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आगम ग्रंथों में राम और उनके चरित्र के चिंतन

आगम ग्रंथों में राम और उनके चरित्र के चिंतन

by हिंदी विवेक
in अध्यात्म, विशेष, संस्कृति
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हमारी संस्कृति पेगस ग्रीस की तरह बौद्धिक संस्कृति नहीं है, यह पुराने चीन की तरह नैतिकता की भी संस्कृति नहीं। भारत एक आध्यात्मिक संस्कृति है।

इस आध्यात्मिक संस्कृति का प्रस्थान बिन्दु ‘साधना’ है। इसी साधना का उद्घोष ‘अथातो ब्रह्म जिज्ञासा’, ‘अथातो धर्म जिज्ञासा’ तथा ‘अथातो शक्ति जिज्ञासा’ के माध्यम से हुआ है।

राम इसी साधना पक्ष के ‘शलाका पुरुष’ तथा साधन मर्यादा के पुरूषोत्तम हैं।

भारतीय शाश्वत सनातन साधना के दो रूप हैं। एक बहिरंग दूसरी अन्तरंग। यह बहिर्मुखी साधना ही निगम कहलाती है और अन्तर्मुखी अन्त:सलिला साधना का ही नाम आगम है।

राम और उनके चरित्र के चिंतन के लिए हमारे पास जो उपलब्ध स्रोत हैं उनमें मुख्यतः चार प्रधान धाराएं हैं।

१- निगम ( वेद पुराण उपनिषद)
२- आगम (तांत्रिक परम्परा और गुरु शिष्य पद्धति)
३- भक्ति साहित्य (प्रमुखत: वैष्णव रामायत साधु संतों का चिन्तन)
४- लोक में राम ( पीढ़ी दर पीढ़ी रामचरित-रस को समाज ने जैसे घोंटा छाना पिया और अगली पीढ़ियों को हस्तांतरित किया)

तुलसीदास ने रामचरितमानस को नाना पुराण निगम आगम सम्मत कहा है। इस एक वाक्य में ही राम के चरित्र के बारे में मानस बनाने के लिए उपलब्ध स्रोतों का चिंतन सहज उपलब्ध हो जाता है।

फिर भी तुलसीदास ने दोहावली में एक जगह कहा है
‘निगम अगम साहेब सुगम राम साॅंचिली चाह’

अब अगर वर्तमान और अर्वाचीन साहित्य का अनुशीलन किया जाए तो हम देखते हैं कि राम के चरित्र का जो वितान विस्तार विधान वर्तमान समाज में प्रचलित है उसमें निगमों, भक्ति साहित्य और लोक परंपरा से आए सूचनाओं की बहुलता है।

जबकि तांत्रिक और आगम वाङ्मय से राम की जो छवि निकलती है उसकी चर्चा बहुत कम है। साथ ही साथ लिखित रूप में यथेष्ट सामग्री का भी अभाव है।

आगम यह जो शब्द है यह वेद का बोध तो है उसका वाचक भी है लेकिन वास्तव में आगम पद किसी व्यक्ति विशेष के लिए उसी शास्त्र का वाचक माना जाता है जिस पर कि उसका सहज विश्वास जम गया हो।

आगम को अगर पारंपरिक रूप से समझा जाए तो वाराही तंत्र का उल्लेख करना उचित होगा।
आगत शिववक्त्रेभ्यो; गतञ्च गिरिजाश्रुतौ
मितञ्च वासुदेवस्यः तस्मादागम उच्यते ।

कहीं अन्य तांत्रिक ग्रंथों में यह पाठ ऐसे भी मिलता है कि
आगतं पञ्चवक्त्रात्तु गतञ्च गिरिजानने ।
मतञ्च वासुदेवस्य तस्मादागममुच्यते”

अर्थात आगम वह शास्त्र हैं जो शिव के मुख से निकलकर पार्वती तक पहुंचे तथा विष्णु द्वारा समर्थित हैं।

इस रूपक को गम्भीरता से समझा जाए तो यह भारत की वाचिक ‘मुखात तु कर्णात’ चलने वाली गुरू शिष्य परम्परा का द्योतक है।

आगम की ही एक अपर संज्ञा है – तंत्र। तंत्र और आगम, समानार्थी अर्थों में हमारे शास्त्रों में प्रयुक्त होते रहे हैं। आगम मूलक शास्त्र -संस्कृति में विज्ञान, धर्म और दर्शन, ये तीनों लगभग समानार्थी हैं।

