वेलेंटाइन से हमे कोरेन्टाइन की याद आ गई

कहते हैं मुंबई में सिर्फ दरिया का पानी ही विदेशो से नही आता बल्कि वंहा की तहजीब भी वह अपने साथ ले आती है किंतु अब यह कहावत पुरानी हो गई है,रेडियो तक तो ठीक था, टेलीविजन आया तो बदलाव की खुराक में असर अधिक नजर आने लगा और बची खुची कसर मोबाइल ने पूरी कर दी। वेलेंटाइन डे तो इस कदर हिंदुस्तान में मनाया जाने लगा जैसे मानो की विदेशी संस्कृति का इंजेक्शन हिंदुस्तान के युवाओं की धमनियों में चुभा दिया गया हो, जो खून के साथ तैरने लगा है और दिल दिमाग पर उसकी तस्वीर बखूबी नजर आने लगी है।

वेलेंटाइन से हमे कोरेन्टाइन की याद आ गई। आंखों में मायूसी, चेहरे पर उदासी, मन मे घबराहट , दिमाग मे अनहोनी की आशंका , और जहां से वेलेंटाइन की यह तहजीब हमारे शहर व गांव में आई है वहां से यदि कोई परदेशी आया होता तो कोरेन्टाइन के अलावा कोई विकल्प जीवन के इम्तिहान में नही था।
हिन्दुस्तान में प्रेम का मनुहार श्री कृष्ण ने बंशी बजाकर किया था। कई कवियों ने प्रेम को अपनी कविताओं और रचनाओं से इस कदर प्रस्तुत किया है कि उसमें रस के साथ रहस्य भी है। जिस प्रेम को करने से पहले समझना पड़ता हैं महसूस किया जाना जरूरी हैं।

वेलेंटाइन डे में शारीरिक आकर्षण है इसलिए सरकार का इस प्रेम से वैचारिक घर्षण है। समाज मे वह प्रेम निश्चित रूप से समाज के लिए विकृत और खतरनाक हो सकता है जिसको नियंत्रित करने के लिए सरकार को चौकन्ना होना पड़े। खतरनाक रोमियो को खोजकर उन्हें चिन्हित कर उनके लिए इंतजामात करने है। हिन्दुस्तानी प्रेम अविरल अविराम अनुपम है कबीरज़ मीरा, रैदास, जायसी, सूर, तुलसी सभी मे प्रेम है और यही प्रेम हिंदुस्तान के जीवन दर्शन के नींव में उल्लास का आधार है।

Leave a Reply