तुर्किये में भूकम्प और भारत की मानवीय सहायता

तुर्किये और सीरिया में आए भीषण भूकम्प ने वहां के जन-जीवन को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया है। भारत अपने वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना के तहत वहां बड़े पैमाने पर राहत कार्य कर रहा है, लेकिन तुर्किये की वर्तमान सियासत में कश्मीर मुद्दे को लेकर नकारात्मक द़ृष्टिकोण है। भारत की इस पहल के पश्चात् सम्भवतः वहां के राजनेताओं का रुख बदले।

तुर्किये और सीरिया में सोमवार 6 फरवरी को दो बार आया भूकम्प अपने पीछे विनाश छोड़ गया है। हजारों लोगों की जान गई है और असंख्य इमारतें ध्वस्त हो गई हैं। दर्जनों कस्बे और शहर पूरी तरह वीरान हो गए हैं। इस भूकम्प से हुई तबाही जहां मीडिया की सुर्खी बनी है, वहीं भारत द्वारा तुरंत और बड़े स्तर प्रदान की गई मानवीय सहायता ने दुनिया का ध्यान खींचा है और तुर्किये के नागरिकों ने भारत की प्रशंसा की है। इस विनाशकारी भूकम्प के बाद सबसे पहले सहायता के लिए जो देश खड़े हुए हैं, उनमें भारत भी एक है।

तुर्किये के साथ रिश्तों को देखते हुए कुछ लोगों ने इस सहायता पर सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि अतीत में हुई लड़ाइयों में तुर्किये ने पाकिस्तान का साथ दिया और वह संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के मसले को उठाता रहता है। वह हमारा दोस्त नहीं है, फिर इतनी हमदर्दी क्यों? यह तर्क अपनी जगह वजनदार है, पर भारतीय संस्कृति और परम्पराओं को देखते समय कहा जा सकता है कि मानवीय-सहायता के समय दोस्त-दुश्मन नहीं देखे जाते। मान्यताएं और परम्पराएं ऐसी सहायता के लिए हमें प्रेरित करती हैं। राज-व्यवस्था से हमारी सहमति हो न हो, जनता से हमदर्दी है। भारत इस समय जी-20 का अध्यक्ष है। इस लिहाज से भी हम अपनी भूमिका निभा रहे हैं।

भयावह विनाश-लीला

सोमवार तड़के तुर्किये के गाजियांटेप के पास आए 7.8 तीव्रता के विनाशकारी भूकम्प के बाद दोपहर में 7.5 तीव्रता का एक और भूकम्प आया। इसके बाद जान बचाने में लगे लोगों को उस समय दहशत ने फिर घेर लिया जब शाम को 24 घंटे के अंदर तीसरा भूकम्प आया। भूकम्प के मामूली झटके उसके बाद भी दो-तीन दिन तक आते रहे। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक दोनों देशों में मरने वालों की संख्या 40 हजार के पार पहुंच चुकी है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक यह संख्या इससे कहीं ज्यादा होगी, क्योंकि बचाव कार्य अभी चल ही रहा है। बचाव के दौरान कई ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं, जो चमत्कार से कम नहीं है।

भूकम्प के एक हफ्ते से ज्यादा समय बाद भी लोग मलबे से निकाले जा रहे हैं। दोनों देशों में हुए नुकसान का पूरा अनुमान अभी लगाना मुश्किल है। इसके बाद बेघरबार हुए तमाम लोगों के पुनर्वास से जुड़े सवाल खड़े होंगे। जहां से भी मलबा हटाया जा रहा है, वहीं लाशों के ढेर निकलते हैं। हजारों लोगों का अस्पतालों में इलाज जारी है। बर्फबारी के कारण लोगों को परेशानियों को सामना करना पड़ रहा है।

भारतीय सहायता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है, भारतीय जनता की संवेदनाएं भूकम्प पीड़ितों के साथ हैं। ‘ऑपरेशन दोस्त’ के तहत भारत लगातार मदद पहुंचा रहा है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सातवां विमान सहायता सामग्री लेकर तुर्किये (तुर्की ने जून 2022 में अपना नाम बदलकर तुर्किये कर लिया) पहुंच चुका है। भारतीय सेना ने बड़ी तेजी से वहां अस्पताल भी तैयार कर लिए हैं, जिनमें घायलों का इलाज चल रहा है। भारतीय एनडीआरएफ की टीमें तुर्किये में राहत एवं बचाव कार्यों में लगी हैं। स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने ट्वीट किया कि भारत ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अपनी अवधारणा और परम्परा के अनुरूप दोनों देशों को सहायता प्रदान कर रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जीवन रक्षक आपातकालीन दवाएं, सुरक्षात्मक वस्तुएं, चिकित्सा उपकरण, महत्वपूर्ण देखभाल दवाएं आदि प्रदान की हैं। तुर्किये में अंताक्या और गाजियांटेप शहर बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। सीरिया में अलेप्पो और इदलीब शहरों में तबाही मची है। तेज हवाओं और बर्फबारी की वजह से राहत-कार्यों में बाधा पड़ रही है। इन शहरों के आसपास तम्बुओं में तमाम शरणार्थी शिविर बनाए गए हैं। राहत-कर्मी भी तम्बुओं में रह रहे हैं।

