हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
हल्के से बदलाव पर हंगामा

हल्के से बदलाव पर हंगामा

by अवधेश कुमार
in मई - इंदौर विशेषांक २०२३, विशेष, शिक्षा, सामाजिक
0

देश की शिक्षा नीति में बदलाव हुआ है तो जाहिर सी बात है कि किताबों में भी कुछ बदलाव अवश्य होंगे। कुछ लोग राजनीतिक ईर्ष्यावश विरोध कर रहे हैं, जबकि शिक्षाविद् इसे सही कदम बता रहे हैं। इसलिए इस तरह के विरोधों का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।

सिलेबस के कुछ अंशों में संशोधन या बदलाव पर मचाया जा रहा हंगामा असामान्य नहीं है। भाजपा के शासनकाल में सिलेबस सम्बंधी निर्णय हमेशा विवाद के विषय बनाए जाते रहे हैं। हमने अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान यही देखा और अब नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में भी। इसी तरह इसकी राज्य सरकारें भी शिक्षा सम्बंधी निर्णय को लेकर एक वर्ग के निशाने पर रहती हैं। इस समय राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद यानी एनसीईआरटी की ओर से 10वीं, 11वीं और 12वीं कक्षा के लिए कुछ विषयों में किए गए बदलाव इसका ही प्रकटीकरण हैं। यह विरोध ऐसा है जिसमें लगता ही नहीं कि कोई सच समझने और देखने की कोशिश भी करना चाहता है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार तथा राज्यों की भाजपा सरकारों पर वैसे भी शिक्षा के भगवाकरण, हिंदूकरण, फासिस्टीकरण आदि का आरोप नया नहीं है। सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में किए गए परिवर्तन को तो हमारे देश का एक बड़ा समूह किसी सूरत में यह मानने के लिए तैयार नहीं हो सकता कि इनके पीछे सच्ची तार्किकता भी है। तो क्या है वर्तमान विवाद का कारण?

एनसीईआरटी ने 10वीं, 11वीं, 12वीं की इतिहास, नागरिक शास्त्र- राजनीति शास्त्र और साहित्य में कुछ संशोधन और बदलाव किए है। इतिहास की पुस्तकों से राजाओं और उनके इतिहास से सम्बंधित अध्यायों को हटा दिया है। नए पाठ्यक्रम के तहत इतिहास की किताब थीम्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री-पार्ट-2 से द मुगल कोर्ट्स (16वीं और 17वीं सदी) को हटाया है। 12वीं की इतिहास की किताबों से छात्रों को अकबरनामा और बादशाहनामा, मुगल शासकों और उनके साम्राज्य, पांडुलिपियों की रचना, रंग चित्रण, आदर्श राज्य, राजधानियां और दरबार, उपाधियां और उपहारों, शाही परिवार, शाही नौकरशाही, मुगल अभिजात वर्ग, साम्राज्य और सीमाओं के बारे में भी पढ़ने को नहीं मिलेगा।

11वीं की पाठ्यपुस्तक से थीम्स इन वर्ल्ड हिस्ट्री, सेंट्रल इस्लामिक लैंड्स, संस्कृतियों का टकराव और औद्योगिक क्रांति जैसे अध्याय हटा दिए गए हैं। नागरिक शास्त्र सम्बंधी बारहवीं कक्षा की किताब से ‘लोकप्रिय आंदोलनों का उदय’ और ‘एक दलीय प्रभुत्व का युग’ जैसे अध्याय हटे हैं। 10वीं की किताब डेमोक्रेटिक पॉलिटिक्स-2 से लोकतंत्र और विविधता, लोकप्रिय संघर्ष और आंदोलन, लोकतंत्र की चुनौतियां जैसे पाठ भी हटा दिए गए हैं। विश्व राजनीति में अमेरिकी आधिपत्य और द कोल्ड वॉर एरा जैसे अध्यायों को भी 12वीं की पाठ्यपुस्तक से हटा दिया गया है। 12वीं की किताब पॉलिटिक्स इन इंडिया सिंस इंडिपेंडेंस से राइज ऑफ पॉपुलर मूवमेंट्स और एरा ऑफ वन पार्टी डोमिनेंस को भी हटा दिया गया है। इनमें कांग्रेस, सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के प्रभुत्व के बारे में बताया गया था।

प्रश्न है कि इन में ऐसा क्या है जिस पर इतना हंगामा होना चाहिए? वैसे तो एनसीईआरटी ने स्पष्टीकरण दे दिया है। उसका कहना है कि कोरोना काल में छात्रों पर से पाठ्यपुस्तकों का बोझ कम करने की दृष्टि से कुछ अध्याय हटाने की सिफारिश की गई थी। छात्रों से पाठ्यपुस्तकों का बोझ कम हो इसका सुझाव शिक्षाशास्त्री और समाजशास्त्री हमेशा देते रहे हैं। एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी ने स्पष्ट किया है कि मुगलों के बारे में अध्याय नहीं हटाए गए हैं। उनके अनुसार पिछले साल एक रेशनलाइजेशन प्रोसेस थी क्योंकि कोरोना के कारण हर जगह छात्रों पर दबाव था। विशेषज्ञ समिति ने सिफारिश की कि यदि इन अध्यायों को हटा दिया जाता है, तो इससे बच्चों के ज्ञान पर कोई असर नहीं पड़ेगा और एक अनावश्यक बोझ को हटाया जा सकता है। इसके बारे में भी गहराई से सोचिए की मध्यकाल क्या केवल मुगल काल और सल्तनत काल ही है? क्या अभी तक मध्य एशिया या भारत में इस्लाम के उदय के बारे में जो कुछ कहा जाता रहा वही सच है? इतिहास के मध्यकालीन भारत में उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम अनेक राजे राजवाड़े, व्यक्तित्व थे जिन्होंने शासन व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, अध्यात्म, ज्ञान विज्ञान,वास्तुकला, संगीत आदि से लेकर पराकर्म और शौर्य में अपना लोहा मनवाया।

उन सबको इतिहास की पुस्तकों में उनकी भूमिका के अनुरूप स्थान न देना वास्तव में भारत के सच्चे इतिहास से वंचित करने का षड्यंत्र रहा है। कोई भी सरकार इसे दूर कर पूरी सच्चाई सामने लाती है तो उसका धन्यवाद किया जाना चाहिए। मुगल इस देश में आए और उन्होंने शासन किया तो उन्हें इतिहास से हटाया नहीं जा सकता। हटाया भी नहीं जाना चाहिए। किंतु इतिहास का जितना जैसा और जो सच है उसे सामने रखना ही किसी शिक्षा व्यवस्था का मूल कर्तव्य हो सकता है। इसी तरह राजनीति से जो अध्याय हटाए गए हैं, बहुत आवश्यकता उनकी नहीं थी। साथ ही वे सारे अध्याय एकपक्षीय तरीके से लिखे गए थे। लोकप्रिय आंदोलनों वाले अध्याय में ही वैसे आंदोलन जिन्होंने पूरे देश में आलोड़न पैदा किया जिनसे भारत की राजनीति बदली उन सबको आंदोलन की श्रेणी में रखा ही नहीं गया। कुछ ही विशेष संगठनों या विचारधाराओं को ही आंदोलनों में स्थान दिया गया। राजनीतिक दलों के उदय या ऐसे अन्य अध्यायों में भी शैक्षणिक गैर ईमानदारी भरी हुई थी।

यही नहीं 12वीं की वर्तमान राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक के अंतिम अध्याय पॉलिटिक्स इन इंडिया सिंस इंडिपेंडेंस में दंगों की चर्चा थी। इसमें 2002 के गुजरात दंगों की उसी तरह चर्चा है जैसे हमारी राजनीति में भाजपा विरोधी दल पिछले 20 वर्षों से कर रहे हैं। पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ‘राज धर्म’ टिप्पणी को उद्धृत करते हुए यह बताने की कोशिश की गई कि वे भी तत्कालीन मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका से असंतुष्ट थे। बाजपेई जी के उस वक्तव्य के की प्रतिक्रिया में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि साहब वही तो कर रहे हैं और वाजपेयी ने भी बोला कि मुझे उम्मीद है मुख्य मंत्री वैसा ही कर रहे हैं। इसे शामिल नहीं किया गया था। इस तरह की बातें हाई स्कूल के छात्रों की पुस्तकों में डालने का क्या लक्ष्य हो सकता है? इसी तरह पाठ्य पुस्तकों में हिंदू चरमपंथियों की गांधी के प्रति नफरत, महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर लगे प्रतिबंध जैसे अंश सकारात्मक ज्ञान के पर्याय तो नहीं माने जा सकते। इसलिए इन्हें हटाया जाना सर्वथा उचित है।

इस तरह के अध्याय क्यों डाले गए और इनसे छात्रों का कितना कल्याण होता रहा होगा इसकी कल्पना आप कर सकते हैं। जहां तक साहित्य का प्रश्न है तो उत्तर प्रदेश के इंटरमीडिएट में चलने वाली ‘आरोह भाग दो’ में परिवर्तन किए गए हैं। इसमें फिराक गोरखपुरी की गजल और ‘अंतरा भाग दो’ से सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की ‘गीत गाने दो मुझे’, विष्णु खरे की ‘एक काम और सत्य’ तथा ‘चार्ली चैपलिन यानी हम सब’ भी निकाल दिए गए हैं। इससे क्या अंतर आ जाएगा? वैसे भी महाकवि निराला भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और राष्ट्रवाद के प्रखर स्वर हैं। भाजपा या संघ को इनसे तो समस्या हो ही नहीं सकती। लेकिन जिन्हें विरोध करना है वह विरोध करेंगे। सच्चाई यह है कि पहली बार नरेंद्र मोदी सरकार ने शिक्षा को पूरा महत्व देते हुए नई शिक्षा नीति तैयार की है। राजनीति को छोड़ दें तो इसका समर्थन सारे शिक्षाविद कर रहे हैं। नई शिक्षा नीति बनी है तो उनके अनुसार धीरे-धीरे सिलेबस और पुस्तकें भी बदलेंगे। सब कुछ पहले ही जैसा चलने देना है तो फिर नई शिक्षा नीति की आवश्यकता ही नहीं होनी चाहिए थी।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: curriculameducation ministryeducation policyindian education systemncert

अवधेश कुमार

Next Post
भगवान इनकी झोली…

भगवान इनकी झोली...

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0