पूर्वांचल के कुटीर उद्योग

पूर्वांचल उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में स्थित है। इस भौगोलिक क्षेत्र के विधान सभा में कुल ११७ विधायक हैं। पूर्वांचल में कुल २८ जिले, २३ लोकसभा एवं ११७ विधान सभा सीटें  सम्मिलित हैं। यह भारतीय-गंगा मैदान पर स्थित है। पूर्वांचल के आसपास के जिलों की तुलना में मिट्टी की समृद्ध गुणवत्ता और उच्च केंचुआ घनत्व के कारण कृषि के लिए अनुकूल है।

कुटीर उद्योग से तात्पर्य उन उद्योगों से है जिनमें उत्पाद एवं सेवाओं का सृजन अपने घर में ही किया जाता है। कुटीर उद्योगों में कुशल कारीगरों द्वारा कम पूंजी एवं अधिक कुशलता के साथ अपने घरों में ही वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। भारत में प्राचीन काल से ही कुटीर उद्योगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अंग्रेजों के भारत आगमन के पश्चात् देश में कुटीर उद्योग तेजी से नष्ट हुआ और परम्परागत कारीगरों ने अन्य व्यवसाय अपना लिया, किन्तु

 स्वदेशी आंदोलन

के प्रभाव से पुन: कुटीर उद्योगों को बल मिला। वर्तमान में इनमें कुशलता एवं परिश्रम के अतिरिक्त छोटे पैमाने पर मशीनों का भी उपयोग किया जाने लगा है।

पूर्वांचल के प्रमुख जिलों में जैसे- वाराणसी, चन्दौली, मीरजापुर, सन्त रविदास नगर, भदोही, सोनभद्र, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, कौशाम्बी, जौनपुर, गाजीपुर, आजमगढ़, बलिया, मऊ, देवरिया, कुशीनगर, गोरखपुर, महाराजगंज, संत कबीर नगर, बस्ती आदि में विभिन्न प्रकार के कुटीर उद्योगों में प्रमुख रूप से अनेक प्रकार की चटनियां, आंवले का मुरब्बा, आम, नींबू, मिर्च, अदरक, लहसुन आदि के अचार बनाना, पुदीना और बेल का जूस, अरहर का पैकेट दाल भरना, धान से चावल बनाना, गेहूं एवं अन्य अनाजों की पिसाई, गुड़, शक्कर तथा दुग्धशालाओं का संचालन, मधुमक्खी पालन, रुई धुनना, सूत की कताई, कपड़े की बुनाई, रेशम के कीड़े पालना, दरियां-गलीचे बनाना, कपड़ों की छपाई तथा कढ़ाई करना, काष्ठ से सम्बन्धित कुटीर उद्योग जैसे- लकड़ी चीरना, फर्र्नीचर बनाना, खिलौने एवं कलात्मक वस्तुएं बनाना, उनकी रंगाई करना तथा छोटे-छोटे औजारों का निर्माण करना। धातु से सम्बन्धित कुटीर उद्योग जैसे- कच्ची धातु को पिघलाकर एवं अन्य विधियों से शुद्ध धातु प्राप्त करना, चाकू-छुरियां, कैंची, पीतल-फूल के

