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मातृभाषा में हो सम्पूर्ण शिक्षण- करुणाशंकर उपाध्याय

मातृभाषा में हो सम्पूर्ण शिक्षण- करुणाशंकर उपाध्याय

by हिंदी विवेक
in विशेष, शिक्षा, समाचार.., सामाजिक, साहित्य
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अमेरिका की 33 करोड़ की आबादी में से मात्र 25 करोड़ लोग ही लोग ही अंग्रेजी भाषा बोलते हैं। इंग्लैंड में अंग्रेजी के साथ-साथ आयरिश भाषा भी बोली जाती है। इस प्रकार यदि हम सारी भाषाओं का विश्लेषण करें तो पहली, दूसरी और तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी का प्रयोग करने वालों की संख्या विश्व भर में सर्वाधिक है। लेकिन हम लोग यूरोपीय भाषाओं से इतने प्रभावित और आतंकित रहते हैं कि इस मूल तथ्य से लगभग अनजान हैं। अब समय आ गया है कि हम अपनी भारतीय भाषाओं की श्रेष्ठता को समझें और उनके प्रयोग को लेकर शर्मिंदा ना हों, क्योंकि 2047 तक भारत 25 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था के साथ विश्व का नंबर एक देश होगा और हिंदी अंतरराष्ट्रीय संपर्क की भाषा। उक्त बातें महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित पुस्तक मेले के समापन समारोह में ‘लेखक से मिलिए’ कार्यक्रम के दौरान मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉक्टर करुणाशंकर उपाध्याय ने कहीं।

डॉ उपाध्याय ने आगे कहा कि, जापान और इजरायल के लोग इतनी अधिक संख्या में नोबेल पुरस्कार इसलिए प्राप्त कर रहे हैं क्योंकि उनके यहां बेसिक शिक्षण से लेकर शोध कार्य तक की पढ़ाई अपनी मातृभाषा में हो रही है। यहां पर भी इस दिशा में केंद्र सरकार ने सार्थक पहल शुरू कर दी है। बहुत जल्द ही भारत की जनसंख्या चीन से अधिक हो जाएगी। भारत के लिए सकारात्मक बात यह है कि इस समय अपने यहां 75 करोड़ से अधिक लोग 35 वर्ष से कम उम्र के हैं। जबकि चीन में उतनी ही संख्या वृद्धों की है‌। इसलिए अगले दो दशकों में भारत का श्रमबल बढ़ेगा वहीं चीन का श्रमबल घटेगा। अगले एक दशक में चीन भी जापान की भांति सबसे बूढ़ा देश हो जाएगा। आज यह स्थिति हो चुकी है कि जापान में सेना की भर्ती के लिए युवक नहीं मिल पा रहे हैं, वहीं चीन ने सेना में भर्ती की अधिकतम आयु 26 वर्ष कर दी है। अगर हम इसे भारत के परिपेक्ष्य में देखें तो यहां पर अग्निवीर योजना के लोग 25 वर्ष की उम्र में रिटायर हो जाएंगे। यानी यदि हम वर्तमान परिदृश्य को का सूक्ष्मता से अध्ययन करें तो आने वाला समय पूरी तरह से भारत का होगा।

अकादमी की ओर से बांद्रा पश्चिम स्थित बांद्रा हिंदू एसोसिएशन हॉल में तीन दिवसीय पुस्तक मेले का आयोजन किया गया था जिसमें हिंदी के तमाम बड़े प्रकाशकों एवं पाठकों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। मेले में प्रतिदिन ‘लेखक से मिलिए’ कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें शहर के सुधी पाठकगणों ने अपने प्रिय लिखकों से साहित्य और मीमांसा पर आधारित प्रश्न पूछे। इसके तहत पहले दिन प्रख्यात लेखिका चित्रा मुद्गल और और वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखिका प्रीति सोमपुरा अपने पाठकों से जुड़ी और मंच संचालन की जिम्मेदारी प्रकाश काथे और डॉ. राजेश उनियाल ने उठाई। वहीं दूसरे दिन पत्रकार और लेखक विवेक अग्रवाल और रेखा शर्मा ने पाठकों के सम्मुख अपनी रचना प्रक्रिया पर प्रकाश डाला। उस दिन मंच संचालन का दायित्व कमला बाडोनी और प्रमिला शर्मा ने संभाला। इसी कड़ी में समापन समारोह में प्रख्यात आलोचक डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय ने अपनी रचनाओं और वर्तमान वैश्विक परिदृश्य पर अपनी बात रखी।

डॉ. दिनेश कुमार पाठक और डॉ. दृगेश यादव के साथ हुई इस संयुक्त वार्ता में डॉ उपाध्याय ने पिछले 31 सालों में महान रचनाकार जयशंकर प्रसाद की रचनाओं के विशद विवेचन और आलोचनात्मक अध्ययन की ग्रंथाकार आवृत्ति पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि 90 के दशक के दौरान तमाम बड़े रचनाकारों का अध्ययन करते समय उन्हें ज्ञात हुआ कि जिन रचनाकारों ने भारत की संस्कृति और भारतीय मूल्य को व्यवस्थित रूप में समाज के समक्ष प्रस्तुत किया, आगे चलकर साम्यवादी आलोचकों ने उन सभी रचनाकारों को दरकिनार कर दिया। इनमें सबसे बड़ा और प्रमुख नाम महाकवि जयशंकर प्रसाद का रहा। इसलिए उन्होंने 31 वर्षों के कठिन शोध के पश्चात वर्तमान और भविष्य के विद्यार्थियों के लिए इस ग्रंथ की रचना की। उन्होंने उन्हें कालिदास और भवभूति की श्रेणी का रचनाकार बताया।

अकादमी के कार्याध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे और उपाध्यक्ष अमरजीत मिश्र के समनवयन में आयोजित तीन दिवसीय पुस्तक मेले के इस समापन समारोह में अकादमी के सदस्य अमोल पेडणेकर और संतोष सिंह, मार्कंडेय त्रिपाठी, अमर त्रिपाठी, धर्मेन्द्र पाण्डेय, मंजू उपाध्याय, निलेश धोरे, बृजेश शुक्ल, डॉ. सचिन गपाट, डॉ, अंशु शुक्ला, डॉ. आर. पी. यादव, डॉ. अमर यादव सहित विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य जन उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन आनंद सिंह ने किया।

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Tags: education in mothertonguekarunashankar upadhyaymaharashtra rajya hindi sahitya academy

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