरीके से ये साबित करता है, कि यह निर्मम हत्या केवल और केवल धर्म के नाम पर की गई है। आफताब कहता है, मुझे अब फांसी भी हो गई तो कोई गम नहीं, जन्नत में हूरें तो मिलेंगी। यह इन्हें कौन सिखाता है? इनका धर्म ही ना? उससे पूछताछ करते वक्त आफताब के चहरे पर ना कोई शिकन थी, ना ही कोई पश्चाताप, उसे कोई पछतावा नहीं है कि उसने श्रद्धा वालकर की ना केवल हत्या की, वरन उसके 35 टुकड़े किये, उसे फ्रिज में रखा, और हर रात एक एक टुकड़ेे को ठिकाने लगाने का प्रयत्न किया। यह दरिंदगी, यह वहशीपन कहां से आता है? जो अपने घर पर पाल पोस कर बड़े किये बकरे की कुर्बानी देते वक्त जरा नहीं कतराया, जो बचपन से यही खून खराबा देखता आया है, उसे एक लड़की के टुकड़े करने में क्या बड़ी बात लगी होगी? यह प्रश्न हमारा नहीं, समूचे समाज का है।

हर धर्म के प्रति आदर अपनी जगह है, लेकिन जहां एक धर्म की शिक्षा के चलते, दूसरे धर्म की बेटियों के साथ वहशीपन की हद हो रही हो, तो उसे समाज के सामने लाना आवश्यक है। जब धर्म के अनुसार बचपन से ही यह सिखाया जाए कि काफिरों को मारने से जन्नत में हूरें नसीब होती हैं, तो उन्हें उनकी इस तरह की हरकतों का पछतावा हो भी तो कैसे? इस्लाम में पवित्र माने जाने वाले ग्रंथ हदीस तिरमिजी (जमी – अल – तिरमिजी) के खंड-2 पृ.(35-40) में जन्नत में मिलने वाली हूरों का वर्णन है। आप पढ़ेंगे तो आप भी समझ जाएंगे कि किस तरह से धार्मिक आधार देकर बचपन से ही इन लड़कों का ब्रेनवॉश किया जाता है, और जिसकी शिकार बनती हैं हमारे घर की बेटियां।

हाल ही में हिंदुत्व संरक्षक संगठनों के समक्ष एक लव जिहाद का केस सामने आया। जिसमें फंसी युवती इस जाल से बाहर आना चाहती थी। उसे बचाया भी गया, बचाए जाने के बाद जो कहानी उसने सुनाई वह बहुत ही खतरनाक थी। लड़की हिंदू ब्राह्मण परिवार से थी, उसने कहा उसके घर में बचपन से ही उसने धार्मिक माहौल नहीं देखा, ना ही ज्यादा तीज त्यौहार मनाए जाते थे। ऐसे में जब वह शादाब से मिली, और शादाब ने उसे अपने घर की कहानियां सुनाईं वह उस ओर आकर्षित हुई। शादाब उसे बताया करता था, किस तरह उसके घर के सभी लोग एक साथ मिलकर एक थाल से खाना खाते थे, किस तरह वे साथ मिलकर रोज नमाजें पढ़ते थे, ईद मनाते थे। शादाब ने इस ‘एकता’ का बखान उसके सामने इतना भर-भरकर किया, कि वह भी इसका एक हिस्सा बनना चाहती थी। और वह उस ओर खिंची चली गई। उसके जीवन में जो कमी थी, जिस महौल की कमी थी, उसे पूरा करने वो निकल पड़ी। लेकिन जब सच्चाई उसके सामने आई, उसकी आंखें अचानक खुली। शादाब के दो निकाह हो चुके थे। जब वह उस घर में पंहुची तब धर्म के नाम पर लगाई जाने वाली बंदिशें उसके सामने आई, और घिनौनी सच्चाई भी। खुलेपन में पली बढ़ी वह युवती यह सब सहन नहीं कर पाई, और जैसे तैसे, इन संगठनों की सहायता से इस कालचक्र से बाहर आ सकी। वह श्रद्धा बनने से तो बच गई, लेकिन उसकी कहानी ने ये सीख दी, कि घर पर यदि सनातनी माहौल ना मिले, तीज त्यौहार ना मनाए जाएं, अपनी संस्कृति को ना संजोया जाए, तो आगे कितनी श्रद्धाएं अपनी राह से भटक सकती हैं।

इस मामले में काफी सोच विचार करने के पश्चात कुछ बिंदु सामने रखना आवश्यक है, जिससे हम अपनी बेटियों को लव जिहाद रूपी इस भयानक मायाजाल से बचा सकेंगे :