बर्तन बनाना आदि। मिट्टी

 सम्बन्धित कुटीर उद्योग जैसे

कुम्हारगीरी, ईंट, खपरैल का निर्माण करना, मिट्टी के बर्तन बनना आदि। अन्य कुटरी उद्योग जैसे- साबुन, रंग एवं वार्निश बनाना, हस्तनिर्मित कागज बनाना, पत्तल बनाना, दियासलाई बनाना, हथकरघा कुटीर उद्योग, मधुमक्खी पालन, गुड़, खाद्य तेल, डबल रोटी, भुने चने, कत्था निर्माण, गोंद, दियासलाई, बांस एवं बेत के विभिन्न कार्यों में हस्तकला का उपयोग, कागज से प्यालों, तश्तरियों, गिलासों, ठोगों, थैलों, डिब्बों आदि का निर्माण, कापियों की जिल्दसाजी, लिफाफा निर्माण, दलिया, आटाचक्की, चावल छिलका, ताड, जड़ी-बूटी संग्रह, पत्ता दोना, दुग्ध उत्पाद, पशु के लिए चारा, मोमबत्ती, कपूर, प्लास्टिक की पैकेजिंग, मेहंदी का निर्माण, केश तेल, लोहारी से सम्बन्धित सामान, फावड़ा, कुदाल, गटारी, लकड़ी पर नक्काशी, खिलौना-गुड़िया, धागा गोला, वस्त्रों की धुलाई, बाल काटना, इलेक्ट्रॉनिक के घरेलू उपकरण की मरम्मत, डीजल इंजनों पम्पिंग सेटों आदि की मरम्मत, फलक की चित्रकारी, साइकिल मरम्मत हेतु दुकान, बैंड मण्डली तथा खांडसारी कुटीर उद्योग आदि शामिल हैं।

वाराणसी की रेशमी साड़ियां विश्वविख्यात हैं। लकड़ी का फर्नीचर, हाथ का बुना कपड़ा और खिलौना बनाने का उद्योग वाराणसी में केन्द्रित है। इसके अलावा रामनगर की लस्सी, कचौड़ी, जलेबी और लवंगलता के लिए भी जाना जाता है। इसके साथ ही यहां का कलाकंद भी मशहूर है। बनारसी पान का क्या कहने, वह तो विश्वप्रसिद्ध है। बनारसी रेशम विश्व भर में अपनी महीनता एवं मुलायमपन के लिए प्रसिद्ध है। बनारसी रेशमी साड़ियों पर बारीक डिजाइन और जरी का काम चार चांद लगाते हैं और साड़ी की शोभा बढ़ाते हैं। इस कारण ही ये साड़ियां वर्षों से सभी पारंपरिक उत्सवों एवं विवाह आदि समारोहों में पहनी जाती रही हैं। कुछ समय पूर्व तक जरी में शुद्ध सोने का काम हुआ करता था।

मीरजापुर कालीन उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा पीतल और कलई के बर्तन (पात्र) बनाना, बर्तनों पर नक्काशी का कार्य साथ ही कालीन व दरियां बनाने का कार्य भी मीरजापुर में होता है। कालीन नगरी के नाम से मशहूर भदोही में कभी लाखों लोगों का पेट भरने वाला कालीन व्यापार आज आखिरी सांसें गिन रहा है।

गुलाबजल, गुलाब इत्र व सुगन्धित तेल गाजीपुर, जौनपुर और इलाहाबाद में बनाया जाता है। इलाहाबाद में ब्रुश बनाने का कार्य भी होता है। हाथ का बुना कपड़ा मऊ आदि में बनाया जाता है। हथकरघा सूतीवस्त्र के प्रमुख केन्द्र संत कबीर नगर का मगहर क्षेत्र रहा है। सिद्धार्थनगर की रामकटोरी मिठाई प्रसिद्ध है। जौनपुर की इमरती मिष्टान्न में महत्वपूर्ण है। आजमगढ़ व देवरिया का खाण्डसारी कुटीर उद्योग; बलिया का पटसन, बाटी-चोखा आदि प्रसिद्ध है। गोरखपुर हाथ से बुने कपडों के लिए प्रसिद्ध है। यहां का टेराकोटा उद्योग अपने उत्पादों के लिए जाना जाता है। अधिक से अधिक व्यावसायिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए सभी राष्ट्रीयकृत बैंकों की शाखाएं भी हैं। कुशीनगर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला एवं एक छोटा सा कस्बा है। इस जनपद का मुख्यालय कुशीनगर से १५ किमी दूर पडरौना में स्थित है। महात्मा बुद्ध का निर्वाण यहीं हुआ था। यहां अनेक सुन्दर बौद्ध मन्दिर है। इस कारण से यह एक अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल भी है, जहां ंमुख्यत: विश्व भर के बौद्ध तीर्थयात्री भ्रमण के लिए आते हैं। तीर्थस्थल होने के कारण कुटीर उद्योग का कारोबार अच्छा चलता है।

