मुंबई में बढ़ता वायु प्रदूषण और बीमारियां

वृक्षों की अंधाधुन कटाई और मृदा क्षरण की वजह से देश में वायु प्रदूषण अपने चरम पर है। सरकार एवं स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा किए गए प्रयास ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहे हैं। यदि समय रहते इस पर रोकथाम लगाने का प्रयास नहीं किया गया तो आगे चलकर स्थिति और भयावह होने की सम्भावना है।

औद्योगिक विकास, बढ़ता शहरीकरण और उपभोगक्तावादी संस्कृति आधुनिक विकास के ऐसे नमूने हैं, जो हवा, पानी और मिट्टी को एक साथ प्रदूषित करते हुए समूचे जीव-जगत को संकटग्रस्त बना रहे हैं। पर्यावरण समस्त भौतिक, जैविक और सामाजिक कारकों की यह व्यवस्था है जो मानव जीवन को किसी न किसी प्रकार से प्रभावित करती है। प्रदूषण से तात्पर्य केवल हानिकारक तत्वों का वातावरण में आ जाना ही नहीं अपितु पर्यावरण के किसी घटक की प्राकृतिक गुणवत्ता में परिवर्तन से है। वायु के भौतिक, रासायनिक या जैविक घटकों का परिवर्तन जो मानव पर प्रतिकूल प्रभाव डाले, वह वायु प्रदूषण कहलाता है।

धरती की जीवनोपयोगी स्थिति कायम रहे इसके लिए आवश्यक है कि समस्त जीव जगत का का अस्तित्व बना रहे जबकि वायु प्रदूषण से ऑक्सीजन घटेगी, कार्बनिक गैसें बढ़ेगी जिससे प्राणियों का जीवन कठिन हो जाएगा। केवल जीवधारी ही नहीं जीवाणु तक अपना अस्तित्व गंवाते चले जायेंगे।

वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े पर्यावरण सम्बंधी खतरों में से एक है जो हर साल करीब 70 लाख लोगों की जान ले रहा है। यदि 2019 के आंकड़ों को देखें तो दुनिया की 90 फीसदी से ज्यादा आबादी ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर है जो धीरे-धीरे उसकी जान ले रही है। वातावरण में बढ़ता प्रदूषण अस्थमा, कैंसर और मानसिक रोगों जैसी बीमारियों की जड़ है। जिसका बोझ दुनिया के लाखों लोगों को ढोना पड़ रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 222 शहरों ने डब्लूएचओ द्वारा निर्धारित मानकों को हासिल किया था जबकि दूसरी तरफ 93 शहरों में वायु प्रदूषण के स्तर तय मानकों से करीब 10 गुना ज्यादा था।

भारत में औद्योगीकरण की गति भूमण्डलीकरण के बाद तेज हुई। एक तरफ प्राकृतिक सम्पदा का दोहन बढ़ा तो दूसरी तरफ औद्योगिक कचरे में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई। लगभग सभी छोटे शहरों को प्रदूषण ने गिरफ्त में ले लिया है। शहरों में प्रदूषण एक बड़ी समस्या के रूप में उभरता जा रहा है।

देश के तमाम शहरों और कस्बों के साथ ही सबसे बुरी हालत राजधानी दिल्ली की है। दिल्ली के लोगों की उम्र प्रदूषण के कारण 06 वर्ष तक कम हो रही है इसीलिए दिल्ली की हवा को हत्यारी हवा भी कह सकते हैं। कुछ ऐसे ही हालात देश के दूसरे हिस्सों के भी हैं और यहां के लोगों की उम्र भी वायु प्रदूषण की वजह से 3.5 से 6 वर्ष तक कम हो रही है। भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में से एक है और वायु प्रदूषण देश के लोगों की सेहत के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के द एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा एयर क्वालिटी इंडेक्स के आधार पर तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार वायु प्रदूषण घटाने पर कार्य करे तो लोगों का जीवन औसतन 4 वर्ष बढ़ सकता है।

देश के राष्ट्रीय मानकों के अनुसार हमारे देश में पीएम 2.5 का स्तर 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होना चाहिए और पीएम 10 के लिए यह स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होना चाहिए, लेकिन भारत में पीएम 2.5 के मानक डब्ल्यूएचओ के मानकों से 4 गुना ज्यादा हैं। जबकि पीएम 10 के मानक तीन गुना ज्यादा हैं। हवा में मौजूद ये पीएम कण सांस द्वारा शरीर और फेफड़ों में पहुंच जाते हैं और अपने साथ जहरीले केमिकल्स को शरीर में पहुंचा देते हैं जिससे फेफड़े और हृदय को क्षति पहुंचती है।

वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट 2021 से पता चलता है कि 2021 के दौरान देश के 48 फीसदी शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा निर्धारित मानकों से करीब 10 फीसदी ज्यादा था।

