महाराष्ट्र के लिए सबक

नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता जरा भी कम नहीं हुई है। कर्नाटक जनता उन्हें देखने के लिए और सुनने के लिए बहुत ज्यादा संख्या में जमा हुई थी । यही स्थिति देशभर में है ।विरोधी पक्षों के एकजुट होने पर ,उनका नेतृत्व कौन करेगा ? उसमें कांग्रेस को कौनसा स्थान रहेगा ? क्या राहुल गांधी का नेतृत्व सारे राजनीतिक दल मान्य करेंगे? ऐसे नाजुक प्रश्न है। यह सच है कि आज तक नरेंद्र मोदी के नेतृत्व का अखिल भारतीय विकल्प नहीं है । लेकिन यह भी उतना ही सच है कि सभी राज्यों में भाजपा का समर्थ प्रादेशिक नेतृत्व है ऐसा भी नहीं है ।

प्रजातंत्र में जनता प्रभुत्व संपन्न होती है । इस प्रभुत्व संपन्न जनता ने कर्नाटक में , कांग्रेस की ओर कौल दिया है ,तो यह निर्णय आनंद से स्वीकारा जाना चाहिए । परंपरा से कर्नाटक कांग्रेस का किला रहा है । आपातकाल के बाद के चुनाव में , पूरा देश कांग्रेस के विचारों के विरोध में गया था । मगर कर्नाटक के मतदाता कांग्रेस की ओर खड़े रहे । कर्नाटक के चिकमंगलूर निर्वाचन क्षेत्र से श्रीमती इंदिरा गांधी को चुनकर लोकसभा में भेजा था । इस समय भी कांग्रेस पक्ष को विजय का थोड़ा टॉनिक देने का काम , कर्नाटक के मतदाताओं ने किया है ।

कांग्रेस को भी एक विजय की बहुत आवश्यकता थी । कांग्रेस दल ने एकजुट होकर ,उत्तम रणनीति बनाई ,योग्य उम्मीदवारों का चुनाव किया , निर्वाचन क्षेत्र के प्रश्नों को महत्व दिया ,और दल में अलगाव भी नहीं हुआ ।उन्होंने भाजपा सरकार को विकल्प देने की रचना खड़ी की । उन्होंने पहचान लिया कि , लोगों को बदलाव चाहिए और उसमें वे यशस्वी भी हुए । राजनीतिक विश्लेषकों ने कांग्रेस दल की विजय के पांच,सात व दस ऐसे अलग-अलग कारण ,बताए हैं । बायोकॉन की प्रमुख और देश की प्रसिद्ध उद्योगजिका किरण मजूमदार शॉ ने , कांग्रेस की विजय के तीन कारण बताए हैं। जो निम्नलिखित हैं ।
1) मूलभूत सुविधाओं का विकास।
2) समृद्ध आर्थिक व्यवस्था। 3 )सामाजिक सामंजस्य ।

इन तीन बातों का मतदाता विचार करते हैं । ऐसा ही विचार कर मतदाताओं ने ,कांग्रेस को मौका दिया है । वे राजनीति से बाहर की व्यक्ति है, इसलिए उनके विचार बहुत महत्वपूर्ण है।

भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पूरी ताकत लगाकर चुनाव लड़ा था , परंतु अपेक्षित यश नहीं मिला । भाजपा को जनता ने आत्मचिंतन करने का मौका दिया है । जनता ने भाजपा को पूरी तरह से नकार दिया है , ऐसा नहीं है । भाजपा के वरिष्ठ नेता आत्म चिंतन करेंगे ही। अपनी रणनीति की गलतियां वे , सुधारेंगे भी । इस अवसर पर,जो विचार मन में आए हैं , वह यहां रखने का प्रयत्न करता हूं ।

राज्य का चुनाव लड़ते समय तीन विषय बहुत महत्वपूर्ण होते हैं ।
1 ) राज्य की जनता के जीवनयापन के प्रश्न ।
2) इन प्रश्नों में घुल मिल गए स्थानीय नेता ।
3 ) समर्थ प्रादेशिक नेतृत्व । इन तीन बातों का अगर बहुत पहले से गंभीर विचार किया जाता है तो, चुनाव लड़ना सरल हो जाता है। सभी राजनीतिक दलों में बहुत से महत्वकांक्षी नेता होते हैं , जो एक दूसरे को शह और मात देने का काम करते रहते हैं । कर्नाटक में भी यही हुआ । भूतपूर्व मुख्यमंत्री ने अपना दल छोड़कर कांग्रेस में प्रवेश किया। विचारधारा पर चलने वाले दल को यह बहुत बड़ा धक्का था ।भाजपा के अनेक प्रादेशिक वरिष्ठ नेता निष्क्रिय रहे ।

अगले वर्ष महाराष्ट्र में चुनाव होने वाले हैं । कर्नाटक का संसर्ग ,महाराष्ट्र में नहीं होना चाहिए ।इसकी सावधानी प्रादेशिक नेतृत्व को लेनी पड़ेगी।

भाजपा की वैचारिकता हिंदुत्व की है । राजकीय दृष्टि से हिंदुत्व के कल तक के विषय थे। संविधान की धारा 370 , राम के जन्म स्थान पर श्री राम का मंदिर ,पाकिस्तानी दहशतवादियों को जैसे को तैसा उत्तर , समान नागरिक संहिता इत्यादि । इनमें से बहुत से विषयों पर , भारतीय जनता पार्टी ने बहुत काम किया है । चुनाव तथा राजनीति की महत्वपूर्ण बात यह होती है कि , एक जैसे वही -वही विषय नहीं चलते ।नए विषय ढूंढने पड़ते हैं ।
हिंदुत्व का प्रभाव बढ़ते जाने के कारण कुछ आतंकवादी हिंदू, मुसलमान समाज के विषय में भयानक वक्तव्य करते रहते हैं।
रोज के जीवन यापन से जिसका कोई संबंध नहीं है , ऐसे हिजाब जैसे विषय आगे लाते हैं । ऐसे विषयों को मत (वोट )नहीं मिलते ,यह ध्यान रखा जाना चाहिए ।इसीलिए हिंदुत्व की मनोरचना जनता की आकांक्षा के अनुसार करना आना चाहिए।

इस दृष्टि से विचार करने पर तीन विषय आगे आते हैं

हिंदुत्व और आर्थिक विकास ।
हिंदुत्व और सामाजिक न्याय ।
हिंदुत्व और सर्वधर्म समभाव ।

यह तीन विषय वैचारिक दृष्टि से, विस्तार से रखे जा सकते हैं । ऐसी क्षमता वाले कार्यकर्ता भी भाजपा के पास हैं । राजनीतिक दल का काम विचारों पर प्रवचन देने का नहीं होता । राजनीतिक दल का काम विचारों को कृति रूप में लाने का होता है । उदाहरणार्थ विकास का अर्थ होता है, मूलभूत सुविधाओं का विकास, फसल को योग्य भाव , शिक्षित बेरोजगारों को आर्थिक भत्ता, व्यवसाय देने वाले कौशल्य के प्रशिक्षण ऐसे असंख्य विषय होते हैं । सामाजिक न्याय में दुर्बल घटकों को आर्थिक छूट , नौकरी व व्यवसाय में प्रधानता , उनके आरोग्य एवं खाद्य सुरक्षा की सावधानी इत्यादि विषय आते हैं ।

राजनीतिक दलों को उनकी योजनाएं बतानी पड़ती हैं ।हमारे संविधान ने सभी धर्मों को, उनकी उपासना की स्वतंत्रता दी है । प्रत्येक धर्म संप्रदाय में लोगों में कालबाह्य रूढ़ियां होती हैं। इनमें से कुछ रूढ़ियां उस समाज के लोगों ने छोड़नी होती हैं। कुछ रूढ़ियां संविधान की धाराओं को लागू करके छुड़वानी पड़ती है । इसके लिए राजनीतिक दल को संतुलित ,विवेक विचार करना पड़ता है । राजनीतिक नेताओं की धार्मिक विषयों पर की टिप्पणी भी संतुलित होनी पड़ती है । सर्व सामान्य हिंदू सहिष्णु होता है । उसे उग्र हिंदुत्व अच्छा नहीं लगता । उसकी ऐसी मानसिकता होती है कि ,सभी देवों का सम्मान किया जाना चाहिए ।

कर्नाटक चुनाव परिणाम भाजपा के अनुकूल होंगे, या प्रतिकूल होंगे ,इसकी चर्चाएं चल रही हैं । 2024 चुनाव में विरोधी पक्ष के एकजुट होने का विषय भी चल रहा है ।बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार देशभर दौरा कर रहे हैं ।  2024 का चुनाव राष्ट्रीय प्रश्नों पर लड़ा जाएगा ।नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता जरा भी कम नहीं हुई है। कर्नाटक जनता उन्हें देखने के लिए और सुनने के लिए बहुत ज्यादा संख्या में जमा हुई थी । यही स्थिति देशभर में है ।विरोधी पक्षों के एकजुट होने पर ,उनका नेतृत्व कौन करेगा ? उसमें कांग्रेस को कौनसा स्थान रहेगा ? क्या राहुल गांधी का नेतृत्व सारे राजनीतिक दल मान्य करेंगे? ऐसे नाजुक प्रश्न है। यह सच है कि आज तक नरेंद्र मोदी के नेतृत्व का अखिल भारतीय विकल्प नहीं है । लेकिन यह भी उतना ही सच है कि सभी राज्यों में भाजपा का समर्थ प्रादेशिक नेतृत्व है ऐसा भी नहीं है ।

योगी आदित्यनाथ ,शिवराज सिंह चौहान ऐसे कुछ नेता यदि छोड़ दिए जाएं तो , दिल्ली, पंजाब , राजस्थान, उड़ीसा , आंध्रप्रदेश ,केरल इत्यादि राज्यों में सक्षम प्रादेशिक नेतृत्व नहीं है । महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस का अभी तक कोई भी विकल्प नहीं है। महाराष्ट्र का चुनाव जितना लग रहा है , उतना सरल नहीं है । महाराष्ट्र में दल में होने वाली नई भर्ती , एवं विचार निष्ठ पुराने कार्यकर्ता , इनके बीच संघर्ष दिन-ब-दिन तीव्र बनता जा रहा है । दल का अंतर्गत संघर्ष, दल को दुर्बल बनाता है ।इसमें से दल को नेतृत्व का मार्ग निकालना पड़ेगा ।मार्ग निकालते समय कर्नाटक का उदाहरण एक सबक के रूप में आंखों के सामने रखने में कोई बुराई नहीं है।

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