भारतविरोधी शक्तियों का इकोसिस्टम

अमेरिका में 2008 की भांति बैंकों का डूबना शुरू होने के कारण मंदी की शुरुआत की आशंका बढ़ गई है। ऐसे में अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस द्वारा भारत के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करना खतरनाक है। सोरोस के एनजीओ से फंड पाने वालों पर नजर रखी जानी चाहिए क्योंकि वे लोग लोकतंत्र के लिए खतरा उपस्थित कर सकते हैं।

अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस ने दावोस में चल रही वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक में कहा था कि भारत को हिंदू राष्ट्रवादी देश बनाया जा रहा है। म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन से पहले दिए गए अपने भाषण में सोरोस ने पीएम मोदी और अडानी को एक-दूसरे का करीबी बताया था। मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, सोरोस भारत के खिलाफ एक इकोसिस्टम बना रहा है। पैसों की ताकत से वह अपने इको सिस्टम में निवेश करके भारत की जमीन पर ही वह भारत के खिलाफ षड्यंत्र रच रहा है। अब यहां सवाल उठता है कि जॉर्ज सोरोस है कौन?

जॉर्ज सोरोस हंगरी में जन्मा, और दुनिया के सबसे कामयाब अमेरिकी निवेशक के तौर पर उसकी पहचान है। वह सोरोस फंड मैनेजमेंट का संस्थापक और अध्यक्ष है। वैश्विक राजनीति पर उसकी पैनी नजर रहती है। जो सामने से एक एनजीओ वाला परोपकारी चेहरे का मुखौटा लगाता है, लेकिन उसका एनजीओ भारत में अराजकता का एजेंट बनकर सक्रिय है।

उसका दिखाने वाला चेहरा ओपन सोसाइटी फाउंडेशन नाम का एक गैर सरकारी संगठन है। जिसके माध्यम से वह अरबों डॉलर खर्च करता है। इसी एनजीओ की वजह से दुनिया भर में वह लोकतंत्र, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय का पैरोकार बनकर अपनी ब्रांडिंग करता है। पैसों की उसके पास कोई कमी नहीं है, एक अनुमान के अनुसार उसकी कुल संपत्ति 8.5 बिलियन डॉलर के आस-पास होगी।

जॉर्ज सोरोस ने 2004 में जॉर्ज डब्ल्यू बुश को अमेरिकी राष्ट्रपति बनने से रोकने के लिए अपनी सारी ताकत लगा दी थी। इसके पीछे उसने पानी की तरह पैसा बहाया था। उसने ओपन सोसाइटी यूनिवर्सिटी नेटवर्क (ओएसयूएन) के नाम से भी एक संस्था बनाई है। यह संस्था नैरेटिव बनाने और बिगाड़ने के काम में लगी है। दुनिया भर के विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध के लिए यह सहायता मुहैया कराती है। सोरोस अपनी नैरेटिव की लड़ाई को लेकर भी स्पष्ट है। ओएसयूएन के स्थापना के सम्बंध में वह कहता है कि दुनियाभर के तानाशाहों से निपटने के लिए इसकी स्थापना की है। उसकी सूची में ये तानाशाह कौन-कौन हैं? इसका जवाब उसने स्विट्जरलैंड के दावोस में आयोजित वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम में दिया था। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का नाम उसने तानाशाहों में गिनाया था। एक तरह से भारत के खिलाफ उसकी लड़ाई छुपी हुई नहीं है। वह चुनौती देकर इस लड़ाई को लड़ रहा है।

सोरोस की ताकत और दुनिया भर में फैला उनका नेटवर्क, देखकर यह कहना होगा कि उसके भारत विरोधी बयान के बाद देश की सुरक्षा एजेन्सियों को सतर्क हो जाने की आवश्यकता है। सोरोस का इकोसिस्टम भारत की विभिन्न फाल्ट लाइंस पर काम कर रहा है। इनकी शक्लें और इनके संगठनों को पहचान लेने की आवश्यकता है। सावधानी बरतने पर विशेष बल इसलिए दिया जा रहा है क्योंकि वह विभिन्न तरीकों से कई देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर चुका है। इसके अलावा उसके एनजीओ से सहायता प्राप्त करने वाले भारत में ऐसी गतिविधियों में लिप्त रहे हैं, जो देश में अराजकता की समस्या पैदा करने वाली थीं।

