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फिजी विश्व हिंदी सम्मेलन – वैश्विक हिंदी की दस्तक

फिजी विश्व हिंदी सम्मेलन – वैश्विक हिंदी की दस्तक

by प्रवीण गुगनानी
in देश-विदेश, विशेष, संस्कृति, सामाजिक, साहित्य
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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन
भारतेंदु हरिश्चंद्र

विश्व हिंदी सम्मेलन, फिजी की चर्चा प्रारंभ करने से पूर्व एक व्यथा या विवाद की चर्चा करते हैं। तथ्य यह है कि विश्व के अनेकों शैक्षणिक, सर्वेक्षण व अध्ययन संस्थानों ने यह माना है विश्व भर में लगभग 150 करोड़ लोगों की भाषा होने से हिंदी विश्व की सर्वाधिक अधिक बोली जाने वाली भाषा बन गई है। व्यथा या विवाद इसलिए क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ अब भी विश्व में सर्वाधिक अधिक बोली जाने वाली भाषा में सबसे ऊपर क्रमशः चीनी व अरबी को रखता है। अर्थात, संयुक्त राष्ट्र भाषा हिंदी को अब भी तीसरे स्थान पर रखता है। वस्तुतः इस भाषाई राजनीति के पीछे संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा में हिंदी को सम्मिलित न होने देने का षड़यंत्र रहा है। स्पष्ट है कि हिंदी को वैश्विक मंच पर उसका स्थान दिलाने में अब तक हमारी भूमिका कुछ दुर्बल ही रही है।

पिछले दिनों भारत से अट्ठारह हजार किमी दूर सुदूर आस्ट्रेलिया महाद्वीप के एक सुंदर से देश फिजी में 12 वां विश्व हिंदी सम्मेलन संपन्न हुआ। प्रशांत महासागर की विशाल किंतु दिलचोर लहरों के शोर की संगीतिका में यह सुनना बड़ा ही मधुर लगता है कि “फिजी की आधिकारिक भाषा हिंदी है”। इस गौरवभाव संग 15-17 फरवरी 2023 को आयोजित यह हिंदी सम्मेलन वैश्विक विस्तार, वैज्ञानिक वितान व अत्यंत संभावनापूर्ण विहान के साथ संपन्न हुआ।

कोस-कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वाणी… ये कहावत भारत की स्थिति का सटीक और समूचा विवरण दे देती है। भारतीय भाषाएं, बोलियां और लिपियां सैंकड़ों की संख्या में हैं किंतु समस्त भारतीय भाषाओं की जननी तो संस्कृत ही है और संस्कृत की सबसे प्रिय और लाड़ली संतान हिंदी ही है। हिंदी ही हमारे राष्ट्र की घोषित राजभाषा है, और चिर प्रतीक्षित राष्ट्र्भाषा भी। सैकड़ों बोलियों और भाषाओं वाले देश भारत में हिंदी का स्थान अद्वितीय इसलिए भी माना जाता है क्योंकि इसी भाषा ने हमारे राष्ट्र का राष्ट्रत्व अक्षुण्ण रखा है। हिंदी ने ही हमारे देश की विविधता को एकता की माला में पिरोकर रखा हुआ है। भारत की स्वतंत्रता के अमृतकाल में स्वाभाविक ही है कि हम यह स्मरण करें की किस प्रकार हिंदी ने हमारे स्वतंत्रता आंदोलन को बल और गति प्रदान की थी।

फिजी का 12 वां विश्व हिंदी सम्मेलन संयोगवश स्वतंत्रता के अमृतकाल में आयोजित हुआ। भारत का फिजी का प्रत्यक्ष सम्बंध रहा है। फिजी भी अंगेजों का गुलाम देश रहा है। वर्ष 1879 में अंग्रेज फिजी में चीनी उद्योग के विस्तार हेतु भारत से हजारों की संख्या में भारतीयों को गिरमिटिया मजदूरों के रूप में फिजी ले गए थे। कालान्तर में गिरमिटिया श्रमिक के रूप में फिजी ले जाए गए ये भारतवंशी वहीं बस गए। तबके हजारों की संख्या में गए भारतवंशी अब फिजी देश की जनसंख्या का 38% भाग बन गए हैं। 14 मई को फिजी में ‘गिरमिट स्मरण दिवस’ मनाया जाता है। यही वह दिवस है जब तीन मार्च 1879 को कोलकाता से ‘लेवनीडास’ नामक जहाज से भारतीय गिरमिटिया मजदूर प्रथम बार फिजी पहुंचे थे। इसके बाद सतत 37 वर्षो तक 42 जहाजों के माध्यम से 60 हजार से अधिक भारतीयों को फिजी भेजा गया था। डरा, धमकाकर, हाथ पैर बांधकर, विवश करके जिन भारतीय मजदूरों को अंग्रेजों ने फिजी भेजा था वे मजदूर दो पीढ़ियों तक जबरन निरक्षर रखे गए थे। गिरमिटियों ने वाचिक परंपरा के माध्यम से अर्थात मात्र बोल सुनकर ही अपनी भाषा, बोली, नृत्य, गीत, भक्ति गीत, परंपरा, पहनावा, त्यौहार, पूजा पद्धति, आदि को जीवित रखा था। भारत की संस्कृति से फिजी को समृद्ध करने वाले गिरमिटियों ने अपमान और यातना को भूलकर फिजी के स्वाधीनता संग्राम में भाग लिया था। भारतीय मूल के हजारों वीरों द्वारा किये गए संघर्ष के बाद अंततः 10 अक्टूबर 1970 को विजयादशमी के दिन फिजी स्वतंत्र हुआ था।

