राहुल और कांग्रेस अपने व्यवहार पर पुनर्विचार करें

यह कहना मुश्किल है कि राहुल गांधी और उनके रणनीतिकारों को सूरत के सत्र न्यायालय से इस तरह का फैसला आने की उम्मीद थी या नहीं. उनके पक्ष में बड़े-बड़े वकीलों ने बहस की थी । ऐसे अधिवक्ता कम ही होंगे जो अपने मुवक्किल,साथी मित्र, नेता को बताएं कि आपको सजा हो होने वाली है या हो सकती है। सूरत सत्र न्यायालय द्वारा मानहानि मामले में 2 वर्ष की सजा सुनाना सामान्य घटना नहीं है। भारत की राजनीति में इस तरह के उदाहरण ढूंढने पड़ेंगे। शायद इसके पहले मानहानि मामले में इतनी बड़ी सजा राजनीति में इतने शीर्ष स्तर के व्यक्ति को को नहीं हुई ।

भारतीय दंड संहिता की धारा 504 के तहत 2 वर्ष अधिकतम सजा है। न्यायालय ने अगर राहुल गांधी को अधिकतम सजा का दोषी माना है तो उसकी दृष्टि में उनका अपराध निस्संदेह गंभीर है। न्यायालय ने राहुल गांधी को आपस में समझौता करने से लेकर क्षमा मांगने तक का भी सुझाव दिया। ऐसे मामलों में न्यायालय की कोशिश रहती है कि फैसला देने की नौबत ना आए। राहुल गांधी और उनके रणनीतिकारों के लिए यह विषय क्षमा मांगने का नहीं बल्कि अपनी लड़ाई पर अड़े रहने का था । मामला उच्च न्यायालय में जाएगा। वास्तव में अंततः उच्च न्यायालय और अगर उच्चतम न्यायालय में मामला गया तो वहां के फैसले पर ही इस मुकदमे का भविष्य निर्भर करेगा।  

इसके साथ न केवल राहुल गांधी और कांग्रेस की संपूर्ण राजनीति का विषय जुड़ा है बल्कि उनकी लोकसभा सदस्यता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है। 10 जुलाई, 2013 को उच्चतम न्यायालय ने 2 वर्ष या उससे अधिक की सजा मिलने पर संसद या राज्य विधायकों की के सदस्यों की सदस्यता रद्द करने का फैसला दिया था। न्यायालय ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 84 के प्रावधान को खत्म कर नए प्रावधान जोड़ दिए थे। पहले मामला उच्च न्यायालय उच्चतम न्यायालय में लंबित होने पर सदस्यता नहीं जाती थी। इस फैसले के बाद कुल 11 नेताओं की सदस्यता सजा मिलने के बाद जा चुकी है। इनमें लालू यादव से लेकर जयललिता, राशिद मसूद आदि शामिल हैं। इस नाते यह राहुल गांधी और उनके रणनीतिकारों के लिए संयम और सधे हुए तरीके से काम करने की आवश्यकता है। यह आवश्यकता पहले भी थी किंतु वर्तमान कांग्रेस में संयम और धैर्य की ही तलाश करनी पड़ती है।

यह दुर्भाग्य है कि असंयत और असंतुलित बयानों को भी राहुल गांधी तथा वर्तमान कांग्रेस के सक्रिय नेता भाजपा, मोदी, आरएसएस से संघर्ष का सैद्धांतिक जामा पहनाते हैं। सजा मिलने के बावजूद यह स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि राहुल गांधी से गलती हुई। राहुल गांधी ने ट्वीट करके कहा है कि मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। सत्य मेरा भगवान है अहिंसा उसे पाने का साधन – महात्मा गांधी। जरा सोचिए, आप यह कहते हैं कि सारे मोदी सरनेम वाले ही चोर क्यों हैं और इसे महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा के साथ जोड़ते हैं। देखिए कि उन्होंने क्या कहा था जिसे न्यायालय ने आपराधिक मानहानि माना है। राहुल गांधी ने 13 अप्रैल ,2019 को कर्नाटक के कोलार की रैली में कहा था कि नीरव मोदी, जिसने भारत में सबसे बड़ी चोरी की थी उसका वही सरनेम है जो हमारे प्रधानमंत्री का है। यह एक दिलचस्प तथ्य है। अभी और भी हैं। क्रिकेट जगत के सबसे भ्रष्ट इंसान का नाम भी हमारे प्रधानमंत्री जैसा ही है। तो दरअसल मोदी का मतलब क्या है मोदी मतलब होता है भारत के सबसे बड़े क्रॉनिक कैपिटलिस्ट और प्रधानमंत्री के बीच का संबंध। क्या सभी चोरों का सरनेम मोदी ही होता है? 

राहुल गांधी इसे महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा का संघर्ष बताएं, दूसरे किसी के गले नहीं उतर सकता। क्या महात्मा गांधी कभी किसी व्यक्ति, जाति, समुदाय या सरनेम वाले के लिए इस तरह की भाषा प्रयोग कर सकते थे? महात्मा गांधी ने तो स्वयं लिखने या बोलने के पहले मन को पूरी तरह शांत और संयत करने की बात कही है ताकि किसी के प्रति पूर्वाग्रह या दुराग्रह के शब्द न निकले। गांधी जी ने हम सबको गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों के लिए भी कटु शब्द का प्रयोग नहीं किया। यह दुर्भाग्य है कि राहुल गांधी इस तरह की गलतियों को जिसे न्यायालय ने अपराध माना महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा से जुड़ा हुआ बताते हैं। इससे पता चलता है कि वर्तमान भारतीय राजनीति किस तरह विचार और व्यवहार पर दिशाभ्रम का शिकार है। कांग्रेस कहरही है कि प्रधानमंत्री और भाजपा के दूसरे नेता भी ऐसे बयान देते रहते हैं लेकिन उन्हें सजा नहीं होती।

