दुनिया प्रवचन से नहीं आचरण से बदलेगी

हम दुनिया को बदलने की सोचते रहते हैं, चाहते हैं कि संसार से में से बुराई घटे और अच्छाई फैले। इस कार्य की पूर्ति के लिए आमतौर से सभा-सम्मेलन करने की, प्रवचन-व्याख्यान करने की, लेख लिखने और अखबार छापने की बात सोची जाती है, कुछ प्रचारात्मक, प्रदर्शनात्मक कार्यक्रम भी बनते हैं, प्रतियोगिताएँ, जुलूस, प्रदर्शनी आदि के आयोजन होते हैं और बात इतने तक ही समाप्त हो जाती है। यह कार्यक्रम बहुत दिन से चलते आ रहे हैं, इनका थोड़ा सा असर भी होता है, पर चिर प्रयत्नों के बावजूद वह लक्ष्य अभी भी दूर दिखाई पड़ता है, जिसके लिए यह सब किया गया होता है।

कारण एक ही है कि लोगों की पैनी दृष्टि इन तुलनात्मक काम करने वालों के व्यक्तिगत जीवन पर जा टिकती है । वे यह जानना चाहते हैं कि यदि यह प्रचार वस्तुतः अच्छा और सच्चा है, तो उसके संयोजकों ने , प्रचारकों ने अपने जीवन में उतार ही होगा। लाभदायक उत्तम बात का लाभ कोई स्वयं ही अपनाने के लाभ से वंचित क्यों रहेगा ? जनता की यह कसौटी सर्वथा उचित भी है ।

धर्म और सत्य के मार्ग पर चलना कष्ट साध्य है, उसमें लाभ तो है, पर तुरंत नहीं विलंब से वह मिलता है। इसके विपरीत अनैतिक कार्यों का अंतिम परिणाम सुखद भले ही न होता हो, तुरंत लाभ तो रहता ही है । इस तुरंत के लाभ को छोड़कर तुरंत कष्ट साध्य प्रक्रिया में पड़ने के लिए लोग तभी तैयार हो सकते हैं, जब उन्हें विश्वास हो जाए कि धर्म प्रचारक लोग उन्हें बहका तो नहीं रहे हैं।

यदि उन्हें संदेह हो गया कि धर्म प्रचार का आडंबर सस्ती वाहवाही लूटने और किसी स्वार्थ साधन के लिए किया जा रहा है, तो लोग धर्म-कर्म की बातों को सुन तो लेते हैं, पर उन्हें अपनाने के लिए तैयार नहीं होते। प्रचार की बड़ी-बड़ी स्कीमें इसी चट्टान से टकराकर टूट जाती हैं। आज अगणित उदारवादी संस्थान प्रचुर जन-शक्ति और धन-शक्ति लगाकर मनुष्य को अच्छा बनाने का आंदोलन कर रहे हैं, वह सब निष्फल ही जा रहा है, स्थिति बद से बदतर होती चली जा रही है।

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