12 वें विश्व हिंदी सम्मेलन का ध्येय वाक्य “हिंदी -पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम मेघा तक” है। अब इस ध्येय वाक्य पर आगामी तीन वर्षों तक हिंदी का विकास मार्ग निर्धारित किया गया है। हिंदी में सतत श्रेष्ठ, शास्त्रीय, लोकप्रिय, जनसुलभ व अकादमिक साहित्य का सृजन तो होता ही रहे साथ ही हिंदी का वैज्ञानिकीकरण भी तीव्र गति से होना चाहिए। हिंदी को ज्ञान प्राप्ति के साथ साथ वैश्विक भाषा का रूप देने के लक्ष्य पर यह समूचा सम्मेलन केंद्रित था। हिंदी लोगों की आजीविका का माध्यम बने यह भी लक्ष्य है। सम्मेलन के अंतस में यह है कि हिंदी वैश्विक व्यापार, व्यवसाय की भाषा बनना चाहिए। फिजी के विश्व हिंदी सम्मेलन के मुखड़े पर ही यह घोषणा झलक रही थी कि आगामी वर्षों में हिंदी विश्व के वाणिज्यिक संस्थानों में स्वीकार की जाने योग्य भाषा बन सके। हिंदी भाषी व्यक्ति स्वरोजगार के, कामकाज के, नौकरियों के अवसर किस प्रकार अधिकाधिक प्राप्त कर सके यह विमर्श सम्मेलन की मुख्य धारा में बना रहा। हिंदी का वैज्ञानिकीकरण अधिकतम हो, विभिन्न इलेक्ट्रानिक उपकरणों में हिंदी के लेखन, पठन, अनुवाद आदि की सहज उपलब्धता हो इस हेतु भी यह सम्मेलन कृतसंकल्पित है।

“हिंदी – पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम मेघा तक” इस ध्येयवाक्य को समर्पित यह सम्मेलन हिंदी के तरह तरह के प्रशिक्षण एप्प, अनुवाद एप्प, सुनकर लिखने के एप्प, शब्दकोष एप्प आदि आदि सॉफ्टवेयर विकसित करने के लक्ष्य के साथ अब तीन वर्षों तक इसी लीक पर आगे बढ़ता रहेगा। इस तीन दिवसीय सम्मेलन में हुए दस सत्रों में समूचे विषय आगामी समय में हिंदी के चहुंमुखी विकास की एक नूतन गाथा लिखेंगे।

इस सम्मेलन की अगुवाई कर रहे भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर जी, विदेश राज्यमंत्री वी मुरलीधरन जी, केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री अरुण मिश्र जी पुरे तीन दिन सम्मेलन में उपस्थित रहकर इस आयोजन को सफल बनाने हेतु कृतसंकल्पित दिखे। विदेश मंत्री ने फिजी के राष्ट्रपति विलियम कैटोनिवरे का जिक्र करते हुए बताया कि किस तरह से उनपर हिंदी फिल्मों का असर पड़ा। जयशंकर ने कहा, ‘फिजी के राष्ट्रपति कैटोनिवरे ने बताया कि हिंदी फिल्मों ने उनपर गहरा प्रभाव छोड़ा है। उनकी पसंदीदा फिल्म शोले है।’ एस. जयशंकर ने आगे कहा, ‘फिजी के राष्ट्रपति हमेशा इस गाने को याद रखते हैं कि ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे…।” इस भाव का ही परिणाम रहा की फिजी सरकार ने यह घोषणा की कि वहां पर हिंदी के साथ तमिल और अन्य भारतीय भाषाओं में शिक्षा प्रारंभ की जाएगी। इस अवसर पर फिजी की राजधानी सुआ में सरदार पटेल की मूर्ति का अनावरण भी किया गया। इस अवसर पर फिजी के उप प्रधानमंत्री बिमान प्रसाद ने भावपूर्ण होकर कहा कि आज जब मैं अपने पूर्वजों के विषय में सोचता हूँ तो ख्याल आता है कि वे अपने साथ रामायण, गीता तो नहीं लाए थे, लेकिन अपने साथ वह अपनी संस्कृति अवश्य लाए थे। बिमान प्रसाद ने फिजी की सरकार के हिंदी सम्बंधित संकल्पों को प्रकट किया।

वर्ष 1975 से नागपुर से प्रारंभ हुई विश्व हिंदी सम्मेलन की यह समृद्ध परंपरा प्रत्येक तीन वर्षों में आयोजित होते चले आ रही है। विशेष बात यह है कि अब तक के सभी ग्यारह विश्व हिंदी सम्मेलनों में फिजी के हिंदी विद्वानों की भूमिका सदैव ही जीवंत, उल्लेखनीय व स्मरणीय रही है। द्वितीय हिंदी सम्मेलन मॉरिशस में आयोजित हुआ। तीसरा हिंदी सम्मेलन नई दिल्ली में व चौथा पुनः मॉरिशस में आयिजित हुआ। पांचवा विश्व हिंदी सम्मलेन त्रिनिदाद एवं टोबेगो की राजधानी पोर्ट ऑफ स्पेन में व इसके बाद क्रमशः लंदन, न्यूयार्क, जोहान्सबर्ग, भोपाल, मॉरिशस व इसके बाद बारहवां विश्व हिंदी सम्मेलन फिजी के एक प्रमुख नगर नादी में संपन्न हुआ। भारतभूमि से अट्ठारह हजार किमी दूर फिजी देश की राजभाषा हिंदी होने का विचार हमें हमारी हिंदी के प्रति जहां श्रद्धावनत बना दे रहा है वहीं गौरान्वित भी कर देता है। निश्चित ही फिजी में हुआ हिंदी का यह अनुष्ठान हिंदी को उसकी वैश्विक पहचान स्थापित करने में मील का पत्थर सिद्ध होगा।

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