आगम सर्वसुलभ होते हुए भी चूंकि वह अन्तरंग साधना से जुड़ते हैं, वह गुह्य ही रहे। इसी कारण आगमिक राम या राम के तांत्रिक स्वरूप की लोक में विशद बृहद चर्चा नहीं मिलती।

इसका एक कारण यह भी संभवतः रहा हो कि अधिकारी विद्वानों में बहुधा साधकों की ही बहुलता रही, सो उनका जोर श्रीराम तत्व के हृदयंगम करने पर अधिक रहा, जागतिक प्रकटीकरण स्यात् उनका लक्ष्य ही नहीं था।

आगम ही तंत्र है। तंत्र में राम के स्वरूप को जानना भगवान श्रीराम को और निकट से जानने की तरह होगा। वैसे भी तंत्र की तो एक परिभाषा भी है
‘तन्यते विस्तार्यते ज्ञानम् अनेन्, इति तन्त्रम्’
या कहीं इस तरह भी कहा है कि ‘तनोति त्रायति तन्त्र’!

स्पष्टत: यहां एक धातु है, त्रय, जिसका अर्थ होता है रक्षा करना और दूसरी धातु है, तन, जिसका मतलब है विस्तार करना| तन्यते| त्रायती| रक्षा करना और विस्तार करना| तो इस अर्थ को ध्यान में रखते हुए आगम कहता है कि तंत्र उसको कहते हैं जो हमारा विस्तार करता है और रक्षा करता है| दो स्तरों पर एक ज्ञान का ज्ञान की रक्षा और ज्ञान का विस्तार गुरु शिष्य परंपरा में और दूसरा उस व्यक्ति का भी विस्तार उसका स्व व्यापक हो| उसका अस्तित्व सुनिश्चित हो और उसका स्व व्यापक हो| समष्टिमूलक बने वह|

आगम इन सात लक्षणों से समवित होता है :- सृष्टि, प्रलय, देवतार्चन, सर्वसाधन, पुरश्चरण, षट्कर्म, (शांति, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन तथा मारण) साधन तथा ध्यानयोग। अधिकारी विद्वानों ने जहां राम को तारा तत्व से जोड़कर देखा है, वहां रामायण के सातों कांडों में इन सातों लक्षणों को क्रमवार उपस्थित माना है।

राम के आगमिक स्वरूप के चिन्तन के क्रम में हमारे आवश्यक सोपान क्या हों, उसमें आगम को परिभाषित करता यह सूत्र हमारी सहायता करता है।
आगच्छंति बुद्धिमारोहंति अभ्युदयनि:श्रेयसोपाया यस्मात्‌, स आगम:।

आरोहण, अभ्युदय और नि:श्रेयस को प्राप्त होना आगम के संकेत हैं।

प्रस्तुत पुस्तक में इसी क्रम को पाने की चेष्टा है।

आगम या तंत्र आत्मगोपन की प्रक्रिया है प्रकाशन के लिए। तो जब इसके माध्यम से आत्मगोपन राम को प्रकाशित किया जाए तो इसके स्रोत और अवयव हृदय संवाद की ही शैली में होने चाहिए।

कारण यह कि वेदादि निगम अपौरुषेय अवश्य हैं पर दृष्ट हैं परन्तु आगम उपदिष्ट हैं। हृदय ही प्रश्नकर्ता है और हृदय ही उत्तर देता है। यहां सभी संवाद अभिन्नों के बीच हुए हैं। जैसे शिव-पार्वती। शाश्वत युगल। सर्वथा अभिन्न।

आगमिक राम या राम के तांत्रिक स्वरूप के चिन्तन के क्रम में हम भगवान श्रीराम के जीवन के कम चर्चित प्रसंगों को भी रेखांकित करे चलें। जैसे कि ऋतुविज्ञानी राम, भगवान राम का ज्योतिषीय पक्ष, शाबर की दृष्टि में राम, किरात परम्परा के राम आदि।

श्रीराम का यह बृहद रूप वैष्णव आगम (पांचरात्र तथा वैखानस आगम), शैव आगम (पाशुपत, शैवसिद्धांत, त्रिक आदि) तथा शाक्त आगम सबमें पसरा हुआ है। इसके अतिरिक्त बौद्ध तंत्र, बोधिसत्व कथाओं तथा जैनागमों में भी राम तत्व पर छुपी हुई बृहद विपुल सामग्री उपलब्ध है। इन सबका एक सत सत्व रूप पुस्तकाकार रखा जाना ही चाहिए।

– मधुसूदन उपाध्याय

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Tags: aagam granthaagam tantrareligiousshri ram

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