राहुल गांधी को सजा तभी मिली जब उनके बयान को न्यायालय में ले जाया गया तथा लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी गई। 4 वर्ष का समय आपराधिक मानहानि मामले के सत्र न्यायालय में निपटारे के लिए कम नहीं होता। वैसे तो न्यायालय का फैसला हमारे संपूर्ण राजनीतिक प्रतिष्ठान के लिए संदेश है। वर्तमान राजनीति में शब्दों की मर्यादायें अब नहीं रहीं। राजनीति सामान्य प्रतिस्पर्धा या वैचारिक मतभेदों की जगह घृणा और दुश्मनी में परिणत हो रही है ।इस कारण नेताओं के मुंह से गुस्से भरे ऐसे शब्द निकलते हैं जो कई बार हम सामान्य व्यवहार में भी प्रयोग नहीं करते। यह बात सही है कि भाजपा, आरएसएस और विशेषकर नरेंद्र मोदी के विरुद्ध सबसे ज्यादा आपत्तिजनक और अस्वीकार्य बयान कांग्रेस की ओर से ही आए हैं। यह अलग बात है कि भाजपा उन सबको न्यायालय में नहीं ले जाती। अगर कांग्रेस को भाजपा नेताओं का बयान मानहानि लगता है तो उन्हें भी न्यायालय जाना चाहिए। बात-बात पर न्यायालय जाने वाले कांग्रेस के नामी गिरामी वकील आखिर ऐसा क्यों नहीं करते? 

कांग्रेस यही साबित करना चाहती है कि राहुल निर्दोष हैं लेकिन जानबूझकर उनको सजा दी जा रही है। कांग्रेस नेताओं के बयान सीधे-सीधे न्यायालय को ही कटघरे में खड़े कर रहे हैं और यह स्पष्ट अवमानना के दायरे में आता है। राफेल मामले पर राहुल गांधी को अपने बयानों के लिए ही उच्चतम न्यायालय से बिना शर्त माफी मांगनी पड़ी थी। उन्होंने कह दिया था कि अब तो सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया कि चौकीदार चोर है। इसके विरुद्ध याचिका न्यायालय में गई और जो स्थिति थी अगर राहुल क्षमा नहीं मानते तो उन्हें सजा मिलती। महात्मा गांधी की हत्या आरएसएस ने की इस गलत बयान के विरुद्ध महाराष्ट्र के भिवंडी में मुकदमा दायर हुआ था।  तब से उनका बयान बदला और वह बोलते हैं कि महात्मा गांधी की हत्या आरएसएस की विचारधारा ने की। जब विडंबना है कि न्यायालय की सजा में भी कांग्रेस न केवल स्वयं को उत्पीड़ित साबित करने की कोशिश कर रही है बल्कि  सैद्धांतिक ताना-बाना दे दिया है। राहुल गांधी कांग्रेस के इस समय सक्रिय सबसे बड़े नेता है। अगर वे इसी तरह के नासमझ  बयानों में अपनी ऊर्जा खत्म करते रहे तो ऐसे और भी फैसले उनके विरुद्ध आएंगे। संभव है उन्हें जेल काटना पड़े और कांग्रेस की राजनीति से ज्यादा न्यायालयों का चक्कर लगाना पड़ेगा। कांग्रेस के रणनीतिकार विचार करें कि क्या अपने नेता को ऐसे ही बयानों में  खत्म करना चाहते हैं? 

इसी विषय पर एक मामला उनका बिहार में भी चल रहा है जिसे राज्य सभा सदस्य प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने दर्ज कराया है। लंदन में उन्होंने भारतीय लोकतंत्र, हमारी संसद, न्यायपालिका, मीडिया आदि पर जो बयान दिये, वह सब कानूनी रूप से स्वयं को फंसाने वाले हैं। गनीमत है कि उन मामलों को अभी तक कोई न्यायालय में नहीं ले गया है। देश में दलीय प्रणाली के स्वस्थ और संतुलित होने की कामना करने वाले चाहेंगे कि राहुल गांधी और कांग्रेस जरा ठंडे मन से अपने पूरे व्यवहार पर पुनर्विचार करें। अगर वह करेंगे तो उन्हें सच दिख जाएगा कि सोच और अपने वाणी व्यवहार में कहां-कहां गलतियां हो रही है। दुर्भाग्यवश,  कांग्रेस इस तरह के सुझाव तक को स्वीकार नहीं कर रही और अपनी गलतियों की जगह पहले भाजपा, संघ और मोदी का नाम लेते लेते अब न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर भी प्रश्न खड़ा कर रही है। राहुल की सजा पर कांग्रेस महासचिव और उनकी बहन प्रियंका गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा कि डरी हुई सत्ता की पूरी मशीनरी साम, दाम, दंड, भेद लगाकर राहुल गांधी जी की आवाज को दबाने की कोशिश कर रही है। मेरे भाई न कभी डरे हैं, न कभी डरेंगे। सच बोलते हुए जिये हैं, सच बोलते रहेंगे। देश के लोगों की आवाज उठाते रहेंगे।सच्चाई की ताकत व करोड़ों देशवासियों का प्यार उनके साथ है। यानी वे इसी तरह बोलते रहेंगे। यह व्यवहार न राहुल के हित में है न कांग्रेस के ,बल्कि एक समय उनके  नष्ट होने का कारण बन सकता है। 

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