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हिन्दी साहित्य के अमिट हस्ताक्षर रांगेय राघव

हिन्दी साहित्य के अमिट हस्ताक्षर रांगेय राघव

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग, साहित्य
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यों तो हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि में अनेक लेखकों ने योगदान दिया है; पर 17 जनवरी, 1923 को जन्मे रांगेय राघव का स्थान उनमें विशिष्ट है। 
वे तमिलभाषी पिता और कन्नड़भाषी माँ की सन्तान थे; पर उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम हिन्दी को बनाया। 15 वर्ष की छोटी अवस्था से ही उनकी कविताएँ देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छपने लगी थीं। उनकी संवेदनशीलता, पैनी भाषा तथा कथ्य की अलग शैली से लोगों को विश्वास ही नहीं होता था कि इन कविताओं का रचनाकार एक बालक है।

रांगेय राघव की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने समाज के उपेक्षित वर्ग को अपनी रचनाओं का आधार बनाया। यह वर्ग समाज जीवन की तरह साहित्य में भी उपेक्षित ही था। उन्होंने खानाबदोश और घुमन्तु जातियों के जीवन पर ‘कब तक पुकारूँ’ नामक उपन्यास लिखा, जिसका बहुत स्वागत हुआ। दूरदर्शन के विकास के बाद इस पर धारावाहिक भी बनाया गया। उनके काव्य संकलन ‘राह के दीपक’ में भी इन्हीं घुमन्तुओं का वर्णन है।

रांगेय राघव ने वर्तमान के साथ ही इतिहास के विलुप्त अध्यायों पर भी अपनी सशक्त और जीवंत लेखनी चलाई। उनका उपन्यास ‘मुर्दों का टीला’ पाठकों को विश्व इतिहास की उस प्राचीनतम सिन्धु घाटी की सभ्यता की ओर ले जाता है, जो मुउन-जो-दड़ो या ‘मोहनजोदड़ो’ के नाम से प्रसिद्ध है।

यह रांगेय राघव का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास माना जाता है। यद्यपि उपन्यासकार के रूप में 1941 में प्रकाशित ‘घरौंदे’ से ही उनकी पहचान बन गयी थी। इसमें जहाँ एक ओर विश्वविद्यालय के छात्रों के अन्तर्द्वन्द्व को उभारा गया है, वहीं किसानों और जमींदार के संघर्ष की कथा भी साथ-साथ चलती है।

पर उनके जिस उपन्यास ने हिन्दी जगत को हिला दिया, वह था ‘विषाद मठ’। इसमें उन्होंने 1943 के बंगाल के अकाल को केन्द्र बनाया था। उपन्यास लिखने से पहले उन्होंने अकालग्रस्त क्षेत्र का भ्रमण किया। इस प्रकार उन्होंने जो कुछ आँखों से देखा, उसे ही लेखनी द्वारा कागज पर उतार दिया।

प्रत्यक्ष अनुभव के कारण ही वे अकाल की भयावहता और उसके कारण तिल-तिलकर मरते लाखों लोगों की त्रासदी का सजीव चित्रण कर पाये। इसे पढ़कर लोगों की आंखें भर आती थीं। उनके अन्य प्रसिद्ध उपन्यास हैं – चीवर, महायात्रा, प्रतिदान, पक्षी और आकाश, सीधे सच्चे रास्ते आदि।

उपन्यास के अतिरिक्त रांगेय राघव कहानी लेखन में भी सिद्धहस्त थे। उनकी कहानी तबेले का धुन्धलका, गदल, इन्सान पैदा हुआ… आदि ने साहित्य जगत में बड़ी ख्याति पायी। लेखन के साथ ही उन्होंने अनुवाद कार्य भी किया। विज्ञान, इतिहास, समाजशास्त्र आदि विषयों पर उनके लेख भी बहुचर्चित हुए। उनके इस विविध लेखन का आधार था उनका गहन अध्ययन। वे हिन्दी के सम्भवतः पहले ऐसे लेखक थे, जिन्होंने लेखन को ही अपना पूर्णकालिक काम माना और उसी से घर-परिवार का पालन किया।

दुर्भाग्यवश प्रभु ने उन्हें अपनी प्रतिभा प्रकट करने का बहुत कम समय दिया। उन्होंने लगभग 22 वर्ष तक लेखन किया और इस दौरान 139 पुस्तकें लिखीं। उपन्यास, कविता, कहानी, यात्रा वर्णन, रिपोर्ट, नाटक, समीक्षा….सब विधाओं में उन्होंने प्रचुर कार्य किया। लेखन की शायद ही कोई विधा हो, जिसमें उन्होंने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज न कराई हो। ऐसे प्रतिभाशाली लेखक का केवल 39 वर्ष की अल्पायु में कैंसर से देहावसान हो गया।

संकलन – विजय कुमार 

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Tags: hindi litratureindian poetindian writernovelnovelistpoetryrangey raghav

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