आपदाओं के मौके पर भारत हमेशा सबसे पहले राहत-कार्यों के लिए आगे आता है। 2004 में जब दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में सुनामी के कारण 12 देश प्रभावित हुए थे और तीन लाख से ज्यादा मौतें हुई थीं। तब भारत ने सबसे बड़ा राहत-अभियान चलाया था। हालांकि उस आपदा में तमिलनाडु और अंडमान-निकोबार में सबसे ज्यादा विनाशलीला हुई थी, फिर भी भारत ने इंडोनेशिया, श्रीलंका और मालदीव तक जाकर सहायता की थी। उस आपदा में भारतीय नौसेना के 32 पोत, सात विमान और 20 हेलिकॉप्टर लगे थे। इसके बाद 2005 में पाकिस्तान में आए भूकंप के मौके पर सहायता सामग्री लेकर भारतीय विमान पाकिस्तान गए थे। 2008 में म्यांमार में तूफान नर्गिस में एक लाख 40 हजार लोगों की मौत हुई थी। तब भारत ने ऑपरेशन सहायता-2 चलाया था। 2011 में जापान के फुकुशिमा भूकम्प और सुनामी के समय भी भारतीय टीम सहायता के लिए गई थी। 2015 में नेपाल में आए भूकम्प के समय भारत की 16 टीमों ने राहत-कार्यों में भाग लिया। उसमें हेलिकॉप्टरों, विमानों के साथ करीब 700 राहत-कर्मी शामिल हुए थे। 2016 में बांग्लादेश में मोरा तूफान, मोजाम्बिक में इदाई तूफान के बाद भारतीय सहायता टीमें पहुंचीं। 2016 और 2021 में भारतीय टीमों ने फिजी में जाकर सहायता-कार्य किए।

तुर्किये में यह शुरुआती सहायता है, भविष्य में भी नागरिकों के पुनर्वास के लिए कई तरह की सहायता और सहयोग की जरूरत होगी। इस प्रकरण ने भारत और तुर्किये के रिश्तों को समझने का मौका दिया है। भारत ने तुर्किये की राजनीतिक भूमिका को दरकिनार कर सहायता की है। सच यह है कि भारत के साथ तुर्किये के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं, तो खराब भी नहीं रहते थे, पर वर्तमान राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान की कट्टरपंथी नीतियों के कारण हाल के वर्षों में खलिश बढ़ी है।

भारत की स्वतंत्रता के समय तुर्किये के साथ हमारे रिश्ते अपेक्षाकृत बेहतर थे। अतातुर्क कमाल पाशा का तुर्किये ऐसा मुस्लिम देश था, जो धर्मनिरपेक्ष भी था। दूसरी तरफ 1952 में वह नेटो का सदस्य बन गया, जबकि भारत ने गुट-निरपेक्षता का रास्ता पकड़ा। शीतयुद्ध के दौर में भारत और तुर्किये की दूरी बढ़ती चली गई। इस दौरान तुर्किये और पाकिस्तान दोस्त बनते चले गए। 1965 और 1971 की लड़ाइयों में तुर्किये ने पाकिस्तान की मदद की।

एर्दोगान के पहले तुर्किये का नेतृत्व इस कदर भारत-विरोधी नहीं था। 1974 से 2002 तक चार बार प्रधानमंत्री बने मुस्तफा बुलंट येविट (या एक्याविट) भारत का आदर करते थे। उन्होंने  श्रीमद्भगवद्गीता और गीतांजलि का अपनी भाषा में अनुवाद भी किया था। पर 2002 में एर्दोगान की जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी इस्लाम के नाम पर सत्ता में आई। उसके बाद से तुर्किये के दृष्टिकोण में काफी बदलाव आया है।

पाकिस्तान की भूमिका

भारत और तुर्किये के रिश्तों में कड़वाहट के पीछे पाकिस्तान की भूमिका है। पाकिस्तान पहले अरब देशों की मदद से भारत पर दबाव बनाने के प्रयास करता था, पर जब भारत ने अरब देशों के साथ अपने रिश्तों को सुधारा तो पाकिस्तान ने तुर्किये के साथ मिलकर मुस्लिम देशों का एक और समूह बनाने का प्रयास किया। पिछले तीन साल में तुर्किये ने सउदी अरब और यूएई के वर्चस्व को कमतर करने के प्रयास में कतर, पाकिस्तान, ईरान और मलेशिया के साथ मिलकर इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के समांतर व्यवस्था बनाने की कोशिश भी की।

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