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इंद्रपुरी, इंदूर, इंदौर

इंद्रपुरी, इंदूर, इंदौर

by हिंदी विवेक
in मई - इंदौर विशेषांक २०२३, विशेष, संस्कृति, सामाजिक
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इंदौर शहर अपने आप में बहुत सी विशेषताएं समेटे हुए है। पुण्यश्लोक अहिल्याबाई समेत होलकर वंश ने यहां के सर्वांगीण विकास के लिए हमेशा सार्थक प्रयास किए। इंदौर की कई विभूतियों ने देश एवं विदेेश में इस शहर को गौरवान्वित किया है।

इंदौर शहर का प्राचीनतम इंद्रेश्वर महादेव मंदिर है। भगवान शंकर के इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में हुआ था। होलकर रियासत के रिकॉर्ड के मुताबिक इस मंदिर पर संत इंद्रगीर बाबा सेवा में थे, और इसी प्राचीनतम भगवान शिव के मंदिर से इंदौर की नाम की उत्पत्ति हुई। तब इस बस्ती को इंद्रपुरी कहा जाता था। इंद्रपुरी से यहां इंदूर हुआ और 1918 में जब ईस्ट इंडिया कम्पनी आई तो इसे इंदौर कहा जाने लगा। 1818 में ही होलकर रियासत की अस्थाई राजधानी भानपुरा से इंदौर लाई गई। इसके बाद होलकर रियासत को इंदौर रियासत भी कहा जाने लगा।

1818 में इंदौर राजधानी बनते ही यहां पर शिक्षा एवं चिकित्सा के विकास के लिए नींव रखी गई। सेंट्रल इंडिया की कई रियासतों ने अपनी-अपनी कोठियां का निर्माण इंदौर शहर में किया जिससे यह तीव्र गति से विकसित हुआ। 18 वीं शताब्दी के मध्य में इंद्रेश्वर महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार सूबेदार मल्हार राव होलकर द्वारा करवाया गया था।

उल्लेखनीय है की देवी अहिल्याबाई होलकर भगवान शिव की उपासक थी। उन्होंने अपना पूरा राज-पाट भगवान शिव को अर्पित कर दिया था। वे अपना सारा राजपाट महेश्वर से चलाया करती थी। दक्षिण की ओर जाने का व्यापार मार्ग इंद्रपुरी यानी इंदौर से होकर जाता था। जूनी इंदौर और उसके आसपास की बस्ती में ऊंचे टीले पर चंद ही मकान हुआ करते थे। यह इंदौर का सबसे प्राचीनतम इलाका था जो सरस्वती नदी, जिसे आज चंद्रभागा कहा जाता है, के तट पर था। यहां पर साधु-संत, फकीरों आदि का डेरा था और यही वजह है कि सोलवी शताब्दी के प्रारम्भ में गुरु नानक देव जी भी यहां पधारे थे। इस इलाके से इमली बाजार तक घने इमली के घने जंगल हुआ करते था और गुरु नानक देव जी ने जिस स्थान इमली के पेड़ के नीचे अपने शिष्यों को उपदेश दिए थे, उसी स्थान पर इमली साहिब गुरुद्वारा का निर्माण हुआ।

मुगल, पेशवा, तथा मराठा होलकर सेनाओं की हलचल हमेशा इस इलाके में बनी रही और जब-जब सेनाओं का पड़ाव इंदौर के इस इलाके में होता था तो आसपास के गांवों से छोटा-मोटा व्यापार सेनाओं के पड़ाव रहने तक हुआ करता था। मध्य भारत के प्रख्यात इतिहासकार डॉ रघुवीर सिंह के एक शोध के अनुसार मुगलों द्वारा 1701 में नंदलाल चौधरी की गादी कंपिल में स्थापित की गई थी। बाद में उन्होंने इंदौर की ओर रुख किया। 1716 मालवा सूबे के उज्जैन से उन्हें एक सनत प्राप्त हुई जिसमें इंदौर में बस्ती बसाकर बिना टैक्स व्यापार की मंजूरी दी गई। तब इंदौर की पहली नई बस्ती, जिसका नाम नयापुरा हुआ और बाद में जो नंदलालपुरा कहलाया, इंदौर की पहली बस्ती के रूप में विकसित हुई। इस बस्ती के आसपास कुछ बुनकर बसने लगे, जहां पर मुख्यतः कपड़ा, अफीम, इत्र आदि का व्यापार होता था। राव राजा नंदलाल मंडलोई ने इंदौर शहर की वास्तविक नींव रखी।