देवरिया, कुशीनगर, बस्ती, महाराजगंज सभी जिलों में गन्ने की खेती कम हो चुकी है। आजमगढ़ जिले के पश्चिमी छोर पर बसा नगर पंचायत निजामाबाद में मिट्टी के काले बर्तन बनाने का कुटीर उद्योग भी दम तोड़ चुका है। मऊ उत्तर प्रदेश के मऊ जिला का मुख्यालय है। इसका पूर्व नाम मऊनाथ भंजन था। अवन्तिकापुरी, गोविन्द साहिब, दत्तात्रेय, दोहरी घाट, दुर्वासा, मेहनगर, मुबारकपुर, महाराजगंज, निजामाबाद और आजमगढ़ मऊ के प्रमुख स्थलों में से एक है। सामान्यत: यह माना जाता है कि मऊ शब्द तुर्किश शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ गढ़, पांडव और छावनी होता है। भारत-नेपाल सीमा के समीप स्थित महाराजगंज पूर्वांचल का एक जिला है। इसका जिला मुख्यालय महाराजगंज शहर स्थित है। सिद्धार्थ नगर व संत कबीर नगर जिला बस्ती मंडल का एक हिस्सा है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण स्थल है। सोनभद्र पूर्वांचल का एक प्रमुख जिला है जिसका मुख्यालय राबट्र्सगंज है। पहाड़ियों में चूना पत्थर तथा कोयला मिलने के साथ तथा क्षेत्र में पानी की बहुतायत होने के कारण यह औद्योगिक स्वर्ग बन गया। यहां पर देश की सबसे बड़ी सीमेन्ट फैक्ट्रियां, बिजली घर (थर्मल तथा हाइड्रो), एलुमिनियम एवं रासायनिक इकाइयां स्थित हैं। साथ ही कई सारी सहायक इकाइयां एवं असंगठित उत्पादन केन्द्र, विशेष रूप से स्टोन क्रशर इकाइयां भी स्थापित हुई हैं। जंगल होने के कारण पत्तल का भी कारोबार होता है। पत्थर के खिलौने बनाए जाते हैं। अचार के लिए भी जाना जाता है। डाला, पिपरी, रेनूकोट, ओबरा, चोपन, शक्तिनगर, रिहंदनगर के इलाकों में नए इंडस्ट्रियल क्लस्टर बनाने की जरूरत है।

कुटीर उद्योगों के विकास में शैक्षणिक संस्थानों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। जिस पक्ष में दृष्टिपात करने पर पूर्वांचल के प्रमुख विश्वविद्यालयों में प्रमुख रूप से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, केन्द्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय, सारनाथ, वाराणसी; वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर; दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी; महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी आदि भी अपने कुटीर उद्योगों के देन में भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। इसी कड़ी में पूर्वांचल के सभी तीर्थस्थल जैसे काशी का सुप्रसिद्ध बाबा विश्वनाथ मन्दिर, सारनाथ बौद्ध स्तूप, गुरु गोरखनाथ धाम, विंध्याचल में मां विंध्यवासिनी का मन्दिर, महान संत कबीर जन्मस्थली आदि तीर्थस्थलों को यातायात, रेलमार्ग, मैट्रो रेल तथा वायुमार्ग आदि से जोड़कर विश्व पटल पर विशिष्ट स्थलों के रूप में स्थापित किया जा सकता है। मां गंगा, यमुना, सरयू, राप्ति जैसी पावन व जनोपयोगी नदियों को स्वच्छ करके अविरल प्रवाह के लिए प्रयास किए जा सकते हैं। इससे कुटीर उद्योग को भी बल मिलेगा।

