दूसरों पर दोषारोपण करने से पहले स्वयं को जाँचें

 

बहुधा हम सब यह अभियोग करते रहते हैं कि संसार बहुत खराब हो गया है। जिसे देखो वह वैसे ही कार्य करने में लगा हुआ है, जो संसार की दु:ख-वृद्धि करते हैं, पर क्या कभी हम यह भी सोच पाते हैं कि संसार में दु:ख और कष्ट बढाने में हमारा भी कुछ हाथ है या नहीं ?

सच्ची बात यह है कि हमारी शिकायत ही इस बात का प्रमाण है कि हम स्वयं ही अपने में पूरी तरह से अच्छे नहीं हैं । यदि हमारी मनोभूमि स्वच्छ और उच्च स्तर की हो तो हमें संसार न तो बुरा ही दीख पड़े और न उससे प्रभावित होकर हम दु:खी हों ।

जिस मनुष्य का स्वभाव जैसा होता है, उसी प्रकार की प्रतिक्रियाएँ ही उसे प्रभावित करती हैं और उसी प्रकार के तत्व वह ग्रहण करता है। किसी दूसरे के क्रोध का प्रभाव उसी पर होगा जो स्वयं भी क्रोधी होगा । शांतचित्त और संतुलित मस्तिष्क वाले मनस्वी व्यक्तियों पर उसका न तो कोई प्रभाव पड़ता है और न उन पर तदनुरूप प्रतिक्रिया होती है । जिसने अपने तामस पर विजय प्राप्त कर ली होती है, वह अपने प्रति दूसरे की बुराई देखकर भी शांत बना रहता है । दूसरे की क्रोधाग्नि को अपनी शीतल वाणी और मधुर व्यवहार से बुझाने का प्रयत्न किया करता है ।

यह एक निर्विवाद सत्य है कि जो जैसा होता है, संसार का स्वरुप उसे वैसा ही दिखाई देता है । यह संसार एक दर्पण के समान है, इसको जो देखता है, उसे अपना स्वरूप ही दिखाई देता है । “सज्जन” व्यक्ति को यही संसार “सज्जनों” और “दुर्जन” व्यक्ति को “दुर्जनों” से भरा दीखता है। इसलिए शिकायत करने से पूर्व हमें यह भली प्रकार समझ लेना चाहिए कि हम पूरी तरह भले हैं या नहीं ? निश्चय ही हममें बुराइयाँ हैं, तभी संसार हमें बुरा दीखता है । यदि हमारी मनोभूमि उसकी बुराइयाँ ग्रहण करने योग्य न हो तो हमें यह संसार कदापि बुरा दिखलाई न पड़े ।

Leave a Reply