लीलावती कुसरे ‘चंद्रप्रभा सैकिया’ पुरस्कार से सम्मानित

असम सहित पूरे पूर्वोत्तर में सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाली ‘भाभाजी’ के नाम से प्रसिद्ध लीलावती कुसरे (आयु ८० वर्ष) को हाल ही में असम के मुख्यमंत्री हेमंत विस्वा शरमा के हाथों ‘चंद्रप्रभा सैकिया’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यह पुरस्कार ३ वर्षों में एक बार दिया जाता है.

रा. स्व. संघ के स्वयंसेवक शरद कुसरे के साथ १९६२ में विवाह होने के उपरांत लीलावती कुसरे असम में गई. तब उन्होंने तत्कालीन सरसंघचालक माधवराव गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरुजी को वचन दिया था कि कितने भी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी वे दोनों असम छोड़ कर नहीं जाएंगे और संघकार्य को सतत आगे बढ़ाएंगे. राष्ट्र सेविका समिति के कार्यों से समरस हो चुकी लीलवती कुसरे ने स्वयं को संघ कार्यों में झोंक दिया. एक विद्यालय में शिक्षिका के रूप में सेवा देने के बाद प्रत्येक शनिवार एवं रविवार को वह दुर्गम भागों में प्रवास कर लोगों से सम्पर्क करती, तो वहीं दूसरी ओर शरद जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का काम करते थे. जिससे कारण तत्कालीन कांग्रेस सरकार के साथ ही देश विरोधियों के हिटलिस्ट में वे सदैव टॉप पर रहते थे.

एक बार पुलिस ने उन्हें पूछताछ के नाम पर गिरफ्तार कर लिया था तो एक बार अल्फ़ा नामक देशविरोधी संगठन के लोगों ने उनके बड़े बेटे का अपहरण कर लिया था. बावजूद इसके भाभी जी विचलित नहीं हुई और असम छोड़कर जाने का विचार भी उनके मन में कभी नही आया. भाभी जी को मिला पुरस्कार यह कांटो भरे राह पर चल कर उपेक्षितों तक पहुंचने वाले राष्ट्रीय विचारों के कार्यकर्ताओं का भी सम्मान है. देश के लिए अपने बच्चों के प्राणों को भी दांव पर लगाने की सीख देनेवाली प्रत्येक माँ का भी यह सम्मान है.

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