पूर्वांचल में अनेक सुविधाएं उपलब्ध हैं, जैसे-गन्ना, जूट, तिलहन, जंगलों में राल, बांस, इमारती लकड़ी, जड़ी-बूटियां आदि की बहुतायत है। इस क्षेत्र के संसाधनों पर आधारित कुटीर उद्योगों की स्थापना की जरूरत है। प्रतापगढ़ क्षेत्र मसालों की खेती के लिए प्रसिद्ध है। प्रचुर मात्रा में मकरंद होती है, जो मधुमक्खी पालन में सहायक बन सकती है। पूर्वांचल के बुनकर अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं। कालीन व साड़ी बुनकरों तथा कारोबारियों को उबारने के लिए अनेक प्रयासों की जरूरत है। इस जरूरत को ध्यान में रखते हुए २०१४ में आगत केन्द्र सरकार के द्वारा शिल्प म्यूजियम के लिए सारनाथ व राजातालाब में जमीन खोजी गई। इसमें बुनकरों के कल्याण व हथकरघा क्षेत्र प्रोत्साहन के लिए व्यापार सुविधा केन्द्र व हैंडी क्राफ्ट म्यूजियम निर्माण के लिए ५० करोड़ रुपये का प्रस्ताव है। इससे न सिर्फ गरीब बुनकर मजदूरों का पलायन रुकेगा, बल्कि वाराणसी व संत रविदास नगर समेत पूर्वांचल के सभी जिलों में मेगा क्लस्टर की स्थापना से वस्त्र उद्योग को अवश्य बढ़ावा मिलेगा। व्यापार सुविधाकरण केन्द्र व शिल्प संग्रहालय की स्थापना अंगूलियों की जादू लगाने वाले इलाकों के बुनकरों के लिए अब तक के सरकारों से वर्तमान केन्द्र सरकार की बड़ी देन है। ट्रेड सेंटर में बुनकरों का माल बिचौलियों के बजाए सीधे उत्पादकों से खरीदने की योजना है। इसके अलावा बनारस का लकड़ी खिलौना उद्योग जो प्राय: बनारस के नक्शे से गायब हो चला है, को एकबार फिर म्यूजियम के रूप में विकसित करने की योजना है। जरी-जरदोजी, पाटरीज व पत्थर के आकर्षक दैनिक उपयोग की वस्तुएं-ड्राइंगरुम के सजावटी सामान, वॉल पेटिंग आदि जो काशी की पहचान रही है वह अब केन्द्र सरकार की पहल से एक जगह नजर आएगी।

कुटीर उद्योग को पूर्वांचल के आत्मा के रूप में जाना जाता है। किन्तु सरकारी तंत्र पर इसके घोर उपेक्षा होने के कारण पूर्वांचल की यह आत्मा शिथिल होने के कगार पर पहुंच गई है, जिससे पूर्वांचल की पहचान कुटीर उद्योग में धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है। यदि पूर्वांचल की पहचान बचाए-बनाए व सुसमृद्ध रखना है तो उन कुटीर उद्योगों को पुर्नजीवित करने की जरूरत है। यह सत्य है कि प्रकृतिवादी वस्तुओं पर बाजारवादी वस्तुएं जब थोपी जाती हैं तो स्वत: प्रकृतिवादी वस्तुएं समाप्ति की ओर चली जाती हैं। ठीक इसी तरह हमारे पूर्वांचल में कुटीर उद्योगों पर बाजारवादी संस्कृति के चलते संकट के बादल मंडरा रहे हैं। जैसा हम अनुभव कर रहे हैं कि हमारी लोक शिल्प कला एवं हस्तशिल्प कला एक-एक करके दम तोड़ती जा रही है। ऐसे में पूर्वांचल के कुटीर उद्योगों को संकट से पुनरूद्धार करने के लिए केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है।

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