नई हिन्दी कविता के विविध रंग

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तुकांत-अतुकांत, छंदयुक्त-छंदमुक्त, हायकू इत्यादि कविता के कई रूप हैं। कम शब्दों में भावों की अभिव्यक्ति ही कविता की पहचान रही है। समय के साथ इसमें कई धाराएं बनीं और कई धाराएं मिली परंतु कविता रूपी भागिरथी निरंतर प्रवाहमान है।

संत रविदास जी पर मेरी एक कविता

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मैं कठौती की गंगा मैं सीधा मेरूदंड मैं अगरबत्ती का गंध धूम मैं ज्योति शिखा निषकम्प मैं विनय मै अभय मैं कठौती की गंगा अध्यात्म मेरा पुरुषार्थ मैं ममता समता के हितार्थ मैं भक्ति का छंद मैं निष्ठा अनुबंध श्रम में राम राम में श्रम मेरा पराक्रम पारस पत्थर नहीं…

पुण्यश्लोक मां अहिल्या महान (कविता)

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इस तपोवन मे है बिखरी ज्योती एक तेजवान पुण्यश्लोक जननी है वो नाम अहिल्या है महान अहिल्या अहिल्या अहिल्या अहिल्या महान आशिष है शिवशंभू का करे ईश भी मंत्रोपचार छत्र धरे सर पर स्वयं जेजुरी मल्हार अहिल्या अहिल्या अहिल्या अहिल्या महान नित बरसता पुण्य यहां है नर्मदा मैया महान मालवा…

दीपावली

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दिवाली दे सुषमा निराली विश्व को नव ज्ञान दे। शांति दे इस विश्व को गौरवमयी पहचान दे। चिर पुरातन हिंद से विद्वानता का मान दे। प्रीति, वैभव, चेतना,यश हर हृदय को दान दे॥ दिवाली पर मानव हृदय में प्रकृति के प्रति प्यार हो। कष्ट का होवे निवारण आरोग्यमय संसार हो। प्रात: स्वागत गान गाए सांझ गाए आरती- दीप की शुभ रश्मियों का विश्व को उपहार हो। आओ एक इतिहास रचाएं। इस दुनिया में तम ही तम है दीवाली पर दीप जलाएं। नेहन्नीति की सुंदर सरगम मिल कर हम तुम सारे गाएं॥ विश्व गुरु भारत का सपना, आओ! हम साकार बनाएं दी

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