जॉर्ज सोरोस के बयानों से यही लगता है कि वह भारत में सोनिया माइनो गांधी की सरकार चाहते हैं। इसके लिए वे भारत की मोदी सरकार को टारगेट कर रहे हैं। यहां पहले एफसीआरए और हवाला के माध्यम से पैसों का आना-जाना जिस तरह आसान था, अब भारत के प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और दूसरी एजेंसियों की सख्ती की वजह से पहले जैसा नहीं रहा। नक्सलियों से लेकर चरमपंथियों तक की फंडिंग रूकी है। नोटबंदी की कमियां गिनाने वाले अधिकांश समाजसेवी और पत्रकार संयोगवश वही लोग थे, जो अर्बन नक्सल जैसे टर्म को स्वीकार नहीं करते और नक्सलियों से सहानुभूति रखते हैं। एफसीआरए की सख्ती जिन्हें पसंद नहीं। एनजीओ चलाना चाहते हैं लेकिन सरकार को हिसाब नहीं देना चाहते।

सोरोस का ओपन सोसाइटी फाउंडेशन नाम से चल रहा फाउंडेशन ऐसी ताकतों को तलाश कर आर्थिक मदद कर रहा है, जो मोदी को पसंद नहीं करते। सोरोस का यह बयान मीडिया में चर्चित हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत तानाशाही व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। उसने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने और नागरिकता संशोधन कानून का भी खुलकर विरोध किया। उसके बयानों से यह साफ है कि वह किसके एजेंट के तौर पर काम कर रहा है। वह भारत का समर्थक नहीं बल्कि विरोधी लोगों के साथ मिलकर काम करने वाला है। उसके कांग्रेसी सरकारों में पश्चिमी देशों के सामने झुका हुआ प्रधानमंत्री देखा है। वह राहुल गांधी को बात-बात पर कांग्रेस के संस्थापक एओ ह्यूम के देश लंदन आकर, मीडिया के सामने रोता हुआ देख रहा है। फिर यूएस या यूके में भारतीय प्रधान मंत्री को सुनने के लिए आने वाले हजारों प्रशंसक। यूएस और यूके के राष्ट्रपति-प्रधान मंत्री के साथ मिलकर मजबूती से भारतीय पक्ष रखने वाला प्रधान मंत्री उसे कैसे पसंद आएगा? भारत में पहली बार एक ऐसी सरकार आई है, जिसने यहां के नागरिकों को भारतीय परम्परा और संस्कृति पर गर्व का एहसास कराया है। वरना भारत ने जाति और धर्म के नाम पर लड़ाने वाली सरकार ही देखी है। जो जॉर्ज सोरोस जैसों का एजेंडा रहा है। अब वह एजेन्डा फेल हो रहा है तो उनका बौखलाना स्वाभाविक है।

सोरोस का बयान कुछ दिनों पहले उद्योगपति गौतम अडानी पर भी आया। सोरोस अडानी की कम्पनियों के खिलाफ आई हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट को लेकर टिप्पणी कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अडानी का पीएम मोदी के साथ इतना घनिष्ठ सम्बंध है कि दोनों एक-दूसरे के लिए जरूरी हो गए हैं।

भारत के प्रधान मंत्री का एक भारतीय उद्योगपति के साथ कैसा सम्बंध रहेगा, इस बात में एक अमेरिकी अरबपति की क्या रूचि है? उसे हिंडनबर्ग को थोड़ी मदद और करनी चाहिए, जिससे वह अपने बैंकों को सही समय पर सही टिप्पणी करके बचा सके। हिंडनबर्ग जिसे सात समुद्र पार अडानी की कम्पनी दिख गई लेकिन अमेरिका में आर्थिक मंदी की आ रही आहट सुनाई नहीं दी। जॉर्ज सोरोस को मंदी से महाशक्ति को बाहर निकालने में अपनी ऊर्जा लगानी चाहिए। अमेरिका में सिलिकॉन वैली बैंक के बाद एक और बैंक सिग्नेचर बैंक पर रेगुलेटर्स ने ताला लगा दिया है। यह धराशायी होने वाला दूसरा सबसे बड़ा बैंक है। अमेरिका में महज एक सप्ताह के भीतर 2 बैंकों का बिखर जाना और हिंडनबर्ग जैसी संस्था को इसकी भनक भी ना लगना, उसके काम काज पर सवाल उठाता ही है। यूएस बैंकों के डूबने से ग्लोबल मार्केट में भारी गिरावट देखी गई। यह सब किसी भी देश में भयावह स्थिति पैदा करने के लिए काफी है। अब इस घटना को आर्थिक मंदी की शुरुआत के तौर पर देखा जाने लगा है, क्योंकि 2008 की मंदी भी बैंकों के डूबने के बाद ही देखने को मिली थी।

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