संत रविदास जी पर मेरी एक कविता

मैं कठौती की गंगा

मैं सीधा मेरूदंड
मैं अगरबत्ती का गंध धूम
मैं ज्योति शिखा निषकम्प

मैं विनय
मै अभय
मैं कठौती की गंगा

अध्यात्म मेरा पुरुषार्थ
मैं ममता समता के हितार्थ

मैं भक्ति का छंद
मैं निष्ठा अनुबंध

श्रम में राम
राम में श्रम
मेरा पराक्रम

पारस पत्थर नहीं
पसीने की बूँद ही मेरा पारस
तुम जल से नहा कर
केवल स्वच्छ होते हो
मैं पसीने से नहा कर
पवित्र होता हूं

मै कर्मशील
मैं चर्म शिल्पी
चमडा मेरे जीवन का सच

विराग-पुष्प का पराग मैं
दलितों का महाभाग मैं
अस्पृश्यता मेरी नहीं
तुम्हारी समस्या
तुम्हारा मन आज भी
अमावस्या !

कल मैं कंमाच था
आज मैं पलाश हूं
मैं प्रणत रविदास हूं ।

” बेगम पुरा”मेरी बस्ती का नाम
स्वागत है
आइए,आपके लिए भी इसमें
रक्षित है एक धाम !

– देवेंद्र दीपक

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