डॉ. हेडगेवार जी : कुशल संगठक

कोई अगर आपसे प्रश्न पूछे कि अपने देश के प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार कौन थे ? तो इस प्रश्न के उत्तर में आप मुंशी प्रेमचंद का नाम बताएंगे । भारत के उत्कृष्ट कवि का नाम पूछा गया तो आपका उत्तर होगा – रवीन्द्रनाथ ठाकुर । कभी यह प्रश्न पूछा जाए कि भारत का आकर्षक व्यक्तित्व, अंग्रेजी जिसे ‘हैंडसम पर्सनालिटी’ कहा जाता है, कौन था ? तो उत्तर दिया जायेगा सुभाषचन्द्र बोस । लेकिन ऐसे किसी भी प्रश्न का उत्तर डॉ. हेडगेवार नहीं है । फिर डाक्टर जी की विशेषता क्या थी – यह प्रश्न किसी ने पूछा तो इसका उत्तर एक ही है – कुशल समाज संगठक याने डॉ. हेडगेवार।
समाज संगठक शब्द द्वि-आयामी है । एक आयाम है, समाज में परिवर्तन और दूसरा आयाम है, इस पद्धति से जो भाग जागृत हुआ है, उनका संगठन । जब समाज संगठन कहा जाता है तो संगठन के हरेक मनुष्य में एक विशेष प्रकार की भावजागृती हुई है और ऐसे भाव-जागृत लोक एकत्रित आये हैं – इस कल्पना से एक कुशल समाज संगठक यह शब्द प्रयोग हम डॉक्टरजी के बारे में कर सकते हैं ।
लेकिन डॉक्टरजी की एक और विशेषता है । उदात्त विचार और उसे साकार करनेवाली अत्यंत दुर्गम पद्धति – ऐसा विचार रखने वाले बहुत लोग हो सकते हैं । विविध प्रकार की बीमारियों पर औषधियों की जानकारी देनेवाली एक पुस्तक का नाम है ‘चिकित्सा प्रभाकर’। मैंने जब उसे पढ़ने का प्रयास किया तो ध्यान में आया कि उसमें जो दवाईयां बतायीं गयीं है, वह निर्माण करना आसान नहीं है, हर किसी के लिये संभव भी नहीं है।
मैंने वह पुस्तक मनोरंजन के लिये पढी। ‘चिकित्सा प्रभाकर’ में हरेक प्रकार की बीमारी के लिये दवाई लिखी है किन्तु दवाई निर्माण करना अत्यंत कठिन साध्य है। डॉक्टर जी की विशेषता यह रही कि एक उदात्त- विचार, लेकिन निर्माण करने के लिए उतनी ही सरल पद्धति भी उन्होने दी – यह डॉक्टर जी की देन है । इस पद्धति का उल्लेख हम शाखा, इस नाम से करते हैं ।

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