संवाद की शुरुआत घर से हो। आज भी हमारे समाज में माता पिता से खुला संवाद रख पाना हर बच्चे के लिये सम्भव नहीं है, खास कर टीनएजर्स के लिये। घर पर माता पिता यदि खुले संवाद का माहौल रख सकें, तो बच्चे उनसे उनके साथ होने वाली हर घटना बता सकेंगे। जिससे यदि कोई खतरा नजर आ रहा हो, तो माता पिता समय रहते सतर्क हो सकते हैं, और अपनी बच्चियों को भी सतर्क कर सकते हैं।

घर पर धार्मिक, सांस्कृतिक माहौल होना अत्यावश्यक है। लव जिहाद धर्म की कट्टरता से आता है, उसे जवाब देना है, तो हमें भी धार्मिक रूप से सुदृढ़ रहना आवश्यक है। जिस तरह हर 3-4 साल का मुस्लिम बच्चा ‘या इलाह इल्लल्लाह’ बोलना सीख जाता है, नमाज पढ़ना सीख जाता है, क्या हमारे घर के बच्चे संस्कृत के श्लोक और गीता के श्लोक बोल पाते हैं? यदि नहीं तो गलती किसकी है? हम अपने बच्चों को इतना सक्षम रखें, कि उन्हें हमारे धर्म की शिक्षाओं का ज्ञान हो। सही और गलत ही पहचान हो। और उनसे जुड़ी सांस्कृतिक डोर इतनी पक्की हो, कि वो अपने कदम टस से मस ना कर पाएं।

सर्व धर्म समभाव के साथ साथ इसके साथ आने वाली ‘काली सच्चाई’ भी बच्चियों तक पहुंचाएं। ऐसे केसेस के बारे में उन्हें जानकारी दें। 13-14 साल की उम्र से ही लव जिहाद क्या है, कैसे फैल रहा है, इसके पीछे का कारण क्या है, इसकी जानकारी लड़कियों को देना बहुत अधिक आवश्यक है। अन्यथा कई बार अज्ञानता के कारण भी लडकियां इन दरिंदों के चुंगल में फंसती हैं।

लव जिहाद क्या है? इसे कैसे पहचानें? इसकी जानकारी भी देना आवश्यक है। सबसे पहली बात चाहे दुनिया कितना भी कहे प्रेम का कोई धर्म नहीं होता, बच्चियों को धर्मिक सच्चाई से अवगत कराना आवश्यक है। ये लड़के किस तरह दोस्ती और हमदर्दी के नाम पर आपके करीब आते हैं, फिर धर्म का आधार देकर आपको अपने करीब लाते हैं और ब्रेनवॉश करते हैं और किस तरह से आपको उनके धर्म में सम्मिलित करने के लिये, सम्मोहन से लेकर जबरदस्ती तक हर प्रक्रिया करने की कोशिश करते हैं, इसकी जानकारी बच्चियों को होना आवश्यक है।

अपने घर की बच्चियों में हमें दुर्गाशक्ति जगाना आवश्यक है। उसके लिये उन्हें मां दुर्गा और उनकी शक्तियों का ज्ञान होना आवश्यक है, जो उन्हें घर से ही मिल सकता है। घरों से संस्कारों का जोर पुख्ता होना चाहिये। संस्कार पक्के होंगे, तो बच्चियां राह से नहीं भटकेंगी। और यह काम केवल मां का ही नहीं, सम्पूर्ण परिवार का है। घर पर दुर्गाशक्ति का माहौल मिला तो यह शक्ति घर की बच्चियों में अपने आप समा जाएगी।

लव जिहाद एक भयानक सच्चाई है जिसकी शुरुआत ऐसी हिंदू लड़कियों को ढूंढ़ने से होती है, जो आसानी से जाल में फंस जाएं। इन लड़कियों के अलग-अलग रेट भी तय होते हैं। फिर स्लॅम बुक्स, रिचार्ज की दुकान या आस-पास की दुकानों से इन लड़कियों की जानकारी और नम्बर निकलवाया जाता है। उन तक पंहुचने के लिये कई बार नाटक रचाए जाते हैं।  यह घिनौनी सच्चाई खुल कर अपने घर की बच्चियों को बताएं। बैठने दो उनके मन में डर कि यदि उन्होंने कोई गलत कदम उठाया तो उसका अंजाम क्या हो सकता है, साथ ही उनके मन से ऐसे लड़कों का डर निकाल कर उनसे सामना करने के लिये आत्मनिर्भर और सक्षम भी बनाईये। ऐसे माहौल दीजिए कि वे खुलकर इन घटनाओं को आप के साथ साझा कर सकें।

यदि आप चाहते हैं समाज में और श्रद्धा वालकर जन्म ना लें, तो आज ही हमें साथ मिलकर कदम उठाना होगा। कल यदि देर हो गई, तो न जाने कितनी श्रद्धाओं के न जाने कितने टुकड़े मिलेंगे। सावधान होना और सावधान करना ही एकमात्र उपाय है, हमारी बेटियों को बचाने का। अन्यथा पछताने के अलावा हाथ में कुछ नहीं रह जाएगा।

Leave a Reply