हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
परिवार एक सामाजिक शरीर है

परिवार एक सामाजिक शरीर है

by हिंदी विवेक
in अध्यात्म, विशेष, संस्कृति, सामाजिक
1

परिवार भी एक प्रकार का सामाजिक शरीर ही है। मनुष्य अपनी देह तक सीमित नहीं रहता वरन् उसे अपनी स्त्री-बच्चे, भाई-बहन, माता-पिता आदि को मिलाकर एक कुटुंब बनाना पड़ता है । एक घर में एक साथ रहने वाला कुटुंब भी एक शरीर ही होता है। जिस प्रकार अपनी देह के पालन-पोषण की, सुख-दु:ख की चिंता करनी पड़ती है, वैसे ही परिवार के प्रत्येक सदस्य के बारे में हमें सोचना समझना और विचार करना पड़ता है उनका उत्तरदायित्व सर पर लेना पड़ता है। आर्थिक दृष्टि से अपनी देह की ही भाँति उन सब का भरण पोषण करना, स्वस्थ एवं प्रसन्न रखना, प्रगतिशील बनाना आवश्यक होता है । घर के लोगों का सुखी या दु:खी होना, अच्छा या बुरा होना उतना ही भला या बुरा लगता है जितना कि अपने शरीर के किसी अंग का पीड़ित या अप्रसन्नरहना।

हर कोई चाहता है कि उनका परिवार उसकी इच्छा अनुकूल अच्छे स्वभाव का, अच्छे गुण चरित्र का हो । पड़ोस का कोई परिवार दु:खी, अस्त-व्यस्त या क्लेश कलह में डूबा हुआ हो तो लोग उसका उपकार करते हुए मजा ले सकते हैं । पर अपने परिवार का एक भी सदस्य यदि बुरे स्वभाव का दिखाई देता है या न करने योग्य काम करता है तो उसका सीधा प्रभाव अपनी आर्थिक स्थिति पर, प्रतिष्ठा पर, संगठन पर एवं व्यवस्था पर पड़ता है। इस गड़बड़ी से अपने को वैसा ही कष्ट होता है जैसा शरीर के किसी अंग के ठीक तरह से काम न करने पर होता है । इसलिए हर किसी की आकांक्षा यह रहती है कि परिवार की भीतरी व्यवस्था क्रिया, प्रेम, सच्चाई, सेवा, सद्गुण, पुरुषार्थ, मितव्ययिता के आधार पर चले ।

घर का कोई सदस्य बाहर वालों को धोखा देकर कमाई कर लावे, चोरी चालाकी करें, रिश्वत लेवे, झूठ बोले, ठगे तो इसे प्रसन्नता पूर्वक सहन कर लिया जाता है , पर घर के भीतर परिवार के सदस्य एक दूसरे के प्रति ऐसा ही व्यवहार करने लगे तो अव्यवस्था क्लेश का वातावरण उत्पन्न हो जाता है । यह कोई नहीं चाहता कि मेरी स्त्री व्यभिचारिणी बने, मेरा पुत्र घर से चोरी करके ले जाया करे, बच्चे आपस में लड़ा करें, एक भाई दूसरे भाई से सहानुभूति न रखें । कारण स्पष्ट है कि मानव स्वभाव के दुर्गुण निश्चित रूप से कष्टकारक प्रतिक्रिया उत्पन्न करते हैं।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: indian familysocial heritage

हिंदी विवेक

Next Post
भारत का कोहिनूर बना ब्रिटेन के ‘विजय का प्रतीक’

भारत का कोहिनूर बना ब्रिटेन के 'विजय का प्रतीक'

Comments 1

  1. Anonymous says:
    2 years ago

    👍

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0