अब तक किए शोधों में यह पहले ही स्पष्ट हो चुका है कि प्रदूषण से जुड़े महीन कण जिन्हें पीएम के नाम से जाना जाता है वे कैंसर, स्ट्रोक, गर्भपात और मानसिक विकार जैसी समस्याओं का कारण बन सकते हैं। इसी तरह एक अन्य शोध में सामने आया था कि प्रदूषित हवा शरीर की लगभग हर कोशिका को प्रभावित कर सकती है।

हमारे शरीर को बीमारियों से बचाने का काम प्रतिरक्षा प्रणाली यानी हमारा इम्यून सिस्टम करता है। यह हमारे शरीर में प्रवेश करने वाले किसी भी बाहरी तत्व का मुकाबला करता है, जो शरीर के लिए हानिकारक हो सकते हैं। लेकिन कई बार हमारा इम्यून सिस्टम गलती से शरीर की कोशिकाओं पर भी हमला कर देता है। इसी विकार को ऑटोइम्यून डिजीज कहा जाता है। रूमेटॉइड आर्थराइटिस, टाइप 1 डायबिटीज, सोरायसिस और ल्यूपस जैसी बीमारियां ऑटोइम्यून डिजीज के कुछ आम उदाहरण हैं।

पिछले वर्ष भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई में हवा की गुणवत्ता काफी खराब हो गई थी। जिससे निवासियों को अधिक घुटन और सांस लेने में परेशानी हो रही है। मुंबई में वर्तमान प्रदूषण चक्र में अचानक वृद्धि का कारण एक बड़ी मौसम संबंधी घटना है, एक वैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ला नीना ने असामान्य भूमिका निभाई है।वायु गुणवत्ता की मौजूदा बिगड़ती स्थिति में प्रमुख हिस्सा धूल उत्सर्जन से है। शहर में कई पुनर्विकास और निर्माण परियोजनाएं चल रही हैं। इसलिए, वृद्धि स्रोत पर तीव्र उत्सर्जन के कारण है, जिसमें आमतौर पर पीएम 2 शामिल होता है।इस कारण मुंबई वासी खराब हवा में सांस ले रहे है। लेकिन यह जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का एक स्पष्ट प्रारंभिक संकेत है। इसलिए, समस्या के मूल कारण – मानवजनित उत्सर्जन – की समस्या का समाधान खोजना होगा निर्माण स्थलों के चारों ओर रंग के पर्दे लगाना, सामग्री को लोड करने और उतारने से पहले ट्रक के टायरों और मलबे पर नियमित रूप से पानी छिड़कना और स्नार्ल्स को दूर करने के लिए सुचारू यातायात प्रवाह सुनिश्चित करना कुछ तात्कालिक उपाय हैं। मध्यम अवधि में, इलेक्ट्रिक वाहनों में संक्रमण, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, डंपिंग ग्राउंड और औद्योगिक विष प्रबंधन को संबोधित करना कुछ ऐसे कार्य हैं जो हमें बेहतर वायु गुणवत्ता प्राप्त करने में मदद करेंगे।

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में वायु प्रदूषण के कारण बढ़ रही फेफड़ों की बीमारियों ने चिंता बढ़ा दी है। विशेषज्ञ डॉक्टरों ने मुंबईकरों को विशेष सावधानियां बरतने की सलाह दी है।विशेषकर वरिष्ठ नागरिकों को वायु प्रदूषण से निपटने में अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है। कोविड लहर के खत्म होने के बाद अब मुंबई में वायु प्रदूषण ने फेफड़ों की बीमारियों की चिंता बढ़ा दी है।मुंबई में वायु प्रदूषण से उच्च रक्तचाप, अस्थमा, हृदय रोग, ब्रोंकाइटिस और गुर्दे की बीमारी वाले वरिष्ठ नागरिक विशेष रूप से प्रभावितहो रहे हैं। यदि खांसी, दमा या सीओपीडी की बीमारी पुरानी है तो ठंडे वातावरण में संक्रमण, धूल और प्रदूषण से सांस लेने में तकलीफ हो सकती है और रोगियों के रक्त में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। बढ़ती आबादी के साथ-साथ लगातार निर्माणकार्य, वाहनों के धुएं, औद्योगिक प्रदूषण, जीवाश्म ईंधन और कचरे के जलने से मुंबई में वायु प्रदूषण में वृद्धि हुई है। देश में बढ़ते वायु प्रदूषण के संकट की छाया में मुंबई वासियों को भी सतर्क रहना होगा। वायु प्रदूषण के कारण और इसके निवारण की जानकारी के लिए जन सामान्य के बीच पर्यावरण चेतना अभियान चलाये जाने की आवश्यकता है।

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