लोकमाता अहिल्या, संस्कार इंदूर का

इंदौर एक शहर मात्र नहीं बल्कि वहां के लोगों के हृदय में बसा अहसास है। इंदौरी होने का अहसास, लोकमाता अहिल्या के पुण्यों और देश का सबसे स्वच्छ शहर होने का अहसास। आठ बार संसद सदस्य और लोकसभा स्पीकर रहीं सुमित्रा महाजन ने अपने आलेख में इन भावों को बड़ी निपुणता से उकेरा है।

इंदौर की आबोहवा सुखद, आल्हाददायक खान-पान की तो क्या कहिए… अरे ऐसा स्वाद कहीं नहीं मिलेगा, लोग भी यहां के बड़े अच्छे स्वभाव से मदद के लिए तैयार गुणवंत। हां, दूसरों के गुण भी पहचानने वाले, खाने की, गाने की कला के शौकीन। यहां कभी किसी बात की कमी महसूस नहीं होती। होगी भी की क्यों? हां… मां अहिल्या की पुण्याई है। माता का शहर है, उसका पुण्य अक्षुण्ण है।

व्यक्तिगत सुख-दुःख को अलग रखकर प्रजा के कल्याण का सोचना बहुत बड़ी बात है, सामान्य घर की स्त्री, महाराष्ट्र के चौंडी गांव में जन्मी अहिल्या शिंदे, शिंदे पाटिल की लड़की, विवाह होकर मल्हारराव होलकर जैसे पराक्रमी सूबेदार की बहू बनकर आई। शिक्षा, दीक्षा, शास्त्र पुराण, लेखन, पठन, मनन सब शिक्षा सास-ससुर की देखरेख में प्राप्त की और राजनीति, युद्ध कौशल, युद्ध की तैयारी से लेकर सैन्य प्रजा पालन की दीक्षा मल्हारराव की छाया में रहकर सीखी। व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो कुछ साल के गृहस्थ जीवन, सास-ससुर की छत्रछाया में प्राप्त शिक्षा के बाद पति की मृत्यु, सास-ससुर की मृत्यु, पुत्र, कन्या, जमाई नाती-पोते की मृत्यु का दुःख, जीवन का लक्ष्य केवल प्रजाहित, धर्मपालन व कठोर साधना करते-करते 75 वर्ष की उम्र तक आदर्श जीवन जिया।

परोपकाराय फलन्ति वृक्षः, परोपकाराय वहन्ति नद्यः

परोपकाराय दुहन्ति गावाः, परोपकाराय संताम विभूतयः

इस उक्ति अनुसार मालवा की प्रजा के लिए, मालवा की उन्नति, मालवा का कल्याण, हिंदुस्तान का हितरक्षण सामने रखते हुए मां अहिल्या ने कार्य किया। पूरे हिंदुस्तान में धार्मिक स्थलों का निर्माण, पुनर्निर्माण, घाट, कुए-बावड़ी, धर्मशालाओं का निर्माण, चारों धामों को जोड़कर लोकहित के कार्य, अपने राज्य में स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा, प्रजा की सुख-सुविधा का ध्यान रखकर साधनों का निर्माण, संस्कारवान प्रजा के निर्माण की दृष्टि से कलाकारों को मार्गदर्शन दिया। एक बार एक विद्वान ब्राह्मण देवता अहिल्या स्तुति ग्रंथ लिखकर माता को देने दरबार में आया तो माता ने खुद की स्तुति पर प्रथम वह ग्रंथ नर्मदा को समर्पित करने को कहा और बोलीं, ब्राह्मण देवता मेरा जीवन तो शिवचरणों में समर्पित लोक कल्याण कार्यों के लिए ही है।

इंदौर के संस्कारों ने अनेकानेक उत्तम कलाकार दिए, लेखक दिए जिनका कला और साहित्य में बड़ा योगदान रहा। हम लता मंगेशकर स्वर कोकिला को कैसे भूल सकते हैं, पंडित कुमार गंधर्व साक्षात गंधर्व का प्रसाद, इसी तरह एन.एस. बेंद्रे चित्रकार, उस्ताद अमीर खां जैसे अनेक कलाकार इंदौर की गौरव वृद्धि करते रहे हैं। इंदौर के विकास के लिए यहां के लोग पक्ष- विपक्ष, मत-मतांतर दूर रखकर एक होते रहे। जैसे नर्मदा का जल इंदौर में लाना बहुत आवश्यक था। एक समय ऐसा आया कि, बिन पानी के इंदौर सूना तो नहीं होगा। नहीं, सब ने निश्चय किया। नर्मदा का जल इंदौर आना ही चाहिए। सब ने मिलकर एक जन आंदोलन खड़ा किया, महती प्रयास, पक्ष-विपक्ष, सब नागरिक एक होकर इंदौर की आवाज बने और शासन को इंदौर को नर्मदा जल देना पड़ा। नर्मदा मैया इंदौर आईं। फिर इंदौर का राजवाड़ा किसी व्यक्ति को बेचा गया जिससे पूरे इंदौर में हलचल हो गई। राजवाड़ा इंदौर का सम्मान है, उसे बचाना होगा। सबने एक साथ आंदोलन किया तो तत्कालीन शासन को राजवाड़ा वापस लेकर इंदौर की जनता को समर्पित करना पड़ा।

अहिल्या माता ने यही तो बताया। सुशासन यानी केवल शासन काम करे यह नहीं, प्रजा भी अपना समझकर जुड़ जाए। इसी अहिल्या संस्कार से इंदौर स्वच्छता में प्रथम है। अधिकारी से लेकर जन-जन तक बच्चे- बच्चे के मन में मेरा इंदौर, ‘हमारा शहर- हम शहर के’ का अहिल्या संस्कार भाव समाया है। जैसे अहिल्या माता का भाव था- ‘मेरी प्रजा, मैं प्रजा की’। यही संस्कार सभी अधिकारी, जनप्रतिनिधि, सामाजिक संस्थाओं, बच्चे-बच्चे के मन में आए। इसी भाव से हम काम करें तो हम सदैव यशस्वी रहेंगे।

मां अहिल्या हमेशा कहती थीं, ईश्वर ने मुझ पर जो उत्तरदायित्व रखा है उसे मुझे निभाना है, मेरा काम प्रजा को सुखी रखना है। मैं अपने प्रत्येक काम के लिए जिम्मेदार हूं। सामर्थ्य एवं सत्ता के बल पर मैं यहां जो कुछ भी कर रही हूं, उसका ईश्वर के यहां मुझे जवाब देना होगा। मेरा यहां कुछ भी नहीं है, जिसका है उसी के पास भेजती हूं। जो कुछ लेती हूं वह मेरे ऊपर ऋण है।

मेरे मन में हमेशा एक विचार आता है मेरी जैसी सामान्य घर की महिला आठ बार सांसद बनती है, इंदौर के जन-जन का प्रेम उसे मिलता है, यह भी माता अहिल्या का ही आशीर्वाद है।

– सुमित्रा महाजन 

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