तालिबान से लड़ती महिलाएं

अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार महिलाओं पर एक के बाद एक प्रतिबंध थोपती जा रही है। वे अपनी कट्टरपंथी सोच को थोपते हुए उन्हें मानसिक रूप से पंगु बनाते जा रहे हैं। उधर ईरान में महिलाएं हिजाब के विरुद्ध देशव्यापी आंदोलन चला रही हैं, जिसे पूरी दुनिया से समर्थन प्राप्त हो रहा है। सम्पूर्ण विश्व की सरकारों को इस ओर ध्यान देना चाहिए ताकि वहां की महिलाएं भी बाकी हिस्सों की महिलाओं की भांति अपने जीवन मूल्यों के साथ जी सकें।

महिलाएं किसी भी सभ्यता का आधार होती हैं, व्यक्ति निर्माण से सभ्यता निर्माण की यात्रा में महिलाओं की भूमिका अनवरत जारी है। किसी भी राष्ट्र या समाज में मूल्यों का निरंतर प्रवाह महिलाओं की सशक्त तथा सजग भागीदारी से ही सम्भव है, परंतु समाज में फैली कुरूतियों का सबसे अधिक प्रभाव यदि किसी पर पड़ा है तो वह महिलाएं ही हैं। सभी देशों में महिलाओं की स्थिति विचार करने योग्य है। आज 21 वीं सदी के तीसरे दशक में भी महिलाएं अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित हैं, विशेषकर भारत के पड़ोसी देशों अफगानिस्तान तथा ईरान में महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसक एवं भेदभावकारी प्रवृति वैश्विक चिंता का विषय बनती जा रही है।

काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से अफगानिस्तान में महिलाएं और लड़कियां बेहद खराब स्थिति में रह रही हैं। 1996 में पहली बार राजनीतिक रूप से तालिबान का कब्जा अफगानिस्तान पर हुआ परंतु वैचारिक रूप से उपस्थित तालिबान ने पिछले पांच दशकों से अफगानी महिलाओं की स्वतंत्रता तथा सार्वजानिक स्थलों में उनकी सक्रिय भागीदारी को रोका जा रहा है। 2001 में शासन परिवर्तन के बाद स्थितियों में सीमित बदलाव तो हुए परंतु अगस्त 2021 के मध्य में काबुल पर तालिबान के कब्जे और उसके बाद अफगानिस्तान पर तालिबान के शासन में मजबूती से पिछले 20 वर्षों में महिलाओं के द्वारा हासिल की गई स्वतंत्रता अब खत्म होने लगी है। अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद तालिबान के समर्थकों ने इस्लामिक रूप-रेखा की व्याख्या करते हुए महिलाओं के काम करने और शिक्षा हासिल करने के अधिकारों का दमन करने के लिए सत्ता का इस्तेमाल लगातार जारी रखा है।

अफगानिस्तान में तालिबानी कट्टर इस्लामिक समूह अपने पुराने रंग-रूप में लौटा है, उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए हैं जो मानवीय मूल्यों के खिलाफ हैं, इनमें महिलाओं पर कड़े प्रतिबंध लगाने वाले भी कई फैसले शामिल हैं। तालिबान के उच्च शिक्षा प्रमुख ने अफगानिस्तान की लड़कियों के लिए विश्वविद्यालय की शिक्षा पर पाबंदी लगा दी तथा इस पाबंदी के पीछे का कारण यह बताया कि महिलाओं का पुरुषों से मेल-जोल रोकने के लिए उन्हें विश्वविद्यालयों में शिक्षा लेने से प्रतिबंधित किया गया है, इसके अलावा विश्वविद्यालय में लागू ऐसे पाठ्यक्रम जो इस्लामी कानून और अफगान गौरव के विपरीत हैं, इस्लामी मूल्यों का उल्लंघन कर रहे थे।

तालिबानी सरकार का यह भी तर्क था कि छात्रावासों में महिलाओं की मौजूदगी, बिना पुरुष साथियों के प्रांतों से उनका आना-जाना और हिजाब की नाफरमानी को देखते हुए लड़कियों के लिए विश्वविद्यालयों को बंद करने का फैसला लिया गया। इन फैसलों के जरिए महिलाओं की आजादी पर लगातार कुठाराघात किया जा रहा है,

वहां महिलाओं की ना केवल आजादी पर पाबंदी लगी है बल्कि उनके कई मानवाधिकारों को भी छीना गया है। 2021 में तालिबानी सरकार ने पार्कों में महिलाओं के जाने पर प्रतिबंध, स्कूली शिक्षा पर बैन, महिलाओं के सार्वजनिक स्थानों पर अपना चेहरा ढंकने का आदेश, बिना पुरुष साथियों के बाहर निकलने पर प्रतिबंध जैसे फरमानों के जरिए वह अपने धार्मिक मूल्यों की स्थापना का हवाला दे रहे है।

वहीं ईरान में चल रहे हिजाब-विरोधी आंदोलन ने भी ईरान में महिलाओं कि स्थिति को वैश्विक मंच पर उजागर किया है। ईरान में महिलाओं का आंदोलन लम्बे समय तक चला है, 1979 तक ईरान के शाह की आधुनिक नीतियों ने महिलाओं को उन्हें प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों की वकालत करने की खुली छूट दी थी। उनके पास हिजाब पहनने का विकल्प था, 1963 में वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ और आम तौर पर तालिबानी मानदंडों को चुनौती दी गई जिनसे उनकी प्रगति सीमित हो गई थी। तब महिलाएं ईरान में जीवन के सभी क्षेत्रों में सक्रिय थीं। परिवार संरक्षण अधिनियम ने महिलाओं के लिए विवाह की आयु बढ़ा दी, बहुविवाह को कम कर दिया, अस्थायी विवाहों पर प्रतिबंध लगा दिया और इसमें धर्मगुरुओं की भूमिका को कम कर दिया।

साल 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति हुई जिससे ईरान में राजशाही का अंत कर दिया गया और देश में अयातुल्ला खुमैनी के नेतृत्व में एक इस्लामिक शासन स्थापित किया गया। 1980 तथा उसके बाद के वर्षों में हुए Cultural Revolution का प्रभाव सिर्फ ईरान तक सीमित नहीं रहा बल्कि आस-पास के देशों पर भी इसका प्रभाव पड़ा। इस्लाम के नाम पर कुरीतियों को बढ़ावा देना तथा उदारवादी विचारों को नकारने की प्रवृति ने महिलाओं कि स्थिति को दिनों दिन बदतर किया।

16 सितंबर 2022 को, 22 वर्षीय ईरानी महिला महसा अमिनी को गलत तरीके से हिजाब पहनने के आरोप में ईरान की ‘मॉरल पुलिस’ द्वारा हिरासत में लिया गया जहां उनकी पुलिस प्रताड़ना के कारण मौत हो गई। इस हत्या के बाद अब ईरान में चारों तरफ हिजाब के खिलाफ प्रदर्शनों का दौर जारी है। विरोध प्रदर्शन जो अब आंदोलन में तब्दील हो चुका है, इसमें महिलाओं की व्यापक भागीदारी हो रही है। सभी उम्र और पृष्ठभूमि से आने वाली ईरानी महिलाएं न्याय, सुधार और अपने अधिकारों की मांग करने के लिए सड़कों पर हैं। यह आंदोलन अब तेहरान से ईरान के 50 अन्य शहरों और कस्बों तक फैल गया है। ईरानी महिलाएं शासन के सख्त नियंत्रण की खुली अवहेलना के तौर पर अपने स्कार्फ जला रही हैं और अपने बाल काट रही हैं। ध्यातव्य है कि हाल के रिपोर्ट से यह भी पाया गया कि वहां छात्राओं को, जो अपनी शिक्षा जारी रखना चाहती है उन्हें घर में ही जहर खिलाकर मार दिया जा रहा है।

हालांकि वैश्विक समुदाय ने महिलाओं पर इन देशों में बढ़ रहे अत्याचार को गम्भीरता से लिया है तथा संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक परिषद से 2022-2026 के बचे हुए कार्यकाल के लिए महिलाओं की स्थिति पर आयोग से बाहर करने का निर्णय लिया गया। संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में कहा गया है कि ईरान की सरकार लगातार बल प्रयोग करके अभिव्यक्ति, विचार और स्वतंत्रता के अधिकारों सहित महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकारों को लगातार तेजी से कमजोर कर रही  है। इस निर्णय से ईरानी महिलाओं को अपने मूलभूत अधिकारों की लड़ाई में मजबूत वैश्विक सहयोग मिला।

प्रतिवर्ष 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है, संयुक्त राष्ट्र ने महिला दिवस को 1975 में मनाना शुरू किया जिसे अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष के रूप में मान्यता दी गई थी। हाल के दशकों में महिलाओं की उपलब्धियों को पहचाने जाने के अवसर से आगे बढ़ कर यह दिवस महिला अधिकारों और राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में उनकी भागीदारी के लिए समर्थन जुटाने का अवसर बन रहा है। 21 वीं सदी में जब मानव सभ्यता कई क्षेत्रों में अपना डंका बजा रही है ऐसे में तालिबानी राज्य की कुंठित सोच धर्म के नाम पर महिलाओं के लिबास, उनकी शिक्षा और रोजगार के अधिकार पर पाबंदी लगाना सिर्फ महिला अधिकारों का हनन नही बल्कि मानव अधिकारों का हनन है, इसकी रक्षा के लिए विश्व समुदाय को एकजुट होकर महिलाओं के इस युद्ध में सहयोग करना चाहिए।

– डॉ. अभिषेक श्रीवास्तव 

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