मुगलों के पतन के बाद मराठा साम्राज्य पूरे भारतवर्ष में फैल गया और 1732 में पेशवा ने सूबेदार मल्हार राव होलकर को देपालपुर और उसके आसपास की कई जागीरें प्रदान की। उस समय इंदौर शहर का होलकर छावनी के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। अपने अंतिम समय में सूबेदार मल्हार राव होलकर ने राजवाड़े का प्रारम्भिक निर्माण शुरू किया था। सूबेदार मल्हार राव होलकर की मृत्यु के पश्चात रियासत की बागडोर देवी अहिल्याबाई होल्कर के पुत्र माले राव होलकर को मिली। महज 9 के महीने शासन के बाद उनकी मृत्यु हो गयी और राजपाठ का पूरा भार देवी अहिल्याबाई होलकर पर आन पड़ा। 28 बरस का यह शासनकाल अपने कुशल प्रबंधन के लिये जाना जाता है महेश्वर से भारतवर्ष के कई दूरगामी क्षेत्रों तक उन्होंने मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया, धर्मशालाएं बनवायीं, अन्नक्षेत्र व सड़कों का निर्माण करवाया तथा रेशम उद्योग का विस्तार जैसे महत्वपूर्ण कार्य किये।

आधुनिक इंदौर के निर्माता महाराजा तुकोजी राव द्वितीय को 1844 में होल्कर राज गद्दी पर बिठाया गया। महाराजा तुकोजी राव होलकर द्वितीय के शासनकाल में इंदौर शहर में खंडवा से इंदौर रेलवे लाइन डाली गई। पहली कपड़ा मिल 1866 मेें बननी शुरू हुई। वहीं इंदौर शहर की जल आपूर्ति के लिए भी महाराजा होलकर ने अभूतपूर्व कार्य किए। रियासत में कपास और अफीम के उद्योग के लिए पहले बैंक की स्थापना की थी। इसीलिए महाराजा तुकोजीरा को आधुनिक इंदौर का निर्माता कहा जाता है।

इंदौर के अंतिम महाराजा यशवंत राव होलकर ने शहर के लिए यशवंत सागर का निर्माण तथा महाराजा यशवंत राव होलकर चिकित्सालय का निर्माण कराया था। आप ही के शासनकाल  के दौरान 1934 में जेआरडी टाटा द्वारा हवाई यात्राएं शुरू की गई थी। आपने शिक्षा, चिकित्सा, खेल के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया था। साथ ही  हरिजन उत्थान के लिए आपके कार्य अभूतपूर्व रहे। आपके समय में रियासत के तमाम मंदिरों में जाने, कुओं एवं बावड़ियों से पानी भरने और रियासत के सभी विद्यालयों में हरिजन छात्रों के प्रवेश की अनुमति प्रदान की गई थी।

इंदौर शहर में जहां स्वर कोकिला लता मंगेशकर का जन्म हुआ, यहीं पार्श्वगायक किशोर कुमार ने शिक्षा प्राप्त की। कला जगत के अंतरराष्ट्रीय स्तर के चित्रकार कला गुरु महर्षि डीडी देवलालीकर, एमएफ हुसैन, एनएस बेंद्रे आदि चित्रकारों ने इंदौर का नाम रोशन किया। फोटोग्राफर लाला दीनदयाल और राम चंद्र प्रताप राव ने पूरे भारतवर्ष में इंदौर शहर को प्रसिद्धि दी थी। फिल्म जगत में जहां बदरुद्दीन काजी-जॉनी लीवर, सलीम खान, विजेंद्र घाटगे, सलमान खान ने इंदौर को गौरवान्वित किया वहीं खेल जगत में कैप्टन सीके नायडू, कैप्टन मुस्ताक अली, मेजर जगदाले आदि ने शहर को प्रसिद्धि दिलाई। इंदौर शहर में महान कवियित्री महादेवी वर्मा का बचपना बीता था।

उद्योग जगत में अफीम और कपड़ा के व्यापार से इंदौर को प्रसिद्धि दिलाने वाले प्रिंस मर्चेंट ऑफ इंडिया सर सेठ हुकुमचंद थे, जिन्होंने कई दशकों तक इंदौर उज्जैन में कपड़ा मिलों की स्थापना की थी और इंदौर को एक मजबूत औद्योगिक नगरी बनाया था। उन्होंने कोलकाता में भी कई जूट मिलों का निर्माण किया तथा मुंबई हुकुमचंद लाइफ इंश्योरेंस कंपनी की शुरुआत की थी। आज इंदौर शहर में कई होलकर कालीन ऐतिहासिक इमारतें मौजूद हैं। जिसमें मुख्यतया राजवाड़ा, गोपाल मंदिर, शिव विलास पैलेस, लालबाग, महाराजा हरि राव होल्कर की छतरी, बोलिए सरकार की छतरी, रेसीडेंसी कोठी, ओल्ड डेेली कॉलेज, व्हाइट चर्च, जामा मस्जिद, इमामबाड़ा, नंदलाल मंडल जमीदार इंदौर की छतरियां आदि प्रमुख हैं। यहां इमारतें इंदौर के स्वर्णिम मराठा इतिहास की झलक को दर्शाती हैं। इंदौर की सांस्कृतिक विरासत के रूप में यहां कई तीज त्यौहार, होली, रंग पंचमी, दशहरा ,दिवाली, गुड़ी पड़वा, मोहर्रम विशेष तौर पर मनाया जाते हैं। होली के पांचवें दिन रंग पंचमी पर लाखों-लाखों लोग शामिल होते हैं।

– जफ़